सोमवार, 31 मार्च 2014

कौन हैं कांग्रेस के समलैंगिक?


31-03-2014,ब्रजकिशोर सिंह,हाजीपुर। मित्रों, आपने ऩकलची बंदर की कहानी जरूर पढ़ी होगी परंतु हो सकता है कि आपको कहानी को जीने का अवसर नहीं मिला हो। अगर सचमुच में ऐसा है तो भी घबराने की कोई जरुरत नहीं है। बंदर को नकल करते हुए नहीं देखा तो क्या आप जब चाहे एक राजनैतिक दल को ऐसा करते हुए देख सकते हैं। आपने एकदम ठीक समझा है! मैं भारत की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस की ही बात कर रहा हूँ। उसी कांग्रेस की जिसकी नीतियों में हमेशा मौलिकता की कमी रही है और जो हमेशा से विदेशी सरकारों की नकल करती रही है। इसकी सरकारों के मंत्री सरकार चलाने के गुर सीखने के लिए अक्सर विदेश जाते रहे हैं और फिर वापस आकर उन विदेशी नीतियों को बिना थोड़ा-सा दिमाग खर्च किए लागू करने लगते हैं जबकि भारत की स्थितियाँ अमेरिका-यूरोप से साफ इतर होती हैं। जाहिर है कि फिर उन आयातित योजनाओं का अंजाम वही होता है जो होना होता है।
मित्रों,नकल की यह कहानी पं. नेहरू के समय से ही कांग्रेसी नेताओं द्वारा बार-बार दोहराई जा रही है। बात सिर्फ आर्थिक नीतियों तक सीमित होती तो फिर भी गनीमत थी लेकिन अब कांग्रेस नेता जबर्दस्ती भारत के समाज को अमेरिकी-यूरोपियन समाज बना देना चाहते हैं। वे चाहते हैं कि भारत में भी यौन-क्रांति की स्थिति उत्पन्न हो जाए। तभी तो बलात्कार की बाढ़ आने के बाद भी कांग्रेस सरकार ने सनी लियोन को भारत आने और फिल्में बनाने से नहीं रोका। तभी तो दिल्ली के रेप कैपिटल बन जाने के बाद भी भारत में अच्छे-अच्छों के दिमाग खराब कर देनेवाली पोर्न वेबसाईटों पर रोक नहीं लगाई गई। तभी तो समस्या मस्तिष्क-प्रदूषण से है लेकिन ईलाज कानून बनाकर किया जा रहा है। तभी तो जबसे केंद्र में माँ-बेटे का शासन कायम हुआ है बार-बार समलैंगिकता का समर्थन किया जा रहा है। तभी तो अभी कुछ महीने पहले जब सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकता को सामाजिक अपराध कहा था तब कांग्रेस के युवराज ने झटपट समलैंगिकता का पक्ष लेते हुए इस पर भाजपा से उसके विचार पूछ लिए थे। तभी तो पार्टी के घोषणा-पत्र में भी समलैंगिकता को वैधानिकता प्रदान करने के नायाब व क्रांतिकारी वादे किए गए हैं।
मित्रों, कांग्रेस के युवराज और महारानी को यह मालूम नहीं है कि भारत भारत है नार्वे या इंग्लैंड नहीं जहाँ की जनसंख्या के 20-30 प्रतिशत लोग घोषित समलैंगिक हो चुके हैं और इस तरह बहुत बड़े वोटबैंक में तब्दील हो चुके हैं। मैं समझता हूँ कि भारत में अभी भी कुछ सौ या कुछ हजार से ज्यादा घोषित समलैंगिक नहीं हैं। फिर राहुल और सोनिया गांधी क्यों समलैंगिकता ही नहीं बल्कि वेश्यावृत्ति को भी वैधानिक मान्यता देने की हड़बड़ी में हैं? कांग्रेस में ऐसे कौन-से समलैंगिक लोग हैं जिनको खुश करने के लिए इस तरह के गंदे प्रयास किए जा रहे हैं? आखिर एक स्त्री एक स्त्री से और एक पुरुष एक पुरुष से विवाह करके समाज के लिए कौन-सा अमूल्य योगदान कर पाएगा? क्या ईश्वर ने हमें जो अंग जिस काम के लिए दिए हैं उसको उसी काम के लिए प्रयोग में नहीं लाया जाना चाहिए? क्या ऐसा नहीं करना प्रकृति के नियमों के साथ मजाक नहीं होगा? क्या कांग्रेसी मुँह से मलत्याग या गुदा से भोजन कर सकते हैं? अगर नहीं तो फिर अप्राकृतिक यौनाचार को मान्यता देने पर वे इतना जोर क्यों दे रहे हैं? क्या इन अश्लील,घोर भोगवादी और विनाशकारी प्रवृत्तियों को कानून बनाकर बढ़ावा देने से भारतीय समाज के ताने-बाने के बिखर जाने का खतरा उत्पन्न नहीं हो जाएगा? क्या कांग्रेस को उस भारतीय संस्कृति की कोई चिंता नहीं है,क्या उसको उस भारतीय संस्कृति पर गर्व नहीं है जिस पर गर्व करते हुए कभी इकबाल ने कहा था कि यूनान-ओ-मिस्र-ओ-रोमा सब मिट गए जहाँ से, अब तक मगर है बाकी नाम-ओ-निशाँ हमारा, कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी, सदियों रहा है दुश्मन दौरे जमां हमारा। (हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)

