रविवार, 14 सितंबर 2014

यह मेरा हिन्दी दिवस नहीं है दोस्त!

14 सितंबर,2014,हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,पिछले कई दशकों से जबसे मैंने होश संभाला है मैं देखता आ रहा हूँ कि भारत और दुनियाभर के हिन्दी जन आज 14 सितंबर को हिन्दी दिवस के रूप में मनाते हैं। पता नहीं क्यों मनाते हैं? न तो इस दिन भारत में पहली बार हिन्दी बोली गई और न ही इस दिन हिन्दी को देश की राष्ट्रभाषा घोषित किया गया। अलबत्ता 14 सितंबर,1949 को हिन्दी के साथ धोखा जरूर किया गया था जब यह कहा गया कि हिंदी भारतीय गणतंत्र की राजभाषा तो होगी लेकिन तबसे जब यह इसके लायक हो जाएगी। लायक तो भारत 1947 में प्रजातंत्र के लिए भी नहीं था फिर क्यों लागू किया वयस्क मतदान वाले प्रजातंत्र को? संविधान के अनुच्छेद 343 (2) के अनुसार इसे भारतीय संविधान लागू होने की तारीख़ अर्थात् 26 जनवरी, 1950 ई. से लागू नहीं किया जा सकता था, अनुच्छेद 343 (3) के द्वारा सरकार ने यह शक्ति प्राप्त कर ली कि वह इस 15 वर्ष की अवधि के बाद भी अंग्रेज़ी का प्रयोग जारी रख सकती है। रही–सही क़सर, बाद में राजभाषा अधिनियम, 1963 ने पूरी कर दी, क्योंकि इस अधिनियम ने सरकार के इस उद्देश्य को साफ़ कर दिया कि अंग्रेजों के शासन के खात्मे के बाद भी अंग्रेज़ी की हुक़ूमत देश पर अनन्त काल तक बनी रहेगी। इस प्रकार, संविधान में की गई व्यवस्था 343 (1) हिन्दी के लिए वरदान थी परन्तु 343 (2) एवं 343 (3) की व्यवस्थाओं ने इस वरदान को अभिशाप में बदल दिया। वस्तुतः संविधान निर्माणकाल में संविधान निर्माताओं में जन साधारण की भावना के प्रतिकूल व्यवस्था करने का साहस नहीं था, इसलिये 343 (1) की व्यवस्था की गई। परन्तु अंग्रेज़ीयत का वर्चस्व बनाये रखने के लिए 343 (2) एवं 343 (3) से उसे प्रभावहीन कर देश पर मानसिक ग़ुलामी लाद दी गई।
मित्रों,मैं तो हिन्दी दिवस उस दिन की याद में मनाऊंगा जब हिन्दी को वास्तव में भारत की राष्ट्रभाषा और राजभाषा घोषित कर दिया जाएगा। जब हमारा संविधान कहेगा कि आज से और अभी से हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा और राजभाषा है न कि यह कि हिन्दी भारतीय गणतंत्र की राजभाषा तो होगी लेकिन कब पता नहीं। यह हम हिन्दीभाषियों और हिन्दी भाषा के लिए हर्ष का विषय है कि इस समय भारत की बागडोर एक ऐसे प्रधानमंत्री के हाथों में है जो देश तो क्या विदेश में भी हिन्दी ही बोलता है। इतना ही नहीं वर्तमान केंद्र सरकार हिन्दी को लेकर काफी संवेदनशील भी है जिसका प्रमाण हमें तब मिला जब सी-सैट में हिन्दी भाषा के पक्ष में सरकार ने निर्णय दिया। परन्तु सच्चाई यह भी है कि वर्तमान केंद्र सरकार अभी संसद में इतनी ताकतवर नहीं है कि वह बेझिझक होकर हिन्दी को राष्ट्रभाषा घोषित करने का फैसला ले सके। इसलिए हम हिन्दी जनों को चाहिए कि आनेवाले विधानसभा चुनावों में एनडीए को भारी बहुमत से जिताकर राज्यसभा में भी उसका बहुमत स्थापित करें जिससे उसके पास यह बहाना नहीं रह जाए कि अगर हमारे पास दोनों सदनों में हिंदी को राष्ट्रभाषा घोषित करने लायक बहुमत होता तो हम जरूर ऐसा करते। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यह केंद्र सरकार हिन्दी की ताकत को बखूबी जानती है इसलिए यह जरूर हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनने की ताकत दे सकती है।
मित्रों, हिंदी बहती नदी है और लगातार नई होती रहती है इसलिए उसका विकास भी हो रहा है लेकिन हम देखते हैं कि अभी भी हिन्दी में विज्ञान और इंजीनियरिंग की पुस्तकें कम हैं और अगर हैं भी तो उनकी भाषा ऐसी है जो हमारी रोज की बोलचाल की भाषा से बिल्कुल ईतर है इसलिए इस ओर ध्यान देना पड़ेगा। यह भी कटु सत्य है कि हम अब अपने बच्चों को हिन्दी माध्यम से शिक्षा देना नहीं चाहते जिससे हिन्दी को भारी नुकसान हुआ है क्योंकि अपेक्षाकृत ज्यादा तेज दिमागवाले बहुमत युवा भले ही कामचलाऊ हिंदी जानते हों लेकिन वे हिंदी से प्रेम नहीं करते,अपने हिन्दी ज्ञान पर गर्व नहीं करते। ऐसे हालात में भला कैसे हिन्दी का कारवाँ आगे बढ़ेगा? यह भी सच है कि आजादी के पहले भी हिन्दी के लेखक और कवि गरीबी में दिन गुजारते थे और आज आजादी के 67 साल बाद भी मुफलिसी ही उनकी किस्मत है,जिंदगी है। बदलते परिवेश में हमें ऐसे प्रबंध करने होंगे जिससे इंटरनेट पर हिन्दी साहित्य उपलब्ध हो और इस तरह से उपलब्ध हों कि पढ़नेवालों को पढ़ने से पहले कुछ आर्थिक योगदान जरूर करना पड़े। तभी हिन्दी साहित्य बचेगा और हिन्दी के साहित्यकार बचेंगे क्योंकि आज के युवा किताबों के पन्ने पलटने में यकीन नहीं रखते बल्कि वे तो सीधे गूगल बाबा की शरण लेते हैं।

(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)

कोई टिप्पणी नहीं: