रविवार, 31 मार्च 2013

पागल मत बनो केजरीवाल

मित्रों,वैसे तो मेरी सोंच और मेरा स्वभाव शुरू से ही युवा साम्यवादियों जैसा रहा है। मैंने हमेशा यथास्थिति को शिव के पिनाक धनुष की तरह पुनर्वार भंग करने का,तोड़ने का प्रयास किया है लेकिन मुझे इस बात को लेकर कभी गफलत नहीं रही है कि वर्तमान काल में ऐसा करना काफी कठिन है और दिन-ब-दिन कठिन से कठिनतर होता जानेवाला है। मैंने अपने एक आलेख में कई साल पहले ही लिखा था कि आज अगर गांधी भी साक्षात् आ जाएँ तो वे भी देश को कुछ खास नहीं बदल पाएंगे और उनको भी निराशा ही हाथ लगेगी। जब पूरा देश दूसरे रीतिकाल का निर्बाध और निफिक्र आनंद ले रहा हो,जब पूरा देश ऐन्द्रिक सुख के पीछे पागल हो,जब समाज का ज्यादा बड़ा तबका शराब की खुमारी में डूबा हो और सन्नी लियोन के देह-दर्शन को व्याकुल हो तब देश को कोई कैसे जगा सकता है?
                                           मित्रों,यह तो आप भी जानते हैं कि शहीद दिवस,23 मार्च से ही अरविन्द केजरीवाल नामक एक उत्साही-उन्मादी युवक दिल्ली की जनता के दुःखभार को कम करने के लिए अनशन पर बैठा हुआ है परन्तु जनता है कि जैसे उसको नेताओं और पानी-बिजला कंपनियों के हाथों लुटने में ही मजा आ रहा है। वह एक ऐसे मरीज की तरह व्यवहार कर रही है जिसको स्वस्थ होना रास ही नहीं आ रहा फिर आप ही बताईए कि कोई अन्ना या केजरीवाल जान देकर भी उसका कैसे भला कर सकते हैं?
                                    मित्रों,पहले तो संदेहभर था अब तो मुझे इस बात का पक्का यकीन हो गया है कि ये दोनों गुरू-चेले अव्वल दर्जे के पागल हैं प्यासा फिल्म के गुरूदत्त की तरह इसलिए इनको तो पागलखाने में होना ही चाहिए। बड़ा चले हैं जान देने। अमाँ मियाँ किसको चाहिए तुम्हारी जान? कोई क्या करेगा तुम्हारी जान का? चले हैं जनता को जगाने। जनता तो राग-रंग में डूबी हुई हो तुम भी डूब जाओ और मानव-जीवन का आनंद लो। संतों ने कहा भी तो है कि यह मानव-जीवन बार-बार नहीं मिलनेवाला। तो क्यों नहीं तुम भी डूब जाते आनंद के महासागर में? आखिर इसमें तुम लोगों को परेशानी ही क्या है? क्यों नहीं चिपक जाते तुम भी सत्तारूढ़ दल से? क्यों नहीं बन जाते तुमलोग भी केंद्रीय मंत्री और फिर क्यों नहीं करते लाखों के वारे-न्यारे? इस भारत का कुछ भी नहीं हो सकता मित्र,कुछ भी नहीं हो सकता। यह तो जैसा है वैसा ही रहेगा जान से जाओगे तुम दोनों। देखते नहीं कि इसी भारत में शहीद भगत सिंह का घर खंडहर हुआ जाता है,तुम्हें यह भी दिखाई नहीं देता कि इसी भारत में चंद्रशेखर आजाद के घर पर सरकारी अमला कैसे बुलडोजर चलाता है और जनता मूकदर्शक बनी रहती है। ये लोग सोये हुए नहीं हैं दोस्त खोये हुए है खुद में और खुद से। ये लोग लापता हो गए लोग हैं,खुद से ही लापता। बताओ भला कैसे जगाओगे इन्हें? कैसे पता लगाओगे इनका,कहाँ जाकर खोजोगे इनको? इसलिए तुमलोग यह बार-बार का अनशन छोड़ो और भ्रष्टाचार से नाता जोड़ो जो अब हमारे जीवन का अभिन्न अंग बन चुका है। जिस देश में 100 में से 90 लोग बेईमान हों वहाँ कौन पढ़ेगा तुमसे ईमानदारी का नीरस पाठ? कहीं ईमानदारी से पेट भरता है दोस्त? मित्र अपनी ही जान का क्यों दुश्मन बनते हो? मर जाओगे तो ज्यादा-से-ज्यादा कहीं पार्क में या सड़क पर तुम्हारी एक मूर्ति बिठा दी जाएगी जिस पर कबूतर बीट करेंगे और आवारा कुत्ते पेशाब करेंगे। बरखुर्दार समझे कि नहीं? वैसे मेरा क्या मैं तो तेरे भले की बात कर रहा हूँ अब चाहो तो मानो और न चाहो तो नहीं मानो,अपनी बला से,हाँ! है कि नहीं!!

कोई टिप्पणी नहीं: