शनिवार, 23 मार्च 2013

संजय दत्त को नहीं मिलनी चाहिए माफी

मित्रों,कई साल पहले मैंने दो खबरें पढ़ी-सुनी थी। पहली अमेरिका से थी और दूसरी इंग्लैंड से लेकिन दोनों ही नाबालिगों द्वारा शराब पीकर गाड़ी चलाने से संबंधित थीं। पहली घटना में अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति और तत्कालीन विश्व के सर्वाधिक शक्तिशाली व्यक्ति जार्ज डब्ल्यू बुश की बेटी शराब पीकर गाड़ी चलाती हुई वाशिंगटन में स्थानीय पुलिस द्वारा पकड़ी गई थी। उस पर पुलिस ने जुर्माना किया था और उसकी जमानत देने स्वयं अमेरिका के राष्ट्रपति थाने गए थे। दूसरी घटना में इंग्लैंड के तत्कालीन प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर के पुत्र को इसी तरह के अपराध में रात हिरासत में गुजारनी पड़ी थी और सुबह में तभी वे घर जा पाए जब उनके प्रधानमंत्री पिता ने सदेह थाने में उपस्थित होकर जमानत दी। दोनों ही मामलों में बुश या ब्लेयर न तो नाराज हुए और न ही पुलिस अधिकारियों पर किसी तरह की धौंसपट्टी ही दिखायी। कानून का सम्मान किया और पालन भी किया। क्या ऐसा भारत में कभी हुआ है या होता है? अगर भारत में ऐसा नहीं होता है तो फिर यहाँ कानून का राज कैसे हुआ?
                                                     मित्रों,आपने भी किताबों में पढ़ा होगा कि भारत में कानून का राज है और भारत में कानून की नजर में सभी बराबर हैं लेकिन व्यवहार में ऐसा है नहीं। अगर ऐसा होता तो आज एक समय के बिगड़ैल नवाब संजय दत्त को माफी देने की मांग नहीं उठी होती। बल्कि सरकार और कांग्रेस पार्टी उनके साथ उसी तरह पेश आती जैसे कि किसी अपराधी के साथ आया जाता है। लगता है कि भारतीय प्रेस परिषद् के अध्यक्ष पूर्व न्यायाधीश मार्कण्डेय काटजू ने कल का अखबार पढ़ा ही नहीं है या हो सकता है कि उन्होंने जो कानून की किताबें पढ़ीं हों उनमें यह लिखा हो कि रसूखवाले लोग बॉस की तरह ही हमेशा सही होते हैं (बॉस ईज ऑलवेज राईट)। आश्चर्य होता है और संदेह भी होता है कि इस व्यक्ति ने न्यायाधीश के महान जिम्मेदारीवाले पद पर रहते हुए कई दशकों तक कैसे न्याय के साथ न्याय किया होगा?! आखिर इस आदमी ने किस आधार पर यह कहा कि 1993 के मुम्बई बम विस्फोटों में संजय दत्त का जुर्म संगीन नहीं था? सुप्रीम कोर्ट ने तो अपने निर्णय में साफ-साफ कहा है कि मुम्बई बम विस्फोटों में जो हथियार और विस्फोट उपयोग में लाए गए उनमें से कुछ को संजय दत्त ने विस्फोट से ऐन पहले अपने पास रखा था। इतना ही नहीं संजय दत्त को विस्फोट की साजिश के बारे में भी पहले से पूरी जानकारी थी लेकिन उन्होंने पुलिस को इसकी जानकारी नहीं दी उल्टे आतंकवादियों की हर तरह से सहायता की। काटजू साहब के अनुसार आतंकवादियों के साथ सांठ-गांठ रखना,आतंकी कार्रवाई में उनकी सहायता करना और पुलिस को इसके बारे में इत्तला नहीं करना अगर संगीन जुर्म नहीं होता है तो फिर संगीन जुर्म होता ही क्या है? माना कि संजय दत्त एक बड़ी हस्ती हैं और अभी कांग्रेस पार्टी में भी हैं,उनके व्यवहार में सुधार भी आया है लेकिन इससे उनका अपराध तो कम नहीं हो जाता।
                                  मित्रों,अगर संजय दत्त को माफी दी जाती है तो इस अपराध में शामिल अन्य लोगों को भी माफी मिलनी चाहिए क्योंकि ऐसा नहीं होना फिर उनके साथ अन्याय होगा,क्योंकि उनमें से अधिकतर ने इस इकलौते अपराध के बाद और कोई अपराध नहीं किया है। संजय दत्त को माफी देना भारत के न्यायिक इतिहास में एक गलत और शर्मनाक नजीर होगी। इस आधार पर तो कोई भी बड़ा-से-बड़ा अपराधी माफी की मांग करेगा। इतना ही नहीं अगर संजय दत्त को माफी दी जाती है तो मैं मीलों आगे बढ़कर यह मांग करता हूँ कि मुम्बई बम विस्फोटों में शामिल सभी लोगों को संजय दत्त के साथ ही भारत-रत्न और अशोक-चक्र एकसाथ देकर सम्मानित किया जाए और उनको बेवजह कष्ट पहुँचाने के लिए भारत सरकार की ओर से माफी भी मांगी जाए क्योंकि उनका अपराध तो संगीन था ही नहीं साथ ही उनकी आतिशबाजी से सिर्फ मुम्बई की सड़कें ही रौशन नहीं हुई थी भारत का पूरी दुनिया में नाम भी रौशन हुआ था।
                              मित्रों,इसी बीच भारत में एक और महत्त्वपूर्ण घटना घटी है। अभी कल परसों की ही बात है कि डीएमके नेता स्टालिन के घर पर कांग्रेस जाँच ब्यूरो (सीबीआई) ने जब छापा मारा तो पीएम तक परेशान हो गए। अगर वही छापा हम-आप जैसे किसी छोटे व्यक्ति पर पड़ा होता तो उनको यकीनन कोई फर्क नहीं पड़ता। पीएम साहब सीबीआई अगर छापा मारती है तो मारने दो,अगर देश में कानून का राज है तो कानून को अपना काम करने दो नहीं तो बाजाप्ता मुनादी करवा दो कि भारत में कानून का राज नहीं है बल्कि कानून तोड़नेवालों का राज है।                             

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