सोमवार, 30 नवंबर 2009

मांगना एक कला


आपने भी शायद गौर किया होगा आजकल हमारे राज्य बिहार की सरकार जो काम सबसे ज्यादा संजीदगी से करने में लगी है वह है मांगना.कभी वह केंद्र सरकार से बाढ़ का मुआवजा मांगती है तो कभी वह सूखा राहत चलाने के लिए रकम मांगती है.इतना ही नहीं पिछले चार सालों से राज्य सरकार केंद्र से बिजली मांग रही है और केंद्र है कि कुछ सुन ही नहीं रहा.शायद पहली बार सत्ता में आये सुशासन बाबू को अब तक मांगना नहीं आया.सत्ता में रहते हुए किसी से कुछ मांगना कोई साधारण काम भी नहीं है.वैसे भी मांगना अपने-आपमें एक कला है.भिखारी तो आपने बहुत सारे देखे होंगे.सब-के-सब एक-दूसरे से अलग होते हैं.सबके मांगने का तरीका भी अलग-अलग होता है.जो इस कला में जितना पारंगत होता है उसकी भीख के बाज़ार में उतनी ही ज्यादा की हिस्सेदारी होती है.यह तो हुई भीख मांगने की बात लेकिन जब बात भीख की जगह अधिकारों की हो तब.तब स्वर के साथ-साथ शब्दों का चयन भी बदल जाना चाहिए.अगर भीख की तरह अधिकार मांगे जायेंगे तो निश्चित रूप से मांग पूरी होने में शक की गुंजाईश रहेगी.नीतीशजी को सीखना चाहिए हाजीपुर के छटनीग्रस्त सफाई कर्मचारियों से जो अपने अधिकारों के लिए पिछले कई दिनों से अनशन पर बैठे हैं.नीतीशजी कह रहे हैं कि केंद्र उनकी मांगों पर कान नहीं दे रही है.नीतीशजी क्यों अनशन पर नहीं बैठते?क्यों नहीं उतरते सड़क पर चंद्रशेखर राव की तरह? क्या वे सचमुच अपनी मांगों के प्रति गंभीर हैं?अगर वे गंभीर होते तो निरीह अकिंचन की तरह याचना नहीं कर रहे होते बल्कि अहिंसक तरीके से ही सही रण कर रहे होते.लगता है वे सिर्फ मांगने के लिए मांग रहे हैं.उन्होंने इस महान कला के महत्व को अभी समझा नहीं है.

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