रविवार, 30 मार्च 2014

संतोष की जगह खीझ पैदा करती है वैशाली जिले की सरकारी वेबसाईट

30-03-2014,हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,कई साल पहले लालू जी बिहार में चीख-चीखकर कहा करते थे कि विकास करने से कहीं वोट मिलता है और यह आईटी-फाईटी क्या है। सत्ता बदली तो बदली हुए सरकार ने जनता को सूचना-क्रांति और इंटरनेट के जरिए सरकारी योजनाओें और जानकारियों तक आसानी से पहुँच बनाने की पहल शुरू की। प्रदेश के सभी जिलों की सरकारी वेबसाइटें बनाई गईं जिससे बहुत से जिलों की जनता को लाभ भी हुआ लेकिन दुनिया के सबसे पुराने गणतंत्र वाला वैशाली जिला इसका अपवाद ही बना रहा।
मित्रों,न जाने क्यों जबसे इस जिले की सरकारी वेबसाईट बनी है तभी से पिछले 8-10 सालों से इस वेबसाईट की सारी महत्त्वपूर्ण लिंक काम नहीं करती हैं। अर्थात् आप क्लिक करते-करते परेशान हो जाईएगा लेकिन वह लिंक नहीं खुलेगा। उदाहरण के लिए वेबसाईट पर District Vaishali welcomes you all,DISTRICT PROFILE,AT A GLANCE,MNREGA Yojna,IMPORTANT CONTACTS,Citizen Services/Online Registration,BPL SURVEY,IAY,SMS MONITERING SYSTEM,DPMC,RTI ACT,ASSET DECLARATION,PUBLIC UTILITY SERVICES,मतदाता जागरुकता अभियान जैसी दर्जनों जनता के काम आनेवाली लिंक हैं जो काम नहीं करतीं। परिणामस्वरुप जो जनता का जो काम घर बैठे हो जाना चाहिए उसके लिए उनको महीनों दफ्तरों के चक्कर लगाने पड़ते हैं और जो जानकारियाँ उनको इस वेबसाईट से घर बैठे मिल जानी चाहिए उसके लिए उनकों सैंकड़ों आरटीआई डालने पड़ते हैं। कदाचित् उसके बाद भी उनके कई काम नहीं हो पाते और वांछित जानकारी भी नहीं मिल पाती। विडंबना यह है कि इस समय राज्य के सूचना और जनसंपर्क मंत्री इसी जिले के रहनेवाले हैं।
मित्रों,वेबसाईट पर सबसे नीचे एक स्क्रॉल चलती रहती है जिसमें जिले में चल रही विभिन्न सरकारी गतिविधियों से संबंधित करीब एक दर्जन लिंकें हैं पूरी वेबसाईट में सिर्फ यही चंद लिंकें काम कर रही हैं। जाहिर है कि जिन लोगों के मजबूत कंधों पर इस वेबसाईट के चलाने की जिम्मेदारी दी गई है वे घोर लापरवाह और आलसी हैं। उन्होंने लिंकों की जगह कोरे शब्द डाल दिए हैं लिंकों के लिंक नहीं डाले। लिंक काम करेगा तो डाटा को बराबर अपडेट भी करना पड़ेगा न रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरी। लेकिन इस वेबसाईट के सारे महत्त्वपूर्णों लिंकों के काम नहीं करने के कारण वैशाली जिले के निवासियों की जिन्दगी जरूर बेसुरी हो गई है। जबसे वेबसाईट का निर्माण हुआ है तभी से यही हालत है और आश्चर्य की बात है कि जिले के किसी भी प्रशासनिक अधिकारी ने अबतक इस तरफ ध्यान ही नहीं दिया। लिंकों के काम नहीं करने से फायदा तो उनको भी है। जाहिर है कि SMS MONITERING और UTILITY SERVICES जैसी सेवाओं के लिंकों के काम करने पर उनकी जिम्मेदारी भी काफी बढ़ जाती जिससे वे फिलहाल बच जा रहे हैं।
मित्रों,बिहार में चाहे सूचना तकनीक से जनता को फायदा पहुँचाने की योजनाएँ हों या फिर कोई भी अन्य योजना यहाँ आकर वे दम तोड़ देती हैं। कारण बस इतना-सा है कि उनके क्रियान्वयन पर ध्यान नहीं दिया जाता। दुर्भाग्यवश इस समय बिहार के जो मुख्यमंत्री हैं वे देश के सबसे बड़े फोकसबाज नेता हैं। कागज पर तो वे सबकुछ कर दे रहे हैं लेकिन धरातल पर कुछ भी नहीं करते। मैं इस आलेख की एक कॉपी उनको भी भेजने जा रहा हूँ शायद वे इस दिशा में पहल कर ही दें और वैशाली जिले की वेबसाईट जिले की जनता को सिर्फ संतोष प्रदान करने लगे और भविष्य में उनके मन में आक्रोश और खींझ उत्पन्न न करे। मैं आपको वैशाली जिले की वेबसाईट का लिंक भी दे रहा हूँ जिससे आप खुद ही अनुभव करके जान जाईएगा कि राज्य में सुशासन कैसे काम कर रहा है-http://vaishali.bih.nic.in/
(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)

मंगलवार, 25 मार्च 2014

जागो वतन खतरे में है


25-03-2014,हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,किसी शायर ने क्या खूब कहा कि "ले आई जिन्दगी हमें कहाँ पर कहाँ से, ये तो वही जगह है गुजरे थे हम जहाँ से।"  शायर ने कहा तो था यह खुद के बारे में लेकिन दुर्भाग्यवश यह शेर हमारे देश भारत की वर्तमान स्थिति पर भी खूब खरा उतर रहा है। हमारा देश एक बार फिर से सन् 1962 में पहुँच गया। तब तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू ने देश की सुरक्षा को जानबूझकर खतरे में डाला था। पहले 1948 में पाकिस्तान और बाद में 1962 में चीन से भारत को मुँह की खानी पड़ी।  हाल ही में युद्ध के समय नई दिल्ली मे उस वक्त विदेशी पत्रकार के रूप में तैनात मैक्सवैल द्वारा प्रकाशित की गई पुस्तक "इंडियाज चाइना वार" के अनुसार नेहरू जानते थे कि चीन भारत पर हमला करने वाला है लेकिन उन्होंने जानते हुए भी इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया। नतीजा यह हुआ कि भारत के सैनिकों को बिना गोली-बारूद के ही जंग के मैदान में उतार दिया गया। खुद मेरे मामा स्व. अरविन्द कुमार सिंह कई महीनों तक बंदूक लिए अरूणाचल के जंगलों में छिपे रहे और पेड़ के पत्ते खाकर जान बचाई।
मित्रों,एक बार फिर से भारतीय सेना के लिए गोला-बारुद की भारी कमी हो गई है। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार इस समय हमारी सेना के पास इतना भी गोला-बारुद शेष नहीं बचा है कि हम 20 दिनों तक लड़ सकें। उसी रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि भारत सरकार ने इस दिशा में जो कदम उठाए हैं उसके अनुसार अपेक्षित परिणाम आने में कम-से-कम 5 साल लगेंगे। भगवान न करे इस बीच अगर चीन और पाकिस्तान ने संयुक्त मोर्चाबंदी करके एकसाथ भारत पर हमला कर दिया तो देश की रक्षा कैसे हो पाएगी? क्या देश की सुरक्षा को खतरे में डालना हमारी वर्तमान केंद्र सरकार का आपराधिक कदम नहीं है और इस देशद्रोह के लिए इसमें शामिल सभी संबद्ध मंत्रियों को सजा नहीं दी जानी चाहिए? अगर कोई सैनिक या सैन्य अधिकारी युद्ध के दौरान गलतियाँ करता है तो उसका कोर्ट मार्शल कर दिया जाता है तो क्या उन लोगों को जिन्होंने जानबूझकर देश की सेना को कमजोर किया है को सजा नहीं मिलनी चाहिए?
मित्रों,मैं पहले भी इस केंद्र सरकार पर अपने आलेखों में आरोप लगा चुका हूँ कि इसने जानबूझकर न केवल देश की अर्थव्यवस्था को बल्कि देश की सुरक्षा को भी कमजोर किया है। यह वैसी ही बात है जैसे कि मेड़ खेत को खाने लगे। मैंने यह आरोप भी लगाए थे कि केंद्र सरकार में शामिल लोग एक साथ चीन,अमेरिका और पाकिस्तान के एजेंट हैं। वास्तव में देश पर इस समय ऐसे लोगों का शासन है जो चाहते हैं कि देश टूट जाए,समाप्त हो जाए। नहीं तो क्या कारण है कि हमारे समुद्रों में खड़े-खड़े ही एक-के-बाद-एक युद्धपोत और पनडुब्बियाँ डूबते जा रहे हैं? मैं नहीं मानता कि रक्षा मंत्री एके एंटनी ईमानदार व्यक्ति हैं। अगर ऐसा है भी तो वे मनमोहन सिंह की तरह के ईमानदार हैं जिनकी नाक के नीचे बेईमान जमकर लूट मचाए हुए हैं और श्रीमान इस्तीफा देने तक की जहमत नहीं उठा रहे हैं जबकि भारत के नौसेना अध्यक्ष कई हफ्ते पहले ही इस्तीफा दे चुके हैं।
मित्रों,जैसा कि मैंने आलेख की शुरुआत में ही कहा था कि हम फिर से 1962 में पहुँच गए हैं। ऐसा हुआ कैसे? आज हम शत-प्रतिशत साक्षरता के काफी निकट पहुँच चुके हैं फिर हमने ऐसे अयोग्य और देशद्रोहियों के हाथों में देश को सौंप कैसे दिया? तो क्या सिर्फ पढ़ा-लिखा होने से ही कोई कौम समझदार नहीं हो जाती? क्या भारत की जनता आज भी उतनी ही मूर्ख नहीं है जितनी कि वह 1962 में थी? पढ़ी-लिखी तो दिल्ली की जनता भी थी फिर लंपट-देशद्रोही-अराजकतावादी-सीआईए एजेंटों के हाथों में पिछले साल दिल्ली की सत्ता कैसे सौंप दी? क्या एक देशद्रोही पार्टी कांग्रेस को हटाकर दूसरी देशद्रोही पार्टी के हाथों देश को सौंप देना बुद्धिमानी कही जाएगी? भूलिए मत कि तब भी एक मेनन भारत-चीन दोस्ती के तराने गा रहा था और अब भी एक मेनन वैसे ही तराने गा रहा है। मैं नहीं जानता कि इस मेनन और इस मेनन में कोई सीधा रक्त संबंध है या नहीं लेकिन मैं इतना जरूर जानता हूँ कि उस नेहरू और इस राहुल गांधी के बीच जरूर सीधा रक्त संबंध है। मेनका गांधी ने एकदम सही सवाल उठाया है कि सोनिया अपने मायके से तो कुछ भी लेकर नहीं आई थी फिर वो कैसे दुनिया की सबसे अमीर छठी महिला बन गई? क्या देश की बर्बादी और सोनिया की समृद्धि के बीच कोई सीधा संबंध नहीं है?
मित्रों,जागिए नहीं तो फिर कभी चैन से सो नहीं पाईएगा। संकट अब सिर पर आ गया है। देश की सुरक्षा खतरे में है,देश खतरे में है। देश के दुश्मनों को पहचानिए और आनेवाले चुनावों में सिर्फ और सिर्फ एनडीए को वोट दीजिए क्योंकि आपने दिल्ली के विधानसभा चुनावों में भी देखा है कि एनडीए गठबंधन को वोट न देने का सीधा मतलब होता है कांग्रेस को वोट देना। क्योंकि चुनावों के बाद बाँकी सारे दल फिर से एकसाथ हो जाते हैं देश को लूटने के लिए। क्योंकि बाँकी किसी भी दल को कोई मतलब नहीं है कि देश बचेगा या देश का नामोनिशान मिट जाएगा। भूल जाईए कि आपके क्षेत्र से एनडीए का उम्मीदवार कौन है क्योंकि अब प्रश्न हमारे आपके लोकसभा क्षेत्र भर के विकास का नहीं है बल्कि अब प्रश्न-चिन्ह लग गया है भारत और भारत के वजूद पर,अस्तित्व पर। (हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)

