शुक्रवार, 31 जुलाई 2015

एफआईआर दर्ज करवाकर पछता रहे हैं सुरेश बाबू

हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों, सही पहचाना आपने! मैंने बताया तो था आपको 13 मार्च,2015 को उनके बारे में। हमने खबर लगाई तो थी। शीर्षक था-कानून नहीं थानेदारों की मर्जी से चलते हैं बिहार के थाने
ये वही सुरेश बाबू हैं मेरे मित्र रंजन के ससुर,पिता का नाम-स्व. रामदेव सिंह,साकिन-गुरमिया,थाना-सदर थाना,हाजीपुर,जिला-वैशाली। बेचारे के साथ इसी साल के 10 मार्च को सदर थाना परिसर से दक्षिण सटे एक्सिस बैंक के एटीएम के साथ धोखा हुआ और किसी लफंगे ने उनकी मदद करने के बहाने उनके खाते से 16000 रुपये निकाल लिए। बेचारे भागे-भागे हमारे पास आए। हमने लगे हाथों 12 मार्च,2015 को सदर थाने में एफआईआर के लिए अर्जी डाल दी ताकि पुलिस से अपराधी का पता लगाकर बुजुर्ग सुरेश बाबू को न्याय मिल सके।
मित्रों,उसके बाद कई दिनों तक रोज सुबह-शाम सुरेश बाबू का फोन मेरे पास आता कि एफआईआर दर्ज हुआ कि नहीं। फिर मैं इंस्पेक्टर को फोन करता। जब थाने के चक्कर लगाते दो दिन बीत गए तब मैंने एसपी को फोन किया। एसपी साहब से जब भी बात होती लगता जैसे वे सोकर उठे हों। इस प्रकार किसी तरह से दिनांक 17 मार्च को एफआईआर दर्ज हुआ। थाने में मौजूद एक फरियादी से पता चला कि बिना हजार-500 रुपये लिए एफआईआर दर्ज ही नहीं किया जाता।
मित्रों,हमने तुरंत सुरेश बाबू को सूचित किया और कहा कि कल जाकर एफआईआर की कॉपी ले जाईए। मगर यह क्या जब वे थाने में एफआईआर की कॉपी लेने गये तो मुंशी ने उनसे 500 रुपये की रिश्वत की मांग कर दी। मैंने उनको मुंशी से बात करवाने को कहा तो मुंशी फोन पर ही नहीं आया। फिर मैंने उनसे कहा कि आराम से घर जाईए क्योंकि यह पुलिस कुछ नहीं करनेवाली है क्योंकि हम उसे एक चवन्नी की भी रिश्वत नहीं देंगे और वे बिना पैसे लिए कुछ करेंगे नहीं। सुरेश बाबू बेचारे दिल पर पत्थर रखकर अपने घर चले गए और ठगे गए 16000 रुपयों से संतोष कर लिया।
मित्रों,फिर परसों अचानक सुरेश बाबू का फोन आया कि सदर थाने से उनको फोन गया था। वे काफी घबराए हुए थे। कहा कि पुलिस ने पैसा तो ऊपर किया नहीं फिर तंग क्यों कर रही है? मैंने कल उनको सदर थाने में आने को कहा। कल जब हम सदर थाने पहुँचे तो इंस्पेक्टर साहब अपने चेंबर में नहीं थे। मैंने अन्य पुलिसवालों से फोन के बारे में पूछा तो उन्होंने हमलोगों पर ही इल्जाम लगाया कि हम एफआईआर करके सो गए। हमने सीधे-सीधे कहा कि मुंशी ने एफआईआर की कॉपी देने के पैसे मांगे और घूस देना हमारी फितरत में नहीं है इसलिए हम निराश होकर थाने नहीं आए।
मित्रों,उनलोगों की सलाह पर जब हमने उस नंबर पर पलटकर फोन किया जिससे हमें फोन गया था तो पता चला कि श्रीमान् थाने के पीछे केस डायरी के पन्ने काले कर रहे हैं। पिछवाड़े में जाने पर पता चला कि उनका नाम लक्ष्मण यादव है और वे गया जिले के रहनेवाले हैं। वे हमारे केस के आईओ यानि अनुसंधान अधिकारी हैं। बेचारे काफी परेशान दिखे। अरे,हमारे लिए नहीं बल्कि खुद के लिए। उनको अपनी नौकरी बचाने की फिक्र थी। उन्होंने हमसे दरख्वास्त की कि हम उनको सुरेश बाबू के चार परिचितों के नाम लिखवा दें जिनका नाम वे गवाह के रूप में केस डायरी में लिखेंगे और केस को समाप्त करने के लिए कोर्ट में अर्जी दे देंगे। सुरेश बाबू से पूछा तो बोले कि पैसा तो अब मिलने से रहा गवाह के नाम लिखवा देते हैं झंझट खत्म हो जाएगा।
मित्रों,इस तरह सुरेश बाबू का मुकदमा हाजीपुर की पुलिस ने खल्लास कर दिया। हमने कहा लक्ष्मण बाबू कम-से-कम अब तो हमें एफआईआर की कॉपी दे दीजिए। बेचारे ने मना भी नहीं किया वो भी बिना रिश्वत लिए। हमने पूछा कि इस केस में आपको क्या करना चाहिए था आप जानते हैं क्या तो वे बोले नहीं। फिर हमने अपनी तरफ से पहल करके बताया कि आपको एटीएम का सीसीटीवी फुटेज देखना चाहिए था और अपराधी को पकड़ना चाहिए था क्योंकि जबतक वो अपराधी बाहर रहेगा थाना क्षेत्र में इस तरह की ठगी की घटनाएँ होती ही रहेंगी। बेचारे लक्ष्मण यादव कुछ बोले नहीं सिर्फ सुनते रहे और हम भी आहिस्ता-आहिस्ता चलते हुए थाने से बाहर आ गए। वैसे सुरेश बाबू को एफआईआर दर्ज करवाने का पछतावा तो है लेकिन इस घटना से उन्होंने एक सीख भी ली है। और अब बेचारे ने एटीएम कार्ड से पैसा निकालना ही छोड़ दिया है।

हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित।

रविवार, 19 जुलाई 2015

बिहार सरकार स्वयं दे रही है बिजली कंपनी में भ्रष्टाचार को प्रश्रय!

मित्रों,बिहार सरकार की मानें तो गत 5 वर्षों में बिजली चोरी से बिहार के सरकारी खजाने को लगभग 7000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। ऐसी स्थिति में किसी भी सुशासनी सरकार से ऐसी उम्मीद की जाती है कि वो चोरी रोकने के लिए कठोर कदम उठाएगी लेकिन बिहार सरकार कर रही है इसका ठीक उल्टा।  बिहार सरकार ने बिजली चोरी में उत्तरोत्तर वृद्धि के मद्देनजर बड़े धनवानों द्वारा बिजली चोरी को बढ़ावा देने के लिए ऐसे कदम उठाए हैं जिनसे गरीब राज्य बिहार के खजाने को अरबों का धक्का लगा है वहीं सरकार के कृपापात्र व्यवसायियों को काफी लाभ हुआ है। मुलाहिजा फरमाईए।
1.बिजली सरकार ने कई दशकों से कार्यरत विद्युत निगरानी कोषांग को बंद कर दिया है। यह कोषांग विशिष्ट रूप से ऊर्जा चोरी एवं बोर्ड के वैसे जनसेवक जो कदाचारपूर्ण कृत्यों में लिप्त होकर बिजली चोरी में सहायता करते थे,उन पर निगरानी रखने के लिए गठित किया था।
2. बिहार राज्य ने निगरानी पुलिस को बिजली चोरी के मामले में हस्तक्षेप को निषेध कर दिया है।
3. बिहार राज्य ने बिजली कंपनी के वैसे जनसेवक जो कदाचारपूर्वक उपभोक्ताओं से बिजली चोरी करवाकर नाजायज लाभ पहुँचाते हैं उन्हें भ्रष्टाचार अधिनियम 1988 के दायरे से मुक्त कर दिया है।
4. बिहार राज्य विद्युत नियामक आयोग ने वर्ष 2007 में बिहार विद्युत आपूर्ति अधिनियम की कंडिका 114 के तहत यह प्रावधान किया है कि बिजली चोरी करते हुए पकड़े जाने के बाद भी अगर कोई उपभोक्ता स्वैच्छिक घोषणा करता है तो उसे एक निश्चित अवधि के लिए औसत विपत्र देकर आपराधिक कांड और जुर्माना एवं दंडात्मक विपत्र से मुक्ति मिल सकती है। इस बात की पुष्ट जानकारी है कि कम-से-कम एक बड़े उपभोक्ता को निगरानी कोषांग के द्वारा 21 करोड़ रुपये की बिजली चोरी करते हुए रंगे हाथ पकड़े जाने के बाद भी एक करोड़ रुपये की स्वैच्छिक घोषणा कर आपराधिक कांड से मुक्त कर दिया गया है। 2007 से अब तक इसका लाभ सिर्फ बड़े HHT/HT एवं रसूख वाले उपभोक्ताओं ने ही उठाया है या फिर उनको ही उठाने दिया गया है।
5.बिजली बोर्ड ने प्रभावशाली और बड़े उपभोक्ताओं तथा साधारण उपभोक्ताओं के लिए अलग-अलग विधिक प्रावधान बना रखा है।
6.वर्ष 2007 में बोर्ड ने टोका फंसाकर 60000 रुपये की बिजली चोरी करनेवाले उपभोक्ताओं पर कांड दर्ज कराया। उपभोक्ता के पक्ष में उच्च न्यायालय ने फैसला दिया कि पुलिस को नए विद्युत अधिनियम 2003 में कांड दर्ज कर अनुसंधान करने का कोई अधिकार ही नहीं है। बोर्ड ने इस मामले के विरूद्ध उच्चतम न्यायालय में अपील की और यह कहा कि बिजली अधिनियम 2007 में प्रावधान संशोधित हो चुके हैं। परिणामस्वरूप उच्चतम न्यायालय ने फैसला बोर्ड के पक्ष में सुनाया और अभियुक्त आरोपपत्रित होकर जेल चले गए। इतना ही नहीं हाजीपुर में कई बिजली उपभोक्ताओं पर मीटर को बाईपास कर बिजली जलाने पर मुकदमा कर दिया गया। बाद में बिल जमा कर देने के बाद कहा गया कि कोर्ट फीस जमा कर देने पर मामले को समाप्त कर दिया जाएगा। लेकिन 3000 रुपये से भी ज्यादा कोर्ट फीस के नाम पर जमा करवाने के बाद भी 7000रुपये बकाये का नोटिस भेजा जाता रहा।
