शनिवार, 19 जनवरी 2013

सफल बेटी के असफल पिता जगदीश माली

मित्रों,काफी साल हुए। बात शायद 1985-86 की है। मेरे पिताजी इतिहास के प्रोफेसर होने के बावजूद साहित्य में अच्छी अभिरूचि रखते हैं और साहित्यिक पत्रिका आजकल के पिछले 30-40 सालों से नियमित पाठक रहे हैं। तभी मैंने आजकल में एक बड़ी मार्मिक और दिल को छू लेनेवाली कहानी पढ़ी थी। संदर्भ शिव की नगरी बनारस का था। कहानी में सर्दी के दिन थे। एक गरीब ग्वाला सुबह की गुनगुनी धूप में अपने पिता को खाट पर लिटाकर सरसों तेल से मालिश कर रहा था। तभी वहाँ से एक अमेरिकी दम्पति गुजरा। उम्र यही कोई 60-65 की। वह वहाँ झोपड़ी के बाहर चलते-चलते रूक गया। ग्वाले ने उनको बैठने के लिए पीढ़ा दिया और फिर से पितृसेवा में लग गया। देखते-देखते वह अमेरिकन दम्पति भावुक होने लगा और रोने लगा। ग्वाला डर गया कि न जाने उससे क्या गलती हो गई। डरते-डरते रोने का कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि उनको अपना बेटा याद आ गया था जो उसकी तनिक भी चिंता नहीं करता और अपनी ही दुनिया में खोकर रह गया है। तभी उसी कहानी के माध्यम से मैंने जाना कि दुनिया के दूसरे कोने में वृद्धाश्रम भी होते हैं। दम्पति ने गद्गद भाव से अभिभूत होकर कहानी के अंत में भारत की धरती को प्रणाम करते हुए घोषणा करते हैं कि धन्य है यह भारत और धन्य हैं इस भारत के लोग जो अपने माँ-बाप को बुढ़ापे में अपने हाल पर तिल-तिल कर मरने के लिए नहीं छोड़ते और भगवान की तरह पूजते हैं।
                   मित्रों,वह कहानी तो 1985-86 में ही समाप्त हो गई और आज समय उसे काफी पीछे छोड़ता हुआ बहुत आगे निकल आया है। आज की तारीख में भारत और अमेरिका के माता-पिताओं की स्थिति में बहुत ज्यादा का फर्क नहीं रह गया है। आज के भारत में पहले ही काफी वृद्धाश्रम खुल चुके हैं और बहुत सारे खुल रहे हैं। अभी परसों की ही तो बात है बॉलीवुड की प्रख्यात अभिनेत्री अंतरा माली के पिता और गुजरे जमाने के मशहूर फोटोग्राफर जगदीश माली मुम्बई में किसी मंदिर के बाहर भिखारियों जैसी स्थिति में पाए गए। जब अभिनेत्री मिंक ने इसकी सूचना अंतरा को दी तो उसने साफ-साफ कह दिया कि उसके पास वक्त नहीं है। यह वही अंतरा है जो कभी माधुरी दीक्षित बनना चाहती थीं। यह मुझे तो नहीं पता कि वो माधुरी दीक्षित बन पाईं या नहीं लेकिन इतना तो निश्चित है कि वह इन्सान नहीं बन पाईं। क्या किसी बेटी के पास बाप के लिए समय नहीं होता? उस बाप के लिए जिसने कभी अपना सबकुछ उसके लिए दाँव पर लगा दिया होता है। क्या यह घनघोर कृतघ्नता नहीं है?
