सोमवार, 30 नवंबर 2009

६ दिसंबर आ रहा है


हर साल ६ दिसम्बर आता है और बांकी तिथियों की तरह ही गुजर जाता है.१९९२ से पहले भी यह दिन साल में एक बार आता था लेकिन तब यह ख़ामोशी से गुजर जाता था.अब ऐसा नहीं होता.अब तो नवम्बर से ही आरोपों-प्रत्यारोपों का सिलसिला शुरू हो जाता है.यह साल तो फ़िर भी विशेष है.बाबरी-ढांचे के टूटने पर लिब्राहन आयोग की रिपोर्ट अभी-अभी आई है.रिपोर्ट क्या आई है चूं-चूं का मुरब्बा कह लीजिये.खोदा पहाड़ निकली चुहिया.और पहाड़ को खोदा भी १७ सालों में.सारी-की-सारी बकवास है इसमें नहीं है तो सिर्फ यह कि ढांचे को तोड़ने का षड्यंत्र किसने रचा.जब यही पता नहीं लग पाया तो फ़िर क्या हासिल हुआ आयोग के गठन से. राजनीति के शिखर पर बैठे लोग चाहते ही नहीं थे कि किसी को भी इस मामले में सजा मिले.अंदरखाने ये सब मिले हुए हैं.मिली हुई नहीं है तो जनता.आखिर क्या कारण है कि आज तक किसी भी बड़े राजनेता को किसी भी मामले में सजा नहीं मिली?इनके आपस में मिले होने का इससे बड़ा क्या प्रमाण होगा? ६ दिसंबर जैसे-जैसे निकट आएगा राजनीति तेज होती जाएगी और ६ दिसंबर को चरम पर होगी.एक तरफ बहुसंख्यकवादी होंगे तो दूसरी तरफ अल्पसंख्यकवादी और इन दो पाटों के बीच पिस रही होगी भारत की भोली-भाली जनता.

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