सोमवार, 2 नवंबर 2009

अब तेरा क्या होगा कोड़ा

मैंने अपने एक लेख में कुछ ही दिनों पहले यह आशंका व्यक्त की थी कि कांग्रेस झारखण्ड में हुए संस्थागत लूटपाट में खुद को पाकसाफ साबित करने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा को बलि के बकरे की तरह इस्तेमाल करेगी. आशंका सत्य सिद्ध हुई और कोड़ा और उनके निर्दलीय मंत्रीमंडलीय सहयोगियों के खिलाफ लगातार छापे मारे जा रहे है और जो तथ्य सामने आ रहे है वे निश्चित रूप से चौंकानेवाले हैं.  सिर्फ कोड़ा महोदय ने लगभग ५०० करोड़ का विदेशों में निवेश कर रखे हैं. उनकी कुल संपत्ति का आंकडा तो २००० करोड़ रूपये से भी ऊपर पहुँच चुका है. अगर यह धन हमारे देश में होता तो देश को कुछ तो लाभ होता लेकिन हमारे देश से लूटा गया धन दूसरे देश की अर्थव्यवस्था को फायदा पहुंचा रहा है. इसमें कोई संदेह नहीं की केंद्र सरकार का यह कदम सराहनीय है लेकिन हमें यह भी नहीं भूलना चाहिय कि कोड़ा एक कमजोर राजनेता थे और हैं. इसलिय उन पर कार्रवाई करना कठिन काम नहीं था. केंद्र अगर इसी तरह की जाँच अपनी पार्टी के सुबोधकांत सहाय के विरुद्ध करती तो उसकी सदेच्छा पर कोई भी उंगली उठाने का साहस नहीं करता क्योंकि झारखण्ड का बच्चा-बच्चा जानता है श्री सहाय ही नहीं झामुमो के शिबू शोरेन भी इस लूट में हिस्सेदार रहे हैं और उन्होंने भी करोड़ो की संपत्ति बनाई है. मायावती, लालू प्रसाद यादव, जयललिता के खिलाफ पहले से ही भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे हैं और केंद्र का उनके प्रति उदार रवैया रहा है. मोबाइल स्पेक्ट्रम वितरण मामले में बुरी तरह फंसे दूरसंचार मंत्री को तो सीधे तौर पर केंद्र सरकार बचाने में भी लगी दिखाई दे रही है. कहने का लब्बोलुआब यह ही कि भ्रष्टाचार के सभी मामलों में निष्पक्षतापूर्वक गुण-दोष के आधार पर कार्रवाई होनी चाहिए न कि अपनी सुविधा के आधार पर.

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