रविवार, 13 फ़रवरी 2011

रिक्त हो रहा हूँ मैं

कल रात मैंने एक बड़ा भयानक सपना देखा.मैं सपने में सपना देख रहा था.ऐसा भी नहीं है कि मैं यह सपना पहली बार देख रहा था.पहले भी कई बार मैंने यह सपना देखा है.मैंने देखा कि मैं सुबह में जगा तो पाया कि मेरी आवाज ही गायब है.मैं बोलना तो चाहता हूँ लेकिन कंठ से आवाज ही नहीं निकल रही है.काफी कोशिश के बाद जब बोला भी तो मुंह से सिर्फ निरर्थक शब्द निकले.
                  मारे घबराहट के निकालता हूँ वह कलम जिससे मैंने बहुत सारे लेख,कविता और व्यंग्य लिखे हैं.लेकिन यह क्या?कलम से भी कोई शब्द नहीं निकल रहे थे?यह क्या हो गया था मुझे और मेरी कलम को.कहीं मेरा शब्दकोष रिक्त तो नहीं हो गया था,व्यवस्था पर व्यंग्य करते-करते;उसे गलियाते,लताड़ते और उसकी आलोचना करते-करते.तभी मेरी नींद खुल गई और मैं एक साथ दोनों सपनों से बाहर आ गया.मारे घबराहट के मेरा कंठ सूख रहा था.मैंने पानी पीना शुरू किया एक गिलास,दो,तीन शायद दसवें गिलास तक.लेकिन अब भी घबराहट कायम थी.धडकनें बेकाबू थीं.मैं डरा हुआ था और अब भी डरा हुआ हूँ कि क्या सचमुच एक दिन मेरा शब्दकोष रिक्त हो जाएगा?वैसे भी जिन शब्दों का प्रयोग मैं कर रहा हूँ उनमें असर है कहाँ?मेरे शब्द अर्थहीन हैं शायद.तभी तो न तो मैं इस देश की जनता को जगा पा रहा हूँ और न ही बना-बसा पा रहा हूँ अपनी दुनिया-ब्रज की दुनिया.
                         कहाँ से लाऊँ अर्थवान शब्द?बाजार में तो बिकते नहीं.आपके पास हो तो उधार में देंगे न?लेकिन आपको मैं जानता भी तो नहीं हूँ.फ़िर कैसे पहुंचूं आप तक?मुझे ज्यादा नहीं बस दो-चार दर्जन ऐसे शब्द चाहिए जिनमें सिर्फ अर्थ-ही-अर्थ हो,असर-ही-असर हो.जिन्हें सुनते ही जनता में जागरण उत्पन्न हो जाए,जनता निकल आए अपने-अपने घरों से.मेरे गाँव-घर का हर चौक-चौराहा तहरीर चौक बन जाए और चारों तरफ रामराज्य जैसा वातावरण बन जाए.
पुनश्च-मेरी यह रचना पद्य भी है और गद्य भी.यह आप पर निर्भर करता है कि आप इसे क्या समझते हैं.यह सपना कोई काल्पनिक नहीं है,सत्य है.मैं स्वप्नफल विशेषज्ञ नहीं हूँ और अगर कोई विशेषज्ञ मिल भी जाए तो आदतन बिना पूर्ण संतुष्टि के मैं उसकी व्याख्या को मानूंगा नहीं.मैं प्रयोगवादी भी नहीं हूँ और मैंने इस गद्यात्मक पद्य या पद्यात्मक गद्य में कोई प्रयोग नहीं किया है.मुझे लगता है कि यह समस्या सिर्फ मेरी ही नहीं है.सार्वभौमिक है,दुनिया के सभी रचनाकारों की है;भले ही उन्हें इस तरह के सपने मूंदी आखों में नहीं आए हों.कभी-न-कभी खुली आँखों में जरूर आए होंगे.

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