शुक्रवार, 14 अक्तूबर 2011

राम का नाम बदनाम न करो

 मित्रों,राम नाम भारत का सबसे ज्यादा,सबसे बड़ा नेक नाम है.यही वह नाम है जो एक रामभक्त में महासागर को कूद कर सहज ही पार कर जाने की ताकत उत्पन्न कर देता है,यही वह नाम है जिसको लिख देने मात्र से पत्थर भी पानी में तैरने लगता है.परन्तु कितनी बड़ी बिडम्बना है कि आज राम के पवित्र नाम को उन्हीं के कुछ कथित भक्त बदनाम करने में लगे हैं.हिकारत की हद तो यह है कि उन्होंने अपने आतंकवादी संगठन का नाम भी श्रीराम सेना रख लिया है.
          मित्रों,राम की  सेना  कैसी   थी  और  उसमें  किस  तरह  के लोग  थे   इससे  हम  सभी  भली  भांति  परिचित  हैं.जहाँ  राम की  सेना  में भक्तराज हनुमान और विभीषण जैसे भक्त,जाम्बबान जैसे बुद्धिमान और सुग्रीव जैसे धीर और वीर थे;इस श्रीराम सेना में जिद्दी,सनकी,असहिष्णु,सांप्रदायिक और घोर हिंसावादी युवा भरे हुए हैं.
             मित्रों,कोसलपति श्रीराम ने कभी यह नहीं कहा कि अपने विरोधियों की हत्या कर दो या उनके साथ मार-पिटाई करो.वाल्मीकि रामायण में जो शम्बूक वध का प्रकरण है वह किसी भी तरह राम के मूल स्वभाव से मेल नहीं खाता और इसलिए और कई अन्य कारणों से भी विद्वान इस घटना को प्रक्षेपित मानते हैं.वैसे भी शास्त्रीय राम को जन-जन का राम वाल्मीकि ने नहीं बनाया वरन उन्हें जन-जन में श्रद्धेय और पूज्य बनाया तुलसी ने और तुलसी के राम दया के सागर हैं,कृपा के समुद्र हैं,क्षमा के जलनिधि हैं.तुलसी के राम शत्रुओं का आदर करते हैं.उनके यहाँ न तो मतभेद है,न ही मनभेद है.वे डंके की चोट पर घोषणा करते हैं की अगुनहिं सगुनहिं नहिं कछु भेदा,गावहीं श्रुति पुरान बुध बेदा.शबरी को नवधा भक्ति का उपदेश देते हुए राम ने परम अनुराग में भींगे हुए शब्दों में कहा है कि चाहे कोई किसी भी तरह से,सच्चे मन से उनका पूजन क्यों न करे वह उन्हें ही प्राप्त होता है.
          मित्रों,कलियुग में भगवद्भक्ति के प्रतीक रामकृष्ण परमहंस ने अलग-अलग मार्गों से ईश्वर की आराधना की थी और पाया था कि ईश्वर एक है;वह अनेक नहीं है.मैं मानता हूँ कि बाबर या मीर बांकी ने वास्तव में राम का मंदिर ही नहीं तोड़ा था बल्कि अपने अल्लाह को भी बेघर किया था.इस तरह एक आस्थावालों के ईबादतगाहों को तोड़कर और अपनी मर्जी के पूजा-स्थल का निर्माण कर सच्ची आराधना नहीं की जा सकती.ईश्वर का सबसे ज्यादा अंश जीवित प्राणियों और मानवों में हैं न कि ईंट-पत्थरों में.इसलिए ६ दिसंबर,1992 को राम की नगरी अयोध्या में जिस तरह राम की स्थापना के लिए उनके दूसरे घर को ढहा दिया गया उसे भी किसी भी मानवीय दृष्टिकोण से सही नहीं माना जा सकता.कम-से-कम तुलसी के या मेरे राम तो ऐसे घर में आकर वास नहीं करनेवाले हैं जो घर दूसरे लाखों लोगों की आस्था को आघात पहुंचाकर जबरन छीना गया हो.मेरे राम तो अकेले उनको राजा बनाने की घोषणा से भी प्रसन्न नहीं होते और कहते हैं कि जनमें एक संग सब भाई,भोजन सयन केलि लरिकाई;बिमल बंस यह अनुचित एकू,बंधू बिहाई बड़ेहिं अभिषेकू.मेरे राम का तो पूरा जीवन ही त्याग की एक अद्भुत कहानी है.समुद्र कभी अपनी मर्यादा भूल सकता है लेकिन मेरे राम कभी अपनी मर्यादा से बाहर नहीं जा सकते और उस मर्यादापुरुषोत्तम के नाम पर हिंसा,सर्वस्वहरण और मारकाट.फिर तो प्रश्न यह उठता है कि इन हिंसक और रक्तपिपासु आतंकवादी रामभक्तों के राम कौन-से राम हैं?क्या वे महाराज दिलीप और रघु के विमल वंश के बदले रावण के वंश में पैदा हुए हैं?लेकिन ऐसे किसी राम के बारे में तो कभी सुना भी नहीं गया.खुद तुलसी ने भी कभी मंदिर और मस्जिद के बीच कोई फर्क नहीं किया और रात्रि-विश्राम के लिए बाबरी मस्जिद का चुनाव किया-मांग के खईबो,मसीत में सोईबो.
             मित्रों,अभी परसों ही कुछ हिंसासक्त नरपशुओं ने प्रख्यात वकील प्रशांत भूषण पर उनके दफ्तर में घुसकर जानलेवा हमला कर दिया और पकड़े जाने पर खुद को श्रीराम सेना का स्थानीय अध्यक्ष (एरिया कमांडर) बताया.उनकी गुंडागर्दी यहीं तक नहीं रुकी उन्होंने कल पटियाला हाउस अदालत-परिसर में अन्ना के समर्थकों के साथ दुर्व्यवहार भी किया.क्या यह तरीका है राम के आदर्शों को प्रचारित और प्रसारित करने का कि जब किसी से मतभिन्नता की स्थिति उत्पन्न हो जाए तो उस पर जान से मार डालने का प्रयास करो?राम तो उदारता के वारिधि थे और हैं फिर क्यों कर रहे हो राम के नाम को बदनाम?तुम्हें किसने यह अधिकार दिया है कि चंद लम्पटों के आपराधिक गिरोह का नाम श्रीराम सेना रख लिया?मित्र,तुम्हारे इस तरह के कृत्यों से मेरे राम जो तुलसी के भी राम हैं प्रसन्न नहीं होने वाले.वे तो तुम पर तब अपनी अहैतुकी कृपा बरसाएंगे जब तुम उनके द्वारा स्थापित आदर्शों पर चलोगे.सत्य,दया,त्याग,क्षमा और धर्म के मार्ग पर चलोगे.राम ने भी शस्त्र उठाया था और प्रण भी किया था कि निसिचरहीन करौं मही कर उठाए पन कीन्ह;लेकिन अपने या अपने परिवार के लिए नहीं,मानवता और धर्म की रक्षा के लिए.अगर तुम किसी की किसी बात से मतभिन्नता रखते हो तो अपनी बात देश और समाज के आगे रखो.बन्धु,आधुनिक समाज तर्कों से चला करता है न कि लातों और घूसों से.अगर तुम्हारा युवा रक्त देश और समाज के लिए इतना ही उबाल खा रहा है तो अन्ना के मार्ग पर चलो,गाँधी के मार्ग पर चलो और अहिंसा द्वारा पवित्रतापूर्वक अपना पवित्र अभीष्ट प्राप्त करो.नीति और नीयत अगर साफ नहीं रखोगे तो न तो राम ही तुम्हें माफ़ कगेंगे और न थी मानवता ही तुम्हें कभी क्षमा करेगी.अंत में श्रीराम सेना के सदस्यों सहित सभी भारतीयों से एक बार फिर से मैं विनम्र निवेदन करता हूँ कि आपलोग कृपया राम का नाम बदनाम न करो.   

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