बुधवार, 19 मार्च 2014

मूल स्वरुप से भटक गई है होली

18-03-2014,ब्रजकिशोर सिंह,हाजीपुर। मित्रों,कहते हैं कि परिवर्तन संसार का नियम है लेकिन जब बात पर्वों-त्योहारों या परंपरा की हो तो कभी-कभी परिवर्तन की गति या मात्रा हमें चिंतित भी करने लगती है। होली को ही लें जो भारत का सबसे बड़ा त्योहार है। शहरों में तो पहले से भी होली सांकेतिक ही थी लेकिन अब तो गाँवों में भी शहरी होली मनाई जाने लगी है। इस बार की होली में हाजीपुर शहर में होली के कई दिन पहले से ही विभिन्न व्यवसायी संगठनों द्वारा होली-मिलन समारोहों का आयोजन होने लगा था। मैं उनमें से एक समारोह में निमंत्रित भी था। होलिका-दहन के दिन जाने पर देखा कि सामुदायिक भवन हाजीपुर में जगह-जगह बिजली कंपनियों की होर्डिंग्स लगी हुई थी। स्टेज पर दो-चार लोग बैठे हुए थे और एक स्थान पर डीजे पर भोजपुरी गीत बज रहा था और कई लोग बेसुरा डांस कर रहे थे। सामने कुर्सियाँ लगी हुई थीं जिन पर कई सौ लोग बैठे हुए थे। मैंने दो गिलास दूध पिया,कुछ तस्वीरें लीं और चल दिया। वहाँ मेरा दम घुटने लगा। दरअसल वहाँ ऐसा कुछ भी नहीं हो रहा था जिसको कि मैं होली मानता और रुकता।
मित्रों,कल होकर होली के दिन मैं दोपहर दो बजे अपनी ससुराल के लिए रवाना हुआ। रास्ते में जितने भी गाँव मिले लगभग सभी गाँवों में लोग साउंड बॉक्स पर गंदे भोजपुरी होली गीतों की धुन पर थिरकते मिले। आयु यही कोई 8-10 से 30 तक की। उनके लड़खड़ाते पाँव यह बताने को काफी थे कि वे अहले सुबह से ही शराब पी रहे थे। रास्ते में कई स्थानों पर युवक मोटरसाईकिल पर हंगामा करते हुए भी देखे गए। कई स्थानों पर कीचड़ और गोबर से सने युवक हुल्लड़बाजी करते हुए भी देखे गए। मैंने अपनी ससुराल पहुँचते ही सालों से पूछा कि आपके गाँव में तो लोग हर दरवाजे पर घूम-घूमकर होली गाते ही होंगे तो उन्होंने बताया कि यहाँ कई साल पहले तक तो ऐसा होता था लेकिन अक्सर गायन मारपीट में बदल जाता था इसलिए अब इस परंपरा को बंद कर दिया गया। सुनकर मैं सन्नाटे में आ गया। फिर गाँव और शहर की होली में फर्क ही क्या रह गया? मैं तो होली गीतों का आनंद लेने ही ससुराल गया था लेकिन वहाँ भी निराशा ही हाथ लगी। शाम में कुछ बच्चे जरूर मुझसे मिलने आए लेकिन मेरी होली तो पहले ही फीकी हो चुकी थी। दरअसल,गाँव से लेकर शहर तक होली इतनी बदल चुकी थी और मुझे पता तक नहीं चला। जिस तरह ग्रामीण समाज में नैतिकता का ह्रास हुआ है,लोगों ने अपनी माँ-बहनों और रिश्तों की अहमियत को भुला दिया है उससे एक दिन तो ऐसा होना ही था। शहरी समाज में तो रक्त-संबंध होते ही नहीं इसलिए वहाँ तो परंपरागत होली की सोंचना भी नहीं चाहिए। अब गाँवों में भी लोग घूम-घूमकर ढोलक-झाल की थाप पर होली नहीं गाते और न ही घर-घर जाकर होली ही खेलते हैं। अब गाँवों में भी नववधुओं को रंगों में स्नान नहीं करवाया जाता। अब गाँवों में भी हर घर में प्रणाम करने या अबीर लगाने पर लोग सूखे नारियल,किशमिश आदि मेवों का मिश्रण नहीं खिलाते। अब गाँवों में भी होली के बाद भी आपसी दुश्मनी और रंजिश बनी रहती है और उसमें कमी लाने के बदले होली उसमें बढ़ोतरी ही कर जाती है। जब पूरा समाज ही अपने मूल स्वरुप से भटक गया हो तो होली को तो अपने मूल स्वरुप से दूर हो ही जाना था,सो हुआ। (हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)

शनिवार, 15 मार्च 2014

क्या मोदी मिट्टी के शेर हैं?