7.परंतु बोर्ड ने 20 करोड़ रुपये की चोरी के मामले में दायर सी.डबल्यू.जे.सी. 921/09 आदि में बोर्ड ने उच्चतम न्यायालय में अपने इस स्टैंड से बिल्कुल भिन्न स्टैंड लेते हुए कहा कि निगरानी (पुलिस) को बिजली चोरी का कांड दर्ज करने का अधिकार ही नहीं है तथा भारतीय विद्युत अधिनियम 1910 के तहत जारी यह अधिसूचना विद्युत अधिनियम 2003 के लागू होने के बाद प्रभावी नहीं रही। इस मामले में 20 करोड़ रुपये की राशि की बिजली चोरी का मामला था। बिजली बोर्ड के इस स्टैंड से अतिधनवान उपभोक्ता एवं उनकी मदद करनेवाले बोर्ड के अध्यक्ष और अन्य इंजीनियर बरी हो गए। बोर्ड ने उच्चतम न्यायालय में एस.एल.पी. दायर करना भी मुनासिब नहीं समझा।
मित्रों,यह घोर आश्चर्य का विषय है कि जहाँ वर्ष 2012-13 में बोर्ड ने 4000 छोटी चोरी में शामिल उपभोक्ताओं से कई करोड़ रुपयों की वसूली की वहीं इसी वर्ष में बिजली बोर्ड की निगरानी कोषांग द्वारा वर्ष 2003 से 2006 में दर्ज किए गए 6 मुकदमें जिनमें कई सौ करोड़ की राशि निहित थी माननीय उच्च न्यायालय द्वारा खारिज कर दिए गए। बिजली बोर्ड ने न तो औपचारिक रूप से इसका विरोध किया और न ही उच्चतम न्यायालय में अपील ही की।
मित्रों,बिजली बोर्ड एक षड्यंत्र के तहत कई सालों से बड़े उपभोक्ताओं की चोरी को संस्थागत संरक्षण देकर कदाचारपूर्ण कृत्य करता है परंतु यह दिखाने के लिए कि वह बिजली चोरी रोकने के लिए कृतसंकल्पित है गरीब उपभोक्ताओं पर महत्तम शक्ति एवं निरोधात्मक कार्रवाइयाँ करता है। बिजली बोर्ड ने आज भी बहुत सूझबूझ तथा शातिराना ढंगे से बड़े-बड़े उपभोक्ताओं को पुराने मामले से भी मुक्त कराने का जो अभियान चला रखा है,उसकी शुरुआत वस्तुतः तत्कालीन अध्यक्ष स्वप्न मुखर्जी के कार्यकाल में वर्ष 2008 में हुई थी और इस दुरभिसंधि में उन्हें सरकार के शीर्षस्थ स्तर पर पदासीन पदाधिकारियों का पूरा सहयोग मिला था। तब माननीय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी को भी इस मामले की पूरी जानकारी थी और उन्होंने भी इस भ्रष्टाचार के खेल को रोकने के बजाए प्रश्रय ही दिया था। बाद में विद्युत निगरानी कोषांग के महानिदेशक आनंद शंकर द्वारा दीना आयरन स्टील,दीना मेटल्स और दादीजी स्टील जैसे बड़े चोरों पर कांड दर्ज होने और इनकी अवैध तरीके से मदद करने के आरोप में बोर्ड अध्यक्ष के खिलाफ कोषांग के उनके बाद महानिदेशक बने मनोजनाथ द्वारा मुकदमा दर्ज करने के बाद कोषांग को बिहार सरकार ने वर्ष 2012 में बंद ही कर दिया। इसके बाद से ही जहाँ से बोर्ड के अध्यक्ष और इंजीनियरों की मोटी कमाई हो रही है वहाँ बिजली चोरी जारी है और बाँकी जगहों पर तड़ातड़ छापेमारी की जा रही है।

हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित

गुरुवार, 16 जुलाई 2015

अगले 25 सालों में भारत बन सकता है आर्थिक महाशक्ति मगर.......

मित्रों,अभी दो दिन पहले ही भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के एक बयान पर काफी हो-हल्ला हुआ। श्री शाह ने कहा था कि भारत को दुनिया में नंबर एक राष्ट्र बनाने में कम-से-कम 25 साल लगेंगे। श्री शाह ने इसके लिए एक शर्त भी रखी कि इसके लिए  भाजपा को पंचायत से लेकर केंद्र तक हर स्तर पर जिताना होगा। खैर,यह तो रही भाजपा की शर्त लेकिन सिर्फ ऐसा कर देने से ही देश विकसित और दुनिया की सबसे बड़ी महाशक्ति हो जाएगा ऐसा बिल्कुल भी नहीं होनेवाला। बल्कि इसके लिए केंद्र और राज्य सरकारों को बहुत सारे सुधार और बदलाव करने पड़ेंगे जिनमें से अपनी क्षमतानुसार मैं कुछेक का जिक्र इस आलेख में करने जा रहा हूँ।
मित्रों,सबसे पहले तो हमें अपनी सोंच को बदलना होगा। सबको गरीब बनाकर रखना न तो समाजवाद है और न ही साम्यवाद बल्कि सबको अमीर बनाना हमारा लक्ष्य होना चाहिए। अबतक भारत में शासन करनेवाली सभी सरकारों का मूलमंत्र सबको गरीब बनाकर रखना रहा है हमें इस मूलमंत्र को सिरे से पलट देना होगा और ऐसे कदम उठाने पड़ेंगे जिससे सबको अमीर बनाया जा सके। जो अमीर हैं वे तो अमीर रहें ही जो गरीब हैं उनको भी अमीर बनाया जाए।
मित्रों,इसके लिए सबसे पहले तो हमें कृषि-क्रांति करनी होगी। आजादी के 70 साल बाद भी हमारी 65 प्रतिशत जनसंख्या कृषि पर निर्भर है। हम इनको गरीब रखकर कभी अमीर राष्ट्रों की श्रेणी में नहीं आ सकते इसलिए हमें ऐसे प्रबंध करने होंगे जिससे कृषि-उत्पादकता में भारी वृद्धि हो। प्रत्येक खेत को सिंचित करना होगा,भूमिगत जल को रिचार्ज करना होगा और किसानों खाद और बीज समय पर उपलब्ध करवाना होगा। साथ ही उनको अपने उत्पादों का सही मूल्य प्राप्त हो इसकी भी व्यवस्था करनी होगी। भूमि स्वास्थ्य कार्ड और प्रधानमंत्री सिंचाई योजना को अविलंब लागू करना होगा। कुल मिलाकर कृषि एक बार फिर से सबसे उत्तम व्यवसाय बने सुनिश्चित करना होगा।
मित्रों,हमें अगर महाशक्ति बनना है तो इसमें कोई संदेह नहीं कि हमें औद्योगिक क्रांति करनी होगी। सेवा क्षेत्र की अपनी सीमाएँ हैं। फिर उसमें भारत की युवा जनसंख्या के लिए रोजगार देने की संभावनाएँ भी नहीं हैं। इसलिए अगर हमें भारत को आर्थिक महाशक्ति बनाना है तो देश को दुनिया की फैक्ट्री में बदलना होगा। पूरी दुनिया को मेड इन इंडिया वाले सामानों से पाट देना होगा। इस कार्य को शुरू करने के लिए यह समय भी एकदम उपयुक्त है। क्योंकि दुनिया की फैक्ट्री चीन में श्रमिक अब महंगे हो गए हैं। इसके लिए भूमि अधिग्रहण बिल में बदलाव करना होगा और बड़े-बड़े एसईजेड की स्थापना के लिए बड़े पैमाने पर भूमि अधिग्रहण करना होगा। एक-एक एसईजेड हजारों हेक्टेयर के होने चाहिए न कि दो-चार सौ हेक्टेयर के। जिन किसानों की जमीनें इसमें जाएंगी उनको इनमें नौकरी दी जा सकती है या फिर बाजार-मूल्य से कई गुना ज्यादा दाम देना होगा जिससे वे नए सिरे से अपना जीवन शुरू कर सकें। हमें श्रम-कानूनों को इस प्रकार का बनाना होगा जिससे न तो श्रमिकों का शोषण हो और न ही लगातार हड़ताल-पर-हड़ताल हो। एसईजेड को करों में छूट के अतिरिक्त हर तरह की आधारभूत संरचना यथा सुपरफास्ट सड़क-रेल-जल परिवहन,चौबीसों घंटे बिजली,भ्रष्टाचारमुक्त त्वरित समस्या-समाधान प्रणाली उपलब्ध करवानी होगी।
मित्रों,एसईजेड की जरुरतों के मुताबिक हमें श्रमिक भी पर्याप्त संख्या में उपलब्ध करवाना होगा। इसके लिए हमें देश के हर प्रखंड,विकास-खंड में आईटीआई की स्थापना करनी होगी जिनमें अच्छे प्रशिक्षक हों। आईटीआई को भविष्य की औद्योगिक आवश्यकताओं के अनुरूप पाठ्यक्रम बनाना होगा तदनुसार सारी प्रायोगिक सुविधाएँ भी उपलब्ध करवानी होगी। इस दिशा में कल ही भारत सरकार ने कदम भी उठाया है।
मित्रों, इसके साथ ही उद्यमियों को ऋण देने की प्रणाली को सरल और रिश्वतमुक्त बनाना होगा। अभी तो स्थिति ऐसी है कि कुटीर और लघु उद्यमियों को जो 35 प्रतिशत सब्सिडी मिलती है वो घूस देने में ही चली जाती है। उसके बाद जब वो पैसे वापस करने जाता है तो पता चलता है 10 लाख के ऋण के बदले उसको सूद समेत 15 लाख भरना होगा और वो हक्का-बक्का रह जाता है। इसके साथ ही हमें कारखानों में ऐसी चीजों का उत्पादन करना होगा जिसकी फैक्ट्री के आसपास और हमारे देश के आसपास के क्षेत्रों में मांग है। हमें उत्पादित वस्तुओं की गुणवत्ता पर भी पर्याप्त ध्यान देना होगा।
मित्रों,जनसंख्या-विस्फोट भारत की बहुत बड़ी समस्या है और बहुत सारी समस्याओं की जड़ भी है। इसलिए हमें सख्ती के साथ बढ़ती जनसंख्या को नियंत्रित करना होगा अन्यथा लाख कोशिशों के बावजूद भी हम अपने देश की प्रति व्यक्ति आय नहीं बढ़ा पाएंगे। और जब तक प्रति व्यक्ति आय नहीं बढ़ेगी जीवन-स्तर में भी सुधार नहीं होगा। हम यह नहीं कहते कि हम चीन की तरह हम दो हमारे एक की नीति अपनाएँ लेकिन हम दो हमारे दो की नीति का तो पूरी सख्ती से पालन करवाना ही होगा। हम जानते हैं कि एक संप्रदाय-विशेष इसका विरोध करेगा लेकिन 13 प्रतिशत लोगों की मनमानी के चलते हम देश को बर्बादी की आग में नहीं झोंक सकते।
मित्रों,गांवों से शहरों की ओर पलायन आज बहुत बड़ी समस्या बन गई है। बड़े-बड़े शहरो में झुग्गियों की संख्या में तेजी से ईजाफा हो रहा है। मजदूर अपने परिवार को शहर तो ले आते हैं लेकिन गुणवत्तापूर्ण जीवन नहीं दे पाते। हमें इस प्रवृत्ति पर रोक लगानी होगी और मजदूरों को अपने गांव के आसपास ही नौकरी देनी होगी। साथ ही गांवों में ही वो सारी सुविधाएँ भी देनी होंगी जो शहरों में मिलती हैं जैसे उत्तम व निःशुल्क स्वास्थ्य सेवा,गुणवत्तापूर्ण व रोजगारपरक शिक्षा,बिजली,बैंकिंग सेवा आदि।
मित्रों,इसके साथ ही हमें अपनी ट्रेनों की रफ्तार को न्यूनतम किराये के साथ इतनी तेज करना होगा कि लोग 500-700 किमी दूर जाकर भी काम करके शाम को घर वापस आ जाएँ।
मित्रों,आरक्षण के चलते हम गुणवत्ता से समझौता करते हैं। मेधावी छात्र घर बैठे रह जाते हैं और औसत लोगों को नौकरी मिल जाती है। हमें इस स्थिति को बदलना होगा। आरक्षण को 50 प्रतिशत से कम करके 10-15 प्रतिशत करना होगा। इसके साथ ही आरक्षण के आधार को भी जातीय से बदलकर आर्थिक करना होगा क्योंकि गरीबी हर जाति,हर तबके और हर मजहब में है।
मित्रों,अंत में हमें अपनी शिक्षा-प्रणाली में आमूल-चूल परिवर्तन करना होगा। मैकाले की शिक्षा-प्रणाली ऐसी है कि वो सिर्फ किरानी पैदा करती है कुशल श्रमिक या उद्यमी नहीं। हमें इस स्थिति को पूरी तरह से पलटना होगा और कुशल श्रमिकों और उद्यमियों का निर्माण करना होगा। जो लोग कला या विज्ञान या अन्य कोई अव्यावसायिक कोर्स लेते हैं उनको भी एक-न-एक ऐसा विषय लेना होगा जिसके बल पर वे अपनी रोजी-रोटी का इंतजाम कर सकें। साथ ही पाठ्यक्रम को वैश्विक-बाजार की भविष्यगत जरुरतों के मुताबिक समय-समय पर बदलना पड़ेगा। इसके साथ ही युवाओं को नैतिक-शिक्षा भी देनी होगी क्योंकि आज दुनिया में आदमियों की आबादी तो खूब बढ़ी है लेकिन उसी अनुपात में उनके भीतर आदमियत की कमी भी हो गई है।
मित्रों,मेरे हिसाब से अगर केंद्र सरकार और राज्य सरकारें इतने कदम उठा लें तो भारत अगले 20-पच्चीस सालों में जरूर दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक महाशक्ति बन जाएगा। हमारे पास प्राकृतिक संसाधन हैं,मानव संसाधन हैं बस जरुरत है सही व्यवस्था कायम करने की और उनको सही दिशा देने की।

हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित

रविवार, 12 जुलाई 2015

मानवता को आईएस से बचाने को समय रहते एकजुट हो दुनिया

हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,इन दिनों दुनिया एक बार फिर से उसी स्थिति में पहुँच गई है जिस स्थिति में वो आज से 76 साल द्वितीय विश्वयुद्ध के पहले थी। तब जर्मन तानाशाह हिटलर यूरोप के एक के बाद एक देश पर कब्जा करता जा रहा था,लाखों यहुदियों का सामुहिक जनसंहार कर रहा था और दुनिया व यूरोप की तत्कालीन दोनों महाशक्तियाँ फ्रांस और इंग्लैंड उसके प्रति तुष्टिकरण की नीति पर अमल कर रहे थे क्योंकि उनको लग रहा था कि हिटलर ही सोवियत संघ के विस्तारवाद पर लगाम लगा सकता है। परिणाम यह हुआ कि हिटलर का लालच और साहस बढ़ता गया और जब फ्रांस और इंग्लैंड की नींद खुली तब तक काफी देर हो चुकी थी और दुनिया विश्वयुद्ध के मुहाने पर खड़ी थी।
मित्रों,आज भी इस्लामिक चरमपंथी संगठन आईएस एक के बाद एक देश पर कब्जा करता जा रहा है। रोजाना सैंकड़ों लोगों के सिर कलम कर रहा है। यजीदी महिलाओं व पुरूषों का बर्बरतापूर्ण सामुहिक बलात्कार किया जा रहा है,सेक्स गुलाम बनाया जा रहा है,यौनेच्छा पूरी करने से मना करने पर उनके बच्चों को मारा-पीटा जा रहा है,उनकी जांघों के बीच गरम पानी डाल दिया जा रहा है और अमेरिका और पूरी दुनिया मूकदर्शक बने हुए हैं क्योंकि सऊदी अरब आईएस का समर्थन कर रहा है।
मित्रों,हमारे शास्त्रों में राक्षसों के बारे में काफी कुछ लिखा गया है लेकिन यह आईएस तो हिटलर और राक्षसों से भी कई कदम आगे जा चुका है। आज आईएस से न सिर्फ विश्वशांति को खतरा है बल्कि मानवता व मानवीय मूल्यों को भी खतरा उत्पन्न हो गया है। अतिशय पाशविकता व क्रूरता कभी भी मानवीय मूल्य नहीं हो सकते बल्कि दया,करूणा,संयम और क्षमा ही मानवीय मूल्य हो सकते हैं। ऐसे में अगर दुनिया ने एकजुट होकर समय रहते आईएस पर लगाम नहीं लगाया तो वह दिन दूर नहीं जब पूरी दुनिया पर राक्षसी संस्कृति के छा जाने का खतरा मंडराने लगेगा और तब तक काफी देर हो चुकी होगी ठीक उसी तरह जिस तरह से 3 सितंबर,1939 तक जर्मनी के खिलाफ फ्रांस और इंग्लैंड द्वारा युद्ध की घोषणा करने तक हो गई थी।
मित्रों,अगर ऐसा होता है वह निश्चित रूप से नितांत दुर्भाग्यपूर्ण होगा क्योंकि आज दुनिया तृतीय विश्वयुद्ध को झेल सकने की स्थिति में नहीं है। विश्व-जनसंख्या का एक बड़ा भाग आज भी गरीबी से जूझ रहा है। साथ ही आज दुनिया के देशों के पास सामुहिक विनाश के अस्त्र-शस्त्रों की संख्या 1939 के मुकाबले कहीं ज्यादा है। इतनी ज्यादा कि दुनिया की पूरी मानव-आबादी को तीन-तीन बार पूरी तरह से समाप्त किया जा सके।

हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित

शुक्रवार, 10 जुलाई 2015

बिहार में सरकार बनी तो शराब बैन करेंगे नीतीश कुमार,फिर बिहार में किसकी सरकार है?


हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,महिलाओं की ओर से की जा रही मांग के आगे झुकते हुए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने वादा किया कि यदि अगली बार वे सत्ता में आए तो शराब पर पाबंदी लगा देंगे। समाज कल्याण विभाग के एक ग्राम्य वार्ता कार्यक्रम के दौरान नीतीश के संबोधन के दौरान कुछ महिलाओं ने यह मांग की और फिर मुख्यमंत्री ने शराब पर पाबंदी लगाने का वादा किया।

मित्रों,नीतीश ने कहा, ‘‘जब मैं अगली बार सरकार बनाऊंगा तो शराब पर पाबंदी लगाई जाएगी।’’ इस वादे को सुनकर महिलाएं खुशी से झूम उठीं। मुख्यमंत्री ने अपने संबोधन में महिला सशक्तिकरण को लेकर अपनी सरकार की कोशिशें गिनाईं। उन्होंने कहा कि सरकार का प्रयास स्वयं-सहायता समूह (एसएचजी) से डेढ़ करोड़ महिलाओं को जोड़ने का है।