                                             मित्रों,यह कितनी बड़ी बिडम्बना है कि आज सफलता के शिखर पर खड़ी अंतरा माली को अपने पिता की तनिक भी चिंता नहीं है और अगर कोई सलमान खान जैसा भलामानुष उनकी चिंता कर रहा है तो वह उसके प्रति कृतज्ञ होने के बदले उल्टे बेशर्मों की तरह उसी पर गरम हो रही है। लानत है ऐसी संतानों पर जो अपने माता-पिता की देखभाल नहीं करते। ऐसे लोग अपने प्रोफेशनल जीवन में भले ही कितने भी सफल हो जाएँ इन्सानियत के इम्तिहान में मुकम्मल तौर पर फेल हैं। जानवर से भी गए-बीते हैं ऐसे लोग। इस संदर्भ में एक कथा उपनिषदों में भी मौजूद है। कथा कुछ इस प्रकार है-एक तपस्वी ब्राह्मण कहीं सुदूर वन में तपस्या कर रहा था कि तभी एक बगुले ने उसके सिर पर बीट कर दिया। तपस्वी ने क्रोधित होकर बगुले को देखा और बगुला क्षणमात्र में जल कर राख हो गया। तपस्वी के मन में अभिमान आ गया कि तभी आकाशवाणी हुई कि हे तपस्वी ब्राह्मण! अपने तपोबल पर इतरा मत तुझसे ज्यादा तपोधनी तो इस नाम का और इस नगर का कसाई है। तपस्वी के अभिमान को भारी ठेस लगी। वो निकल पड़ा कसाई को ढूंढ़ने। ढूंढ़ते-ढूंढ़ते कसाई की टूटी-फूटी झोपड़ी के दरवाजे पर जा पहुँचा और आवाज लगाई। भीतर से उत्तर आया कि कुछ देर इंतजार करिए अभी मैं व्यस्त हूँ। तपस्वी काफी नाराज हुआ लेकिन सिवाय इंतजार करने के वो कुछ कर भी नहीं सकता था। कुछ देर बाद जब कसाई सेवा में उपस्थित हुआ तो तपस्वी ने आँखें लाल-पीली करते हुए कहा कि तुझे मृत्यु का भय नहीं है कि तुमने हमसे प्रतिक्षा करवाई। कसाई ने विनम्र स्वर में उत्तर दिया कि श्रीमान् मैं कोई बगुला नहीं हूँ कि दृष्टि डालते ही राख हो जाऊंगा। तपस्वी हतप्रभ रह गया और पूछा कि आपने यह तपोबल कैसे अर्जित किया और आपकी तो जीविका भी घृणित है। इस पर कसाई ने स्नेहासिक्त स्वर में कहा कि मैं अपने माता-पिता की पूरे तन-मन और धन से सेवा करता हूँ। बाँकी तप वगैरह मैं नहीं जानता। अभी जब आप आए और आवाज लगाई तब भी मैं अपने पिता की चरण-सेवा में ही लगा हुआ था।
             मित्रों,भारतीय संस्कृति बताती है,हमारे सद्ग्रंथ बताते हैं कि आप अगर अपने माता-पिता की नियमित सेवा करते हैं तो कोई जरुरत नहीं है पूजा-पाठ-तप-स्नान-ध्यान-योग करने की। फिर ऐसा क्यों हो रहा है कि कोई जगदीश माली जैसा सफल और खुशनसीब संतान का पिता बुढ़ापे में दर-दर की ठोकरें खाने लगता है। दोषी माता-पिता भी हैं जिन्होंने कदाचित् अपने माता-पिता की सेवा तब नहीं की जब उनको इसकी सबसे ज्यादा जरुरत थी। उनको अपने बच्चों के सामने उदाहरण पेश करना चाहिए और उदाहरण बनना चाहिए। कहते हैं कि रास्ता बताईए तो आगे चलिए सो मैं तो अपने माता-पिता की खूब सेवा कर रहा हूँ। पिछले एक साल से खाना भी मैं ही पका रहा हूँ और चरण-सेवा तो कर ही रहा हूँ क्योंकि मेरी पत्नी अभी गोद में छोटा बच्चा होने के कारण मायके में है। मेरे लिए तो मेरे माता-पिता ही भगवान हैं,शिव-पार्वती हैं और आपके लिए?

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