15-03-14,हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,अगर आपने भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार श्री नरेन्द्र मोदी को किसी रैली के मंच पर आते हुए देखा होगा तो यह भी देखा होगा कि जब वे मंच पर आते हैं तो उनके समर्थक नारा लगाते हैं कि शेर आया,शेर आया। मोदी ने गुजरात में अपने काम से और रैलियों में अपने भाषणों से ऐसा दर्शाया भी है कि वे दिलेर मर्द हैं और उनका सीना सचमुच 56 ईंच का है।
मित्रों,फिर ऐसा क्या हो गया है कि वही नरेंद्र मोदी इन दिनों एक-के-बाद-एक आत्मघाती कदम उठाते चले जा रहे हैं। पहले उन्होंने घोर अवसरवादी रामविलास पासवान से बिहार में गठबंधन कर लिया वो भी तब जबकि सीबीआई ने उनके खिलाफ बोकारो कारखाना नियुक्ति घोटाला में तगड़े सबूत जुटा लिए थे। इतना ही नहीं रामविलास पासवान ने जिन उम्मीदवारों को चुनाव में उतारा है वे या तो उनके परिजन हैं या फिर राज्य के सबसे बड़े अपराधी। आप ही सोंचिए कि क्या समाँ बंधेगा जब स्वच्छ छविवाले वरिष्ठ नेता डॉ. रघुवंश प्रसाद सिंह के खिलाफ अपराधी-शिरोमणि रामा सिंह चुनाव लड़ेंगे?! हमारे कुछ मोदी समर्थक मित्र फेसबुक पर कह रहे हैं कि चाहे कुत्ता खड़ा हो या गदहा हम तो उसे ही जिताएंगे क्योंकि मोदी को प्रधानमंत्री बनाना है। क्या ऐसा करने से ही लोकसभा में अपराधियों का प्रतिशत कम होगा? आज अगर हम चुप रहे तो फिर अगले 5 सालों तक हम किस मुँह से आँकड़ा दिखाकर आरोप लगाएंगे कि देखिए कैसे लोकसभा अपराधियों का जमावड़ा बनती जा रही है?
मित्रों,इतना ही नहीं हरियाणा में विनोद शर्मा,कर्नाटक में श्रीरामुलु को टिकट देने की बेताबी से तो ऐसा ही लग रहा है कि नरेन्द्र मोदी लोकसभा चुनावों में हार के डर से यानि 272 का आँकड़ा प्राप्त नहीं होने के भय से भयभीत हो गए हैं और इसलिए ताबड़तोड़ उल्टे-सीधे गठबंधन करते जा रहे हैं। क्या मोदी नहीं जानते कि लंपट राज ठाकरे से महाराष्ट्र में गठबंधन करने की स्वाभाविक प्रतिक्रिया बिहार में होगी? अगर इसी तरह भयभीत होकर वे उल्टे-सीधे कदम उठाते रहे तो वह दिन दूर नहीं जब उनके पक्ष में बनी-बनाई हवा हवा हो जाएगी क्योंकि हवा बनाने में जहाँ महीनों लग जाते हैं वहीं हवा के खराब होने के लिए एक रात ही काफी होती है। कितना विडंबनापूर्ण सत्य है कि एक तरफ तो मोदी कांग्रेसी शहजादे की आलोचना करते रहे हैं वहीं दूसरी ओर खुद उनकी ही पार्टी ने इतने शहजादों को टिकट बाँटे हैं कि शहजादों की एक फौज ही खड़ी हो गई है।
मित्रों,युद्ध के मैदान में या तो हार होती या फिर जीत। शेरदिल योद्धा वही होता है जिसके मन में हार का भय एक क्षण के लिए भी घर न करने पाए। अधर्मियों की सेना जमा करके कोई धर्मयुद्ध कैसे लड़ सकता है? जब चुनावों से पहले भाजपा भी वही कर रही है जो कांग्रेस और आप पार्टी कर रही है तो फिर कैसे यकीन किया जाए कि चुनावों के बाद वह वह सब नहीं करेगी जो कांग्रेसनीत केंद्र सरकार पिछले 10 सालों से करती आ रही है? (हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)

मंगलवार, 11 मार्च 2014

राजीव गांधी के नाम पर स्विस बैंक में 198000 करोड़ रुपया-विकीलिक्स

नई दिल्ली (एजेंसी)। विकीलिक्स ने स्विस बैंक में पैसा रखनेवाले 29 भारतीयों की सूची जारी की है जिसके अनुसार बैंक में राजीव गांधी के नाम पर एक लाख अंठानबे हजार करोड़ रुपया जमा है। विकीलिक्स ने दावा किया है उसके पास इन कालाधन धारकों के खिलाफ ठोस सबूत भी मौजूद हैं। सूची में उल्लिखित मुख्य नाम इस प्रकार हैं-
राजीव गाँधी (198000)
ए राजा (7800)
हर्षद मेहता (135800)
केतन पारीख (8200)
रामदेव पासवान (3500)
एच डी कुमारस्वामी (14500)
लालू प्रसाद यादव (29800)
पवन सिंह घटोवार (3908)
नीरा राडिया (289990)
एम के स्टालिन (10500)
ज्योतिरादित्य सिंधिया (9000)
कलानिधि मारन (15000)
एम् करूणानिधि (35000)
शरद पवार (28000)
सुरेश कलमाड़ी (5900)
पी चिदम्बरम (32000)
राज फाउंडेशन (189008)।
सूची का लिंक इस प्रकार हैः-http://www.hoaxorfact.com/images/jreviews/36_listofblackmoneyholders-1328610253.JPG
(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)

सोमवार, 10 मार्च 2014

क्या सुशासन का मतलब कदाचार भी है?

हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,इन दिनों पूरे बिहार में मैट्रिक की परीक्षा चल रही है। जैसा कि आप जानते हैं कि परीक्षा का मतलब होता है पराये की ईच्छा लेकिन बिहार ने इस साल सुशासन ने इसकी परिभाषा ही बदल दी है और मैट्रिक की परीक्षा में इस शब्द का मतलब हो गया है स्वेच्छा। चाहे चुनावी मौसम में वोट-बैंक के नाराज हो जाने का खतरा हो या फिर कुछ और इस साल बिहार की मैट्रिक-परीक्षा में कदाचार की गंगा बह रही है।
मित्रों,राज्य के लगभग प्रत्येक केंद्र पर विद्यार्थियों के साथ 5 स्टार मेहमानों जैसा सलूक किया जा रहा है। भीतर में तो किताब खोलकर लिखने की आजादी है ही बाहर से उनके परिजनों को भी चिट-पुर्जे पहुँचाने की पूरी छूट दी जा रही है। अलबत्ता इस प्रक्रिया में होम गार्ड और बिहार पुलिस के जवानों को जरूर कुछ आमदनी हो जा रही है। एक बार फिर से प्रत्येक केंद्र पर परीक्षार्थियों से इस लाजवाब सुविधा के बदले में हजारों रुपए की सुविधा-शुल्क परीक्षा-केंद्र के शिक्षकों व प्राचार्यों ने वसूली है।
मित्रों,सवाल उठता है कि सुशासन की तुगलकी शिक्षा-नीति ने सरकारी स्कूलों में शिक्षा को समाप्त तो पहले ही कर दिया था अब उसने परीक्षा को भी मजाक बनाकर रख दिया है। प्रश्न उठता है कि इस माहौल में कोई विद्यार्थी पढ़ाई करे भी तो क्यों करे? जिन चंद विद्यार्थियों ने पढ़ाई की भी है वे भी मजबूरन किताबों की सहायता से परीक्षा दे रहे हैं क्योंकि उनको लगता है कि किताब में तो सही लिखा होगा ही याद्दाश्त का क्या भरोसा? मैं श्री नीतीश कुमार जी से पूछना चाहता हूँ कि क्या जरुरत है ऐसी परीक्षा लेने की? सीधे क्यों नहीं विद्यार्थियों को डिग्री थमा देते? ऐसा करने से तो वोट-बैंक और भी ज्यादा मजबूत होगा। क्यों परीक्षार्थियों को घर से 30-40 किलोमीटर दूर आकर परीक्षा देने को मजबूर किया? उनके खुद के विद्यालय में ही क्यों नहीं ले ली गई परीक्षा? (हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)

