मंगलवार, 24 नवंबर 2009

आज भी कायम है भारत में द्वैध शासन

१९१९ ई. में अंग्रेजों ने भारत में द्वैध शासन लागू किया था.इसके जरिये प्रांतीय शासन को दो भागों में बाँट दिया गया था.इसके जरिये सरकारी विभागों को दो भागों में विभाजित का दिया गया-आरक्षित और हस्तांतरित विषय.आमदनी वाले विभागों  राजस्व और वित्त को तो सीधे तौर पर गवर्नर के अन्तर्गत रखा गया वहीँ खर्च वाले सभी विषय जनप्रतिनिधियों को दे दिए गए.इससे देश में काफी हास्यास्पद स्थिति उत्पन्न हो गयी.जनता द्वारा सीधे तौर पर चुने गए प्रतिनिधि जनकल्याण और विकास सम्बन्धी काम तो करना चाहते थे लेकिन गवर्नर पैसा ही नहीं देता था.आजादी के बाद भी उस कांग्रेस ने इस द्वैध शासन को बनाये रखा जो १९१९ से ही इसका विरोध करती आ रही थी.आज भी आमदनी यानि राजस्व का ज्यादातर हिस्सा तो केंद्र के पास चला जाता है और राज्य सरकार के पास जो आय के साधन संविधान द्वारा दिए गए हैं वे उनके व्यय को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं.ऐसे में सबसे जटिल स्थिति तब उत्पन्न होती है जब राज्य और केंद्र में अलग-अलग दलों की सरकार हो.राज्य धन मांगते रहते हैं और केंद्र कान पर ढेला देकर सोया रहता है.पिछले ६० सालों में योजना आयोग संविधानेतर संस्था होते हुए भी इतना शक्तिशाली होकर उभरा है कि इसके उपाध्यक्ष के पद को वित्त मंत्री से भी ज्यादा महत्वपूर्ण माना जाने लगा है.मैं इसका विरोध नहीं करता कि केंद्र के पास ज्यादा अधिकार रहे  लेकिन राज्यों के बीच कर-राजस्व का अथवा योजना आयोग द्वारा योजना मद में राशि का बंटवारा जरूरत के और राज्य सरकार के काम-काज के आधार पर होना चाहिए न कि इस आधार पर कि वहां पर अपनी पार्टी की सरकार है या दूसरी पार्टी की.बिहार सरकार बार-बार केंद्र से प्रत्येक वर्ष आनेवाली प्राकृतिक आपदाओं से निबटने के लिए पैसे मांग रही है और केंद्र सरकार बड़ी बेशर्मी से उसकी मांग को अनसुनी कर दे रही है.बिहार में लगभग चालीस साल तक कांग्रेस की सत्ता रही है.उस समय केंद्र में भी कांग्रेस ही सत्ता पर काबिज थी.फ़िर भी बिहार को योजना आयोग द्वारा राष्ट्रीय औसत से काफी कम प्रति व्यक्ति योजना राशि दी गयी.परिणाम यह हुआ कि आजादी के समय प्रति व्यक्ति आय में सबसे अगली पंक्ति में खड़ा बिहार १९६१ आते-आते नीचे से दूसरे और १९७१ तक सबसे आखिरी स्थान पर पहुँच गया.बीच में बिहार में वर्षों तक जंगल राज कायम रहा.आज जब बिहार की सरकार कुछ अच्छा करना चाहती है तब केंद्र पैसा ही नहीं दे रहा है.इथेनोल आधारित उद्योग अगर बिहार में स्थापित होता है तो इससे बिहार के साथ-साथ पूरे देश, पूरी दुनिया को फायदा होगा.फ़िर भी केंद्र सरकार बिहार को परेशान करने के उद्देश्य से बिहार में इथेनोल आधारित उद्योगों की अनुमति नहीं दे रही है.जबकि इससे बिहार का कायाकल्प हो सकता है.लगता है सरकार भी लाठी की ही भाषा समझती है.किसान जब दिल्ली पहुँच कर डेरा डाल देते हैं तब केंद्र सरकार नींद से जागती है.बिहार को भी शायद कुछ ऐसा ही करना पड़ेगा तभी देश को १९१९ से कायम द्वैध शासन से मुक्ति मिलेगी.पहले भी बिहार चाहे असहयोग आन्दोलन रहा हो या भारत छोडो आन्दोलन या फ़िर सम्पूर्ण क्रांति आन्दोलन देश का मार्गदर्शन करता रहा है.

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