सोमवार, 2 मई 2011

व्यक्ति नहीं विचारधारा है ओसामा

osama

मित्रों,१० साल के लम्बे संघर्ष के बाद आखिरकार अमेरिका ओसामा बिन लादेन को मारने में सफल हो गया.ओसामा जिस तरह का व्यक्ति था;उसकी मौत पर निश्चित रूप से दुनिया-भर में खुशियाँ मनाई जानी चाहिए.लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि ओसामा एक व्यक्ति-मात्र नहीं था बल्कि वह एक विचारधारा था जिसकी जड़ें कोई माने या न माने इस्लाम धर्म के पवित्र ग्रन्थ कुरान शरीफ में है.इसलिए तब तक हम मुसलमानों की सोंच और विचारधारा में मौलिक परिवर्तन नहीं कर देते मुस्लिम आतंकवाद चलता रहेगा.हम एक ओसामा को मारेंगे तो रक्तबीज की तरह उसके रक्त से दस ओसामा पैदा हो जाएँगे.
           मित्रों,ओसामा कोई असमान से टपका हुआ परग्रहीय प्राणी नहीं था.वह भी कभी एक आम इन्सान था,दया और धर्म के रास्ते पर चलने वाला.उसे आतंकवादी बनाया उसी अमेरिका ने जो आज उसकी मौत पर जश्न मना रहा है.उसी अमेरिका ने उसे धन और हथियार उपलब्ध करवाए क्योंकि तब ओसामा और अमेरिका का एक ही दुश्मन था और वह था सोवियत रूस.मैंने संस्कृत में एक कहानी पढ़ी है जिसमें सांप से परेशान एक पक्षी-दम्पति सांप के कोटर से नेवले के कोटर तक मांस के टुकड़े बिछा देता है.नेवला पक्षियों की योजनानुसार सांप को तो मार देता है लेकिन उसके बाद उसकी नजर में आने से पक्षियों का आशियाना नहीं बच पाता और इस तरह उन पक्षियों की गति ताड़ से गिरे और खजूर पर अंटके वाली हो जाती है.कुछ ऐसा ही ओसामा के मामले में अमेरिका के साथ हुआ.
         मित्रों,सोवियत रूस के खिलाफ अमेरिका ने जो षड्यंत्र रचा उसमें पाकिस्तान उसका सामरिक साझेदार था.अमेरिकी धनबल के बल पर पाकिस्तान में जेहादी आतंकवादियों के हजारों ट्रेनिंग कैम्प लगाए गए जिनमें से अधिकतर आज भी मौजूद हैं और उनमें से कई दुर्भाग्यवश भारत के खिलाफ सक्रिय हैं.बाद में स्थितियां बदलीं और अमेरिका को अफगानिस्तान पर हमला करना पड़ा.एक दौड़ में दाँतकटी मित्रता वाले अमेरिका और लादेन एक-दूसरे के खून के प्यासे हो गए.ऐसी स्थिति में महाबली अमेरिका के लिए यह स्वाभाविक था कि वह इस लडाई में पाकिस्तान से सहायता की उम्मीद करे.पाकिस्तान ने अमेरिका की सहायता की ही;उसने ओसामा की भी भागने और छिपने में भरसक मदद की.वह एक साथ दूल्हा और दुल्हन दोनों का चाचा बना रहा.ओसामा मारा भी गया है तो पाकिस्तान की ही धरती पर जिससे पाकिस्तान पर अब भी आतंकियों का पनाहगाह होने का भारत और कुछ अन्य देशों द्वारा लगाए जाने वाले आरोपों की पुष्टि ही होती है.हद तो यह है कि जहाँ ओसामा रह रहा था वह स्थान पाकिस्तानी मिलिटरी अकादमी से मात्र ८०० मीटर दूर था.ऐसे में यह संभव ही नहीं कि वह कहाँ है और क्या कर रहा है;का पता पाकिस्तान सरकार को नहीं हो.
         मित्रों,ओसामा के मारे जाने से अमेरिका को भले ही कोई लाभ हो;मुझे नहीं लगता कि इससे भारत को कोई फायदा होने वाला है.हालाँकि भारत भी अमेरिका की ही तरह पाक समर्थित आतंकवाद का शिकार है लेकिन अमेरिका या कोई भी अन्य देश भारत के लिए पाकिस्तान पर दबाव नहीं डालने वाला.आपने अपने गाँव-समाज में भी देखा होगा कि कोई दूसरा दूसरे की लडाई नहीं लड़ता.ठीक उसी तरह भारत को आतंकवाद के खिलाफ अपनी लडाई खुद ही लडनी पड़ेगी.यह लडाई कूटनीतिक,आर्थिक,राजनीतिक,आन्तरिक प्रत्येक मोर्चे पर लड़नी होगी.जब तक सीमा पार से संचालित आतंकवाद को अपने देश में समर्थन मिलता रहेगा तब तक भारत पर आतंकी हमले होते रहेंगे.इसलिए हमें जेहादी आतंकवाद के भारतीय कनेक्शन को काटना होगा और इसके लिए पुचकार के साथ-साथ कड़े कदम भी उठाने पड़ेंगे.केंद्र सरकार की अल्पसंख्यकवाद की नीति और दिग्विजय सिंह और अमर सिंह की आतंकवादियों को शहीद घोषित करने के प्रयासों से जेहादी आतंकवाद को समाप्त करने में कोई मदद नहीं मिलेगी.बल्कि मदद मिलेगी मुसलमानों के उदार धड़े के नेताओं को बढ़ावा देने से और छोटे-छोटे मासूम मुसलमान बच्चों को आधुनिक और वैज्ञानिक शिक्षा देने से;सर्वधर्मसमभाव,सहिष्णुता और सहस्तित्व की शिक्षा देने से.मित्रों,कुछ ऐसा ही प्रयास मुस्लिमों के मन से कट्टरपंथ को समाप्त करने के लिए वैश्विक स्तर पर भी करने होंगे.
     मित्रों,मौत व्यक्ति की होती है विचारधारा की नहीं.व्यक्ति के तौर पर ओसामा भले ही मारा गया हो विचारधारा के तौर पर वह जिन्दा है और तब तक जिन्दा रहेगा जब तक मुसलमानों के मन में जेहादी मानसिकता जिंदा रहेगी,जब तक मुसलमान पिछड़े और अनपढ़ रहेंगे.भारत हमेशा से विश्व को संकट की स्थितियों में मार्ग दिखाता रहा है.भारत हमेशा से शांति और अहिंसा का पुजारी रहा है इसलिए सम्राट अशोक जैसी शख्सियत सिर्फ भारत में देखने को मिलती है.बांकी दुनिया में अनगिनत सिकंदर और तैमूर मिलते हैं पर अशोक एक भी नहीं मिलता.हम भारतवासी जानते हैं और मानते भी हैं कि चाहे रास्ते कितने भी अलग-अलग क्यों न हों सभी सम्प्रदायों की मंजिल एक हैं;इस दुनिया को बनानेवाला दो नहीं एक है.बांकी दुनिया भी जिस दिन इस सार्वभौम सत्य को तहे दिल से स्वीकार कर लेगी उसी दिन दुनिया से साम्प्रदायिकता और इससे उत्पन्न होने वाली सभी प्रकार की हिंसा समाप्त हो जाएगी.लेकिन क्या ऐसा हो सकेगा?क्या अमेरिका और दुनिया के अन्य नीति-निर्धारक देश ऐसा होने देंगे?क्या वे अपने फायदे के लिए आगे कोई और ओसामा पैदा नहीं करेंगे?

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