शुक्रवार, 7 मार्च 2014

केजरीवाल के 16 सवालों के 17 जवाब

07-03-14,हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,गुजरात में विकास के दावों की पड़ताल करने पहुंचे आम आदमी पार्टी (आप) के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने 2 दिन प्रदेश में घूमने के बाद नरेंद्र मोदी की तरफ से 16 सवाल उछाल दिए और कहा कि मैं इन सवालों का जवाब मांगने उनसे मिलने जा रहा हूं। हालांकि, पहले से मिलने का समय नहीं लेने की वजह से उनके काफिले को गांधीनगर में सीएम ऑफिस से पहले ही रोक लिया गया। इसके बाद पार्टी नेता मनीष सिसोदिया मुख्यमंत्री के सेक्रेटरी से मिलने पहुंचे और वक्त मांगा, लेकिन फिलहाल मिलने का समय नहीं मिला।
गुजरात में दो दिनों के दौरे के बाद अरविंद केजरीवाल ने नरेंद्र मोदी सरकार पर जमकर निशाना साधा है। उन्होंने कहा कि गुजरात में विकास के बारे में नरेंद्र मोदी जो दावे करते हैं, वे खोखले हैं। केजरीवाल ने कहा कि मोदी के तमाम दावे झूठ की बुनियाद पर टिके हैं। उन्होंने कहा कि मोदी कहते हैं कि यहां रोजगार के अवसर सबसे ज्यादा हैं, लेकिन हकीकत इसके विपरीत है। प्रदेश में भारी बेरोजगारी है।
केजरीवाल ने मीडिया से बातचीत करते हुए कहा कि मोदी को बताना होगा कि उनका मुकेश अंबानी से क्या रिश्ता है? उन्हें बताना होगा कि आखिर करप्शन के आरोपों के बाद भी बाबू भाई बुखेरिया और पुरुषोत्तम सोलंकी जैसे लोगों को अब तक मंत्री क्यों बना रखा है?
साथ ही अरविंद केजरीवाल ने गुजरात में मोदी के 11 फीसदी कृषि विकास दावे को भी बेबुनियाद करार दिया। उन्होंने पूछा कि अगर गुजरात में कृषि क्षेत्र में विकास इतना ज्यादा है तो सैकड़ों की संख्या में किसान आत्महत्या क्यों कर रहे हैं? उन्होंने कहा कि गुजरात में किसानों को पानी नहीं मिल पा रहा है।
इतना ही नहीं उन्होंने यह पूछा है कि नरेंद्र मोदी बताएं कि उनके पास कितने हवाई जहाज और कितने हेलिकॉप्टर हैं? अगर अपने नहीं हैं तो किनके हैं? क्या वह इसके लिए पैसे देते हैं या फिर मुफ्त में इसका इस्तेमाल करते हैं?
केजरीवाल के मोदी से 16 सवाल
1. क्या आप प्रधानमंत्री बनने के बाद केजी बेसिन से निकली गैस के दाम बढ़ाएंगे?
2.पढ़े-लिखे युवाओं को ठेके पर नौकरी क्‍यों दे रहे हैं और उन्‍हें मात्र 5300 रुपये प्रति महीना दे रहे हैं, इतने में कोई कैसे जिंदगी चलाएगा?
3. गुजरात के सरकारी अस्‍पतालों में इलाज की सुविधा क्‍यों नहीं है?
4. पिछले दस सालों में राज्‍य में लघु उद्योग क्‍यों बंद हुए हैं?
5. किसानों की जमीनें बड़े उद्योगपतियों को कौड़ियों के भाव क्‍यों दिए जा रहे? आपने किसानों की जमीन छीनकर अडानी और अंबानी को दे दी है।
6. आपके पास कितने निजी हेलिकॉप्‍टर या प्लेन हैं? आपने ये खरीदे हैं या बतौर तोहफा मिला है? आपकी हवाई यात्राओं पर कितना खर्च आता है और इसके लिए पैसे कहां से आते हैं?
7.आपने हाल में पंजाब में कहा था कि कच्छ के सिख किसानों की जमीन नहीं छीनी जाएगी, तो इस मामले में गुजरात सरकार सुप्रीम कोर्ट क्यों गई है?
8.गुजरात में विकास के दावे झूठे हैं, मोदी जी आप बताइए कि गुजरात में कहां विकास हुआ है?
9. आपके मंत्रिमंडल में दागी मंत्री क्यों शामिल है, बाबू भाई बुखेरिया और पुरुषोत्तम सोलंकी जैसे दागी मंत्री सरकार का हिस्सा कैसे बने हुए हैं?
10. गुजरात के किसान बेहाल है। किसान खुदकुशी कर रहे हैं। हाल के वर्षों में गुजरात में 800 किसानों ने खुदकुशी की, क्यों?
11. प्रदेश में रोजगार का बुरा हाल क्यों है और बेरोजगारी क्यों बढ़ी है?
12.चार लाख किसानों ने बिजली के लिए कई साल से आवेदन दिया है, उन्हें अब तक बिजली क्यों नहीं मिली है?
13. मुकेश अंबानी से आपके क्या रिश्ते हैं, आपने अंबानी परिवार के दामाद सौरभ पटेल को मंत्रिमंडल में क्यों जगह दी?
14. गुजरात में सरकारी स्कूलों के हालात बदहाल क्यों है?
15. सरकारी दफ्तरों में बहुत ज्यादा करप्शन है, विभागों में भारी भ्रष्टाचार क्यों है?
16. कच्छ के किसानों को पानी नर्मदा बांध के बावजूद आज तक क्यों नहीं मिला? सारा पानी उद्योगपतियों को दे दिया गया।
झूठ-शिरोमणि श्री अरविन्द केजरीवाल ने जो सवाल उछाले हैं उनकी सच्चाई का परीक्षण करते हुए अब हम उनके 16 सवालों का बारी-बारी से जवाब देंगे-
1) उस स्थिति में गैस के दाम बिल्कुल नहीं बढ़ाए जाएंगे बल्कि उनको तर्कसंगत रखा जाएगा जैसे कि अटल जी के समय में था। महंगाई को कम करने के लिए दाम में कमी भी की जा सकती है उसी तरह के उपायों द्वारा जैसे कि केजरीवाल ने दिल्ली में बिजली और पानी के दाम कम किए थे।
2) ठीक उसी तरह चलाएंगे जैसे कि दिल्ली में ठेके और फिक्स वेतन पर बहाल शिक्षक और परिवहन कर्मचारी केजरीवाल जी के 49 दिनों के महान शासन के बाद भी चला रहे हैं।
3) कहाँ देख लिया आपने कि गुजरात के अस्पतालों में इलाज की सुविधा नहीं है? गुजरात के ज्यादातर अस्पतालों में दिल्ली के अस्पतालों से भी ज्यादा अच्छी सुविधा है केजरीवाल के 49 दिनों के शासन के बाद भी।
4) जो लघु उद्योग प्रतिस्पर्धा में नहीं टिकेंगे वे बंद तो होंगे ही। क्या उनके बंद होने के लिए गुजरात सरकार सीधे-सीधे जिम्मेदार है? अभी पूरी दुनिया में मंदी का दौर था ऐसे में मांग कम होने पर लघु उद्योगों की हालत तो खराब होनी ही थी। भारत की विकास दर 5 प्रतिशत से भी कम हो गई है तो गुजरात अछूता कैसे रह सकता है?
5) किसानों की जमीनें बाजार भाव पर खरीदी गई हैं न कि कौड़ियों के भाव में। अगर ऐसा होता तो वहाँ के किसान भी प. बंगाल के किसानों की तरह विरोध जरूर करते।
