सोमवार, 21 जुलाई 2014

नई गरीबी रेखा पर चुप क्यों है मोदी सरकार?

21-07-2014,हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,15 दिन हुए जब रंजराजन समिति ने गरीबी को मापने के लिए नए पैमानेवाली रिपोर्ट मोदी सरकार को सौंपी थी। हमें उम्मीद थी थी कि आदत के मुताबिक नरेंद्र मोदी इस रिपोर्ट पर तीव्र और तीखी प्रतिक्रिया देंगे और सिरे से रिपोर्ट को नकार देंगे। आखिर सवाल गरीबों की ईज्जत का था। याद करिए चुनाव प्रचार जब नरेंद्र मोदी पानी पी-पीकर मनमोहन सरकार पर शहरों के लिए 33 रुपए प्रतिदिन और गांवों के लिए 27 रुपये प्रतिदिन व्यय का पैमाना देकर भारत के गरीबों का अपमान करने और मजाक उड़ाने के आरोप लगा रहे थे। प्रश्न उठता है कि क्या अब शहरों के लिए 47 रुपए प्रतिदिन और गांवों के लिए 32 रुपए प्रतिदिन व्यय का सरकारी पैमाना गरीबों का अपमान नहीं कर रहा है या उनका मजाक नहीं उड़ा रहा है?

मित्रों,अगर श्री नरेंद्र मोदी भी इसे अपमान या मजाक मानते हैं तो फिर रिपोर्ट की सुपुर्दगी के बाद एक पखवाड़ा बीत जाने के बाद भी उन्होंने या उनकी सरकार ने इसको क्यों नहीं नकारा है? क्या उनकी चुप्पी से जनता यह मतलब निकाले कि मनमोहन और मोदी में सिर्फ 32 और 47 का फर्क है यानि नरेंद्र मोदी ने इस रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया है? गरीबों का मजाक मनमोहन ने भी उड़ाया था और अब मोदी भी उड़ा रहे हैं। हमें यह भी देखना होगा कि मुद्रास्फीति की दर को देखते हुए अगर तेंदुलकर समिति की रिपोर्ट सही भी थी तो 47 रुपए की गरीबी-सीमा काफी कम है। मोदी चुनाव प्रचार के समय और प्रधानमंत्री बनने के बाद लगातार यह दोहराते आ रहे हैं कि उनकी सरकार गरीबों की सरकार होगी। तो क्या गरीबों की गरीबी का मजाक उड़ाकर वे देश में गरीबों की सरकार स्थापित कर रहे हैं?

मित्रों,मैं यह नहीं कहता कि सरकार को गरीबों को मुफ्तखोर बना देना चाहिए लेकिन सरकार गरीबी को स्वीकार तो करे। संयुक्त राष्ट्र संघ कह रहा है कि दुनिया के सबसे गरीब लोगों की एक तिहाई आबादी भारत में है। भारत सरकार को भी आय-वर्ग के आधार पर तीन श्रेणियों का निर्माण करना चाहिए। एक वे जो वास्तव में अमीर हैं,दूसरे वे जो अभावों में जी रहे हैं लेकिन हालत उतनी खराब नहीं है और तीसरे में वे लोग हों जो बेहद गरीब हैं। हमारे हिसाब से रंजराजन समिति ने जो व्यय-सीमा अपनी रिपोर्ट में दी है उसके अनुसार जीनेवाले लोग बेहद गरीब की श्रेणी में ही आ सकते हैं गरीब की श्रेणी में नहीं।

मित्रों,गरीबों को सब्सिडी पर तो मीडिया लगातार सवाल उठाती रहती है लेकिन उससे कई गुना ज्यादा जो सब्सिडी सरकार अमीरों को दे रही है उस पर चुप्पी साध जाती है। सब्सिडी निश्चित रूप से बुरी चीज है और सबसे बुरी चीज है उस सब्सिडी का गरीबों तक न पहुँच पाना यानि बीच में ही भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाना। अच्छा हो कि सरकार गरीबी को मापने के लिए तर्कसंगत पैमाना बनाए,सब्सिडी को गरीबों तक पहुँचाने की दिशा में आ रही रूकावटों को दूर करे और गरीबों को खैरात बाँटने के बदले रोजगार दे और इस काम को पहली प्राथमिकता दे तब न तो उसको गरीबों की संख्या को जबरन कम करके दिखाना पड़ेगा और न ही देश के गरीबों को पागलपनभरी,बेसिर पैर की  सरकारी आंकड़ेबाजी से खुद को अपमानित ही महसूस करना पड़ेगा।

(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)

कोई टिप्पणी नहीं: