शुक्रवार, 28 सितंबर 2012

क्या-क्या खरीदोगे यहाँ तो हर चीज बिकाऊ है


क्या-क्या खरीदोगे यहाँ तो हर चीज बिकाऊ है,
सिर्फ आदमी ही नहीं उसके जज्बात भी,
सिर्फ उसका जमीर ही नहीं उसके ख़यालात भी;
बिकते हैं मानव के तन और मन भी,
जमीं ही नहीं बिकता है गगन भी;
बिकता है न्याय और मतदाता भी,
इंसां तो इंसां बिकता है विधाता भी;
क्या-क्या देखोगे यहाँ तो हर चीज दिखाऊ है;
क्या-क्या खरीदोगे यहाँ तो हर चीज बिकाऊ है।

बरसों लग जाएंगे दफ्तर में काम होने में,
पेंशन बनने में घोषित परीक्षा परिणाम होने में;
खरीद लोगे जिस दिन तुम बाबुओं के ईमान को,
देखना पंख लग जाएंगे उसी दिन से तुम्हारे काम को;
जितनी ही मोटी रकम उनको तुम थमाओगे,
उतना ही निकट मंजिल से तुम अपने काम को पाओगे;
चल रहा है किसी तरह वतन सरकार भी काम चलाऊ है;
क्या-क्या खरीदोगे यहाँ तो हर चीज बिकाऊ है।

बिकती है हर चीज दुनिया के बाजार में,
हर बात जायज है जगत के व्यापार में;
परिस्थितियों के आगे मानव हो जाता है लाचार,
मगर कुछ वीर-विभुतियों ने नहीं मानी है हार;
इन विभुतियों के कारनामों का गवाह है इतिहास,
जिन्होंने अपने बूते किया है संकटों का नाश;
उनका ही नाम अमर है उनकी ही कृति टिकाऊ है;
क्या-क्या खरीदोगे यहाँ तो हर चीज बिकाऊ है।

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