6) जैसा कि अमित शाह पहले ही बता चुके हैं कि गुजरात सरकार के पास 3 जेट विमान और 8 हेलीकॉप्टर हैं और मोदी गुजरात सरकार के विमानों में उड़ान भरते हैं। जहाँ तक इसमें होनेवाले व्यय का सवाल है तो सारा खर्च पार्टी उठाती है जिसके फंड में पार्टी के करोड़ों कार्यकर्ता प्रति वर्ष 1000,5000 और 10000 रुपए का सदस्यता शुल्क देते हैं। इसके अलावा अभी पार्टी फंड में करोड़ों देशवासी खुलकर अपना योगदान दे रहे हैं।
7) सुप्रीम कोर्ट में तो सरकार पहले ही चली गई थी इसलिए अच्छा होगा कि दूध-का-दूध और पानी-का-पानी कोर्ट में ही हो जाए। जहाँ तक जमीन छीनने का सवाल है तो जमीन कोई कानून का उल्लंघन करके कैसे छीन सकता है गुजरात कोई कश्मीर तो है नहीं?
8) यह भी बताना पड़ेगा कि गुजरात में विकास कहाँ हुआ है? गुजरात की सड़कें और आधारभूत संरचना,वहाँ की विकास-दर खुद ही बताती है कि राज्य का कितना विकास हुआ है? आज भारतभर के मजदूरों की पसंदीदा कार्यस्थली गुजरात क्यों बना हुआ है अगर वहाँ का विकास नहीं हुआ है?
9) क्या सिर्फ आरोप लगने से ही कोई भ्रष्ट हो जाता है? क्या किसी कोर्ट ने उनको इसके लिए दोषी ठहराया है? क्या केजरीवाल के पास उनके पास कोई सबूत है जैसे कि कभी शीला दीक्षित के खिलाफ हुआ करते थे तो वे प्रस्तुत करें? भाजपा के आंतरिक लोकपाल ने अपनी जाँच में पाया है कि ये लोग पाक-साफ हैं।
10) आत्महत्या तो आईएएस भी करते हैं तो क्या वे गरीबी के कारण ऐसा करते हैं? आधुनिक जीवन-शैली ने आदमी के अकेलेपन को बढ़ा दिया है और आत्महत्या का सबसे बड़ा कारण तनाव है न कि गरीबी। अगर गरीबी इसका कारण होता तो गरीब राज्यों के किसान ज्यादा आत्महत्या करते। क्या केजरीवाल जी बताएंगे कि उनको ये झूठे आँकड़े कहाँ से मिले और कितने सालों में उनके कथनानुसार 800 किसानों ने आत्महत्या की? क्या वे बताएंगे कि विदर्भ में पिछले एक साल में कितने किसानों ने आत्महत्या की है?
11) जब रोजगार-कार्यालय में निबंधित 99 प्रतिशत बेरोजगारों को रोजगार मिल रहा है तो फिर कहाँ बेरोजगारी बढ़ रही है? गुजरात तो दूसरे राज्यों के भी लाखों बेरोजगारों को रोजगार दे रहा है तो वहाँ के लोग कैसे बेरोजगार हो सकते हैं?
12) फिर से झूठ। गुजरात में बिजली के पेंडिंग आवेदनों की संख्या हजारों में है न कि लाखों में और इन सबका निपटारा शायद कुछ महीनों में ही कर दिया जाएगा।
13) क्या अंबानी के दामाद को मंत्री बनने का अधिकार नहीं है? क्या वह अच्छा प्रशासक नहीं हो सकता? केजरीवाल बताएंगे कि सोनिया के दामाद को क्लिनचिट देनेवाले युद्धवीर सिंह को उन्होंने टिकट क्यों दिया? सोनिया के दामाद से उनका क्या रिश्ता है? अंबानी के दामाद पर तो फिर भी भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं है।
14) सरकारी स्कूल तो हर जगह बदहाल हैं। गुजरात के स्कूलों की हालत तो फिर भी अच्छी है। जब तक समाज के सम्मानित लोग अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में नहीं पढ़ाएंगे इनकी स्थिति नहीं सुधरेगी। क्या केजरीवाल बताएंगे कि उन्होंने अपने बच्चों को पढ़ने के लिए सरकारी स्कूलों में क्यों नहीं भेजा?
15) कोई ऐसा दावा नहीं कर सकता कि गुजरात के दफ्तरों में भ्रष्टाचार है ही नहीं लेकिन वहाँ पूरे भारत में सबसे कम भ्रष्टाचार जरूर है। ऐसा हम ऐसे ही नहीं बल्कि वहाँ रहनेवाले अपने रिश्तेदारों की आपबीति के आधार पर दावा कर रहे हैं।
16) कच्छ के किसानों को अगर सिंचाई के लिए पानी नहीं मिल रहा है तो फिर पंजाब के उन सिख किसानों के खेत में पानी क्या केजरीवाल पटाते हैं जिनका कि जिक्र उन्होंने अपने सवालों में किया है? नहरों में जब पानी आएगा तो उसमें से ही किसानों के साथ-साथ उद्योगपतियों को भी पानी दिया जाएगा। केजरीवाल जी बताएंगे कि क्या उनको उद्योग-धंधों से नफरत है? क्या वे चाहते हैं कि भारत की औद्योगिक विकास-दर ऋणात्मक हो जाए? भारत गुलाम हो जाए और पूरी तरह से बर्बाद हो जाए? क्या सीआईए ने आपको ऐसा ही करने को कहा है?
17) अब हम पूछेंगे और उत्तर देंगे आप केजरीवाल जी। आपका समय हुआ समाप्त और हमारा हुआ शुरू-क्या आप बताएंगे कि क्या आप सचमुच सीआईए के एजेंट हैं? क्या आदेश दिया है आपको अमेरिका में बैठे हुए आपके आकाओं ने? क्या आपका पाकिस्तानी आईएसआई के साथ भी कोई संबंध है? क्या इस खेल में आपके साथ-साथ कांग्रेस पार्टी भी शामिल है? क्या दिल्ली के मुख्यमंत्री की कुर्सी में खटमल है फिर उसने शीला दीक्षित को क्यों नहीं काटा? आपने अपना दिल्लीवाला सरकारी आवास तय समय में क्यों खाली नहीं किया? क्या आप उसको कभी खाली करेंगे भी? क्या आपको पता नहीं कि सामान्य शिष्टाचार कहता है कि किसी से मिलना हो तो पहले से समय ले लेना चाहिए? मोदी तो मोदी आप मुझ जैसे बेरोजगार से भी अगर बिना पहले से समय लिए मिलना चाहेंगे तो मैं भी आपसे नहीं मिलूंगा। यकीन नहीं हो तो प्रयास करके देख लीजिए। परसों आपकी कार का शीशा क्या सचमुच आपने खुद ही फोड़ा था जैसा कि कार के मालिक मनीष ब्रह्मभट्ट दावा कर रहे? आपने सच की तरह झूठ बोलना इसी जन्म में सीखा है या आपने कई जन्मों के परिश्रम के बाद इस काम में प्रवीणता प्राप्त की है?
हमको कोई हड़बड़ी नहीं है आप इत्मीनान से मेरे सवालों के उत्तर दे सकते हैं लेकिन उत्तर देने में झूठ नहीं बोलिएगा क्योंकि हमको झूठ से सख्त नफरत है। चलिए हम आपको एक सप्ताह का समय देते हैं मेरे इन आसान सवालों का उत्तर देने के लिए। हम नहीं मानते कि आपको इस सवालों के जवाब मालूम नहीं हैं बल्कि हम तो मानते हैं कि इन प्रश्नों के सबसे उम्दा जवाब आप ही दे सकते हैं। सवाल और भी हैं लेकिन मैं जानता हूँ कि आपको उत्तर देने की आदत नहीं है और आप मेरे द्वारा पूछे गए इन प्रश्नों के उत्तर नहीं देने जा रहे हैं इसलिए अभी इतना ही। जब आप मेरे इन प्रश्नों के उत्तर दे देंगे तो मैं आपसे निश्चित रूप से और भी सवाल पूछूंगा जो इन्हीं प्रश्नों की तरह अति सरल होंगे। (हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)

