शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2010

नागरिक समझ का अभाव है भारतीयों में

हमारे देश को आजाद हुए ६३ साल होने को हैं.किसी भी देश के नागरिकों को सिविक सेन्स यानी नागरिक समझ का प्रशिक्षण देने के लिए इतना समय कम नहीं होता.लेकिन यह बड़े ही दुःख की बात है कि हम भारतीयों में आज भी नागरिक समझ का अभाव है.हम चाहे किसी भी सरकारी कार्यालय में जाएँ सीढियों से लेकर ऑफिस की दीवारों तक पर पान की पीक के दाग देखे जा सकते हैं मानों मानचित्र बनाने की कोई प्रतियोगिता चल रही हो.हम आज भी लाइन तोड़कर टिकट लेने में अपना बड़प्पन समझते हैं और लाल बत्ती क्रॉस करने में हमें अपूर्व और अपार ख़ुशी मिलती है.जहाँ-तहां मल-मूत्र त्याग करने का तो जैसे हमें जन्मसिद्ध अधिकार ही प्राप्त है.यहाँ तक कि महापुरुषों की मूर्तियों को भी हम नहीं बक्शते.लोगों को पटना के गांधी मैदान के पास स्थित सुभाष पार्क की चहारदीवारी का इस काम के लिए उपयोग करते आप कभी भी देख सकते हैं.ये तो हुई कुछ छोटी-छोटी मगर मोटी बातें.अब एक बड़ी बात भी हो जाए यानी आर्थिक लाभ की बात.क्या आपने कभी निर्माणाधीन सड़क से ईंटों की चोरी की है?नहीं!फ़िर तो आप बेबकूफ हैं.शायद आपको ईंट के दाम पता नहीं है.५००० का हजार.कम-से-कम बिहार में तो यही दाम चल रहा है.अभी परसों जब मैं मुजफ्फरपुर में था तो मैंने बच्चों को दिन-दहाड़े सड़क से ईंटें उखड़ कर घर ले जाते हुए देखा.जब मैंने उन्हें मना किया तो एक किशोर लड़की उग्र हो उठी और कहा क्या ये सड़क आपकी है?जनता जब खुद ऐसे घटिया कामों में लगी रहेगी तब फ़िर सरकार के विकास कार्यों की तो ऐसी-की-तैसी होनी ही है.जहाँ तक भाषिक व्यवहार का प्रश्न है तो आज वही व्यक्ति समाज में पूजा जाता है जो जितनी ज्यादा गालियाँ देना जानता है.अभद्रता अब योग्यता की निशानी बन गई है.तभी तो राज और बाल ठाकरे पानी पी-पी कर पूरे मनोयोग से बस इसी एक काम में सालोभर लगे रहते हैं.हमारी पुलिस का तो इस मामले में कहना ही क्या?उनको तो जैसे इसी काम के लिए वेतन मिलता है.क्या आपने कभी आरक्षित टिकट पर बिहार या उत्तर प्रदेश से होकर रेलयात्रा की है?फ़िर तो आप को न चाहते हुए भी कई बार परोपकार का अवसर मिला होगा और जगह बांटनी पड़ी होगी.वो भी उनलोगों के साथ जो कभी टिकट कटाते ही नहीं हैं.कुछ लोगों को बसों और ट्रेनों में बीड़ी-सिगरेट पीना बहुत पसंद है.भले ही यात्रियों को इससे कितनी ही परेशानी क्यों न हो!आजकल एक और काम भी लोग बसों-ट्रेनों में करने लगे हैं.वो है गुटखा खाकर इधर-उधर थूकते रहने का.अगर आप इनमें से कोई भी काम करते हों और मुझ पर आपको गुस्सा आ रहा हो तो कृपया उसे भी थूक दीजिये और विचार कीजिये कि हम आखिर कैसा भारत बनाना चाहते हैं?

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

भैया आपका कहना पूर्णतया उचित है. तभी तो हम आज भी पिछड़े हैं.
मनोज, पटना, बिहार