शनिवार, 14 मार्च 2009

मानव गलतियों का पुतला

आज भी मुझे समझ में नहीं आता कि mई जो कर रहा हूँ वह कहाँ तक सही है। जीवन की सही व्याख्या करने का प्रयास मानव सदियों से कर रहा है लेकिन यह प्रयास आजतक पूर्णता तक नहीं पहुंचा। यह काम जितना आसान दिखता है उतना हैं भी नहीं। फिर मैं अपने जीवन को किस कसौटी पर कसूं। इसलिए मेरा मानना है कि इस झमेले में परिये ही नहीं और मान लीजिये कि हमने अब तक जिस तरह जीवन जिया है वही सही है। कुछ गलतियां हुई हैं पर गलती करना तो मानव के स्वाभाव में है।

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