गुरुवार, 6 मार्च 2014

मेरी सरकार खो गई है हुजूर

06-03-2014,हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,मैं इन दिनों बहुत परेशान चल रहा हूँ। होऊँ भी क्यों नहीं मेरी सरकार जो खो गई है। आप कहेंगे कि मुझे थाना जाना चाहिए मगर वहाँ तो पहले से ही सरकार नहीं थी। सरकार को इंटरनेट पर भी ढूंढ़ा मगर वहाँ भी नहीं मिली।
मित्रों,दरअसल कुछ महीने पहले तक बिहार में सरकार नाम की चीज थी लेकिन अब नहीं है। ऐसा भाजपा के सरकार से हटने के कारण हुआ है या इसका कोई और कारण है मुझे नहीं पता। आज से बिहार में दसवीं की परीक्षा होनेवाली है। हजारों छात्र-छात्राओं को एडमिट कार्ड नहीं मिला। कहते हैं कि उनको स्कूल ने अंडर एज बना दिया है। कैसे बना दिया,क्यों बना दिया और बनानेवालों पर क्या कार्रवाई होगी या नहीं या इन बच्चों का क्या होगा कोई नहीं बता रहा है क्योंकि सरकार खो गई है हुजूर! मैं अब तक भ्रम में था कि बिहार में संवैधानिक सरकार चल रही है। तभी एक दिन ससुराल गया,कुबतपुर (भिखनपुरा)। लैपटॉप लेकर गया कि जेनरेटर की सायंकालीन बिजली से बैट्री चार्ज कर लूंगा और वहीं से समाचार डालूंगा। मगर उस शाम जेनरेटर की बिजली आई ही नहीं। फिर सोंचा कि गांव में बिजली लाई जाए।  सो हाजीपुर वापस लौटते ही पहले वैशाली जिले के बिजली विभाग के कार्यपालक अभियंता को फोन लगाया। श्रीमान को बताया कि इस गांव में 8 साल से ट्रांसफार्मर जला हुआ है और ठेकेदार 20000 रुपया घूस में मांग रहा है। महोदय ने छूटते ही कहा कि वे इस बारे में कुछ नहीं कर सकते। मैंने पूछा कि फिर कौन कर सकता है तो बताया गया कि वहाँ ट्रांसफार्मर पॉवर ग्रिड कारपोरेशन ऑफ इंडिया के माध्यम से लग रहा है। फिर इंटरनेट पर खोजखाज कर ग्रिड कारपोरेशन का नंबर निकाला। फोन करने पर फोन उठानेवाले महाशय ने एक नंबर देकर बताया कि इस नंबर पर फोन करिए कोई झा जी उठाएंगे। फिर मैं दिनभर फोन करता रहा मगर किसी ने फोन नहीं उठाया। फिर मैंने सोंचा कि हाजीपुर के सांसद रामसुंदर दास से शिकायत करता हूँ मगर उनका तो फोन ही ऑफ था शायद रमई राम ने मीडिया में कोई बयान दे दिया था जिससे दासजी नाराज हो गए थे। वैसे इससे पहले भी मैं इसी मामले में उनको फोन कर चुका हूँ लेकिन तब भी उनके पीए ने उनसे बात नहीं होने दी थी और टाल दिया था। उनके पुत्र और राजापाकर के विधायक संजय कुमार जी का नंबर तो चुनाव जीतने के बाद से ही हमेशा ऑफ रहता है इसलिए उस दिन भी ऑफ था। बिजली बोर्ड के संजय अग्रवाल को भी फोन मिलाया तो पता चला कि वे मीटिंग में हैं। फिर फोन लगाया बिजली मंत्री को। पीए ने कहा कि मंत्रीजी हाऊस में हैं फैक्स कर दीजिए। अंत में थकहारकर एक समाचार बनाया 17 फरवरी को 'एक गांव सुशासन ने जिसकी रोशनी छीन ली' शीर्षक से और उसको बिहार के मुख्यमंत्री,ऊर्जा मंत्री,संजय अग्रवाल जी,पावर ग्रिड ऑफ इंडिया को भी ईमेल कर दिया। कुछ दिन बाद बिजली विभाग से अधिकारी गांव आए भी और सतही पूछताछ करके वापस चले गए और गांववालों की जीते जी दोबारा बिजली देखने की उम्मीद धरी-की-धरी रह गई। दोबारा भी एक खबर बनाई 3 मार्च को 'फिर किस मुँह से वोट मांगेंगे नीतीश कुमार?' शीर्षक से,फिर से सबको ईमेल किया लेकिन अभी तक ट्रांसफार्मर और ट्रांसफार्मर लगानेवाले ठेकेदार का कहीं अता-पता नहीं है। सोंच रहा हूँ कि अब किसको ईमेल करूँ एंजिला मार्केल को या ओबामा को?
मित्रों,इसी बीच मेरे वयोवृद्ध चाचाजी हाजीपुर आए और बताया कि मेरे गांव जुड़ावनपुर बरारी में पिछले 2 सालों से न तो वृद्धावस्था पेंशन का और न ही विधवा पेंशन का ही वितरण हुआ है। मैं सुनकर सन्नाटे में आ गया यह सोंचकर कि ऐसा कैसे हो सकता है? सरकार तो वृद्धों और महिलाओं का बहुत सम्मान करती है। तुरंत बीडीओ को फोन मिलाया। उसने बताया कि हमारी पंचायत का पंचायत सेवक रविशंकर प्रसाद कई महीनों से ड्यूटी पर नहीं आ रहा है। मैंने पूछा कि वेतन कैसे पा जाता है तो उन्होंने बताया कि उनको पता नहीं। फिर किसे पता होगा तो कहने लगे कि यह भी मुझे नहीं पता। फिर मैंने कहा कि शशिभूषण जी आपके प्रखंड कार्यालय में तो लाभार्थियों की सूची होगी न उससे क्यों नहीं बँटवाते हैं तो उन्होंने आश्वासन दिया कि इसी आगामी सोमवार से बँटवा देंगे। लेकिन देखते-देखते कई सोमवार बीत गए पेंशन नहीं बँटा। इसी बीच मेरे चाचाजी फिर से हाजीपुर आए और बताया कि एक-एक व्यक्ति का 10-10 हजार से ज्यादा का पेंशन मद में सरकार पर बकाया हो गया है। मैंने फिर से सरकार को ढूंढ़ने की कोशिश की और इस बार सीधे डीएम को फोन किया। तारीख थी-28 फरवरी।  उन्होंने बड़ा छोटा-सा उत्तर दिया कि देखता हूँ। अभी कल चाचाजी ने बताया कि अब तक भी पैसा नहीं मिला है ऊपर से बच्चों को छात्रवृत्ति भी नहीं मिली है। कल ही फिर से मैंने डीएम को फोन लगाया तो फिर से उनका वही उत्तर था कि देखते हैं। वह कैसे देखते हैं कि देखते ही नहीं हैं यह तो उनको ही पता होगा। फिर मैंने राघोपुर विधायक सतीश कुमार को फोन लगाया। उन्होंने फोन तो नहीं उठाया लेकिन उधर से पलटकर फोन जरूर किया। मैंने जब समस्या बताई तो कहा कि वे अकेले क्या करें यहाँ तो हर कोई भ्रष्ट है। पहलेवाला बीडीओ पूरा गोबर था। उसकी बदली करवा दी है। नई बीडीओ आई है अब शायद पेंशन बँट जाए। जब मैंने छात्रवृत्ति का मुद्दा उठाया तो उन्होंने बताया कि सरकार ने ही स्कूलों में कम पैसा भेज दिया है। शिक्षक छात्रों द्वारा पीटे जाने के डर से बाँटने को तैयार ही नहीं हैं सो उन्होंने नियमावली बना दी है कि सबसे पहले पैसा एससी को,फिर अतिपिछड़ों को,फिर पिछड़ों को और अगर फिर भी पैसा बच जाए तो सामान्य वर्ग को दिया जाए मगर शिक्षक फिर भी हंगामे से डर रहे हैं।
मित्रों, तत्क्षण मेरी समझ में आ गया कि जिले के विभिन्न स्कूलों में छात्रवृत्ति को लेकर हंगामा क्यों हो रहा है। यह आग तो खुद सरकार ने ही लगाई है। उसी सरकार ने जिसको मैं ढूंढ़ रहा हूँ और जो मेरे खोजने से भी नहीं मिल रही है। न जाने कहाँ गुम हो गई है हमारी सरकार? कहाँ जाकर ढूंढूँ समझ में नहीं आता? मैं कोई अफीमची तो हूँ नहीं कि पैसा कहीं भी अंधेरे में गिरे उसे उजाले में जाकर ही ढूंढूंगा नहीं तो अमेरिका या जर्मनी जाकर ढूंढ़ता। इसी बीच राघोपुर का पीपा पुल फिर से टूट गया है मगर मुझमें इतनी हिम्मत नहीं बची है कि मैं किसी को फोन करूँ। वैसे आपने अगर कहीं हमारी सरकार को देखा तो जरूर बताईगा। मुझे अपने गांव में पेंशन और छात्रवृत्ति बँटवानी है और अपनी ससुराल में बिजली लानी है। (हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)

सोमवार, 3 मार्च 2014

फिर किस मुँह से वोट मांगेंगे नीतीश कुमार?

3-3-2014,कुबतपुर (भिखनपुरा) (देसरी)। ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,वर्ष 1995 में विधानसभा चुनाव का प्रचार पूरे शबाब पर था। नीतीश कुमार जनता दल से अलग हो चुके थे और समता पार्टी का गठन कर चुके थे। नीतीश हरनौत से विधानसभा सदस्यता के लिए उम्मीदवार भी थे। तब उनका भारतीय जनता पार्टी से गठबंधन नहीं हुआ था। तभी नीतीश ने लालू को चुनौती दी कि वे एक बार भी वोट मांगने हरनौत नहीं जाएंगे और फिर भी चुनाव जीत जाएंगे। बाद में उन्होंने ऐसा किया भी और चुनाव भी जीते। हालांकि लालू ने उनकी चुनौती स्वीकार तो कर ली लेकिन बाद में बात से मुकरते हुए कई-कई बार राघोपुर का दौरा किया।
मित्रों,एक बार फिर से उन्हीं नीतीश कुमार ने उसी तरह का दावा किया है। मुख्यमंत्री जी का कहना है कि वर्ष 2015 के विधानसभा चुनावों की घोषणा से पहले अगर बिहार के प्रत्येक गांव में बिजली नहीं पहुँची तो वे विधानसभा चुनावों में जनता से वोट ही नहीं मांगेंगे। जाहिर है इस बार नीतीश कुमार जी के समक्ष चुनौती 1995 के मुकाबले काफी कठिन है। बिहार में अभी भी हजारों गांव ऐसे हैं जो बिजली की रोशनी से वंचित हैं और विधानसभा चुनावों की घोषणा होने में डेढ़ साल से भी कम समय बचा है। चुनौती इसलिए भी ज्यादा कड़ी है क्योंकि बिहार की अफसरशाही नहीं चाहती कि बिहार के प्रत्येक गांव में बिजली पहुँचे। बिहार राज्य विद्युत बोर्ड के अधिकारी नहीं चाहते कि बिहार के प्रत्येक गांव में रहनेवालों तक विकास की रोशनी पहुँचे।
मित्रों,जैसा कि आप जानते हैं कि मैंने 17 फरवरी,2014 को एक समाचार 'एक गांव सुशासन ने जिसकी रोशनी छीन ली' लिखा था जिसमें मैंने एक ऐसे गांव कुबतपुर (भिखनपुरा) के दर्द को शब्द प्रदान किया था जिसकी बिजली सुशासन बाबू के शासन में ही छिन गई लगभग 700 की आबादी वाले इस गांव ने वर्ष 2006 से बिजली की रोशनी नहीं देखी। पिछले 8 साल से दिन ढलते ही पूरा गांव अंधेरे के महासागर में डूब जाता है। मेरे लिखने और समाचार को मुख्यमंत्री, ऊर्जा मंत्री और बिजली विभाग के आला अधिकारियों को ई-मेल करने के कुछ दिन बाद विभाग अधिकारियों की एक टीम गांव पहुँची और पूछताछ की। पता चला कि वे लोग वहाँ मुझे खोज रहे थे।
मित्रों,मैं एक पत्रकार हूँ क्या यह संभव है कि मैं हर जगह मौजूद रहूँ? वैसे अगर कोई चाहे तो मुझसे मेरे नंबर 7870256008 पर जब चाहे बात कर सकता है। गांववालों को लगा कि अब उनकी मुश्किलों के हल होने के दिन निकट आ गए हैं लेकिन फिर सबकुछ पूर्ववत हो गया। न तो गांव में ठेकेदार आया और न ही जला हुआ ट्रांसफॉर्मर ही लगा। कदाचित् बिजली बोर्ड वाले भी चाहते हैं कि गांववाले ठेकेदार की रिश्वत की मांग को मान लें या फिर वे चाहते हैं कि अंधेरा कायम रहे। ऐसे में सवाल यह उठता है कि अगर इस गांव सहित बिजली से वंचित हजारों गांवों में विधानसभा चुनावों की घोषणा तक बिजली नहीं आई तो फिर नीतीश कुमार चुनावों में वोट किस मुँह से मांगेंगे? 1995 में तो उन्होंने अपनी प्रतिज्ञा की पूरे मनोयोग से रक्षा की थी तो क्या वे इस बार अपनी प्रतिज्ञा को तोड़ देंगे? (हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)