मित्रों, सवाल यह उठता है कि इस समय बिहार में सरकार किसकी है? क्या नीतीश कुमार जी अभी बिहार के नहीं नेपाल के मुख्यमंत्री हैं? अगर उनको उनकी सरकार की शराब नीति से बिहार को हुई क्षति से इतनी ही शर्मिंदगी हो रही है तो उनको चाहिए कि वे कल से ही बिहार में पूर्ण शराबबंदी की घोषणा कर दें और जिन लोगों को शराब दुकानों की बंदोबस्ती की गई है उनको हर्जाना देकर चलता करें।

मित्रों,अभी पूर्ण शराबबंदी लागू करने में नीतीशजी को कौन-सी परेशानी हो रही है? अभी तो राज्य में किसी तरह की आचार-संहिता भी लागू नहीं है फिर नीतीश जी ऐसी बरगलानेवाली बातें क्यों कर रहे हैं? अगर वे अभी सत्ता में होते हुए ऐसा नहीं कर सकते या नहीं कर रहे तो क्या गारंटी है कि वे अगली बार जीतने के बाद ऐसा करेंगे ही? हद हो गई कि जिस व्यक्ति ने राजस्व के चलते पूरे बिहार में किराने की दुकानों से भी कहीं ज्यादा संख्या में शराब की दुकानें खुलवा दीं और पूरे बिहार को शराबी बना दिया आज कह रहा है कि मुझे एक बार और जितवाओ तब शराब पर पूरी तरह से पाबंदी लगा दूंगा? ये तो वही बात हुई कि कोई बलात्कारी नेता कहे कि मुझे एक बार और जितवाओ तो मैं लड़कियों को बहन मानने लगूंगा।

हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित

शनिवार, 4 जुलाई 2015

संपूर्ण विनाश हो,रक्तरंजित बिहार हो,फिर से नीतीश कुमार हो

हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,इन दिनों बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी के छोटे-छोटे पाँव जमीन पर पड़ ही नहीं रहे हैं। दरअसल उनके हाथ एक ऐसा नारेबाज लग गया है जो नारे और प्रचार की योजना बनाने में बला का माहिर है। पिछले 2 सालों से बिहार को अच्छा शासन देने में विफल रहे नीतीश जी को लग रहा है कि वे कोरे नारों के बल पर ही फिर से बिहार का चुनाव जीत जाएंगे। जबकि चुनाव जीतने के लिए उनको जनता को यह भी बताना पड़ेगा कि उन्होंने बिहार को अब तक दिया क्या है। अगर जनता इससे संतुष्ट हो जाती है तो उनको बताना चाहिए कि वे आगे क्या करने की सोंच रहे हैं।
मित्रों,अब हम चलते हैं फ्लैश बैक में। बात वर्ष 2007 की है। तब हम हिंदुस्तान के पटना कार्यालय में कॉपी एडिटर हुआ करते थे। एक दिन वहाँ चर्चा छिड़ गई कि बिहार की कानून-व्यवस्था में सुधार आने के कारण क्या हैं। तब दिलीप भैया ने कहा था कि चूँकि बिहार सरकार ने सारे बदमाशों को शिक्षामित्र बना दिया है इसलिए अपराध कम हो गया है। उत्तर सुनते ही मैं काँप गया था। इस आशंका से कि बदमाशों की अगली पीढ़ी जब आएगी तब कानून-व्यवस्था का क्या होगा। बदमाश शिक्षक शरीफ बच्चों का निर्माण तो करेंगे नहीं। नीतीश राज में स्कूली शिक्षकों की बहाली में किस कदर मनमानी और भ्रष्टाचार का बोलबाला रहा इसका अंदाजा सिर्फ इसी बात से लगाया जा सकता है कि अभी कल-परसों ही हाईकोर्ट के भय से 1400 ऐसे शिक्षामित्रों ने इस्तीफा दे दिया है जिनकी डिग्रियाँ फर्जी थीं।
मित्रों,आज के बिहार के कानून-व्यवस्था की स्थिति कमोबेश नीतीश कुमार की उसी गलती का परिणाम है जिसकी ओर तब दिलीप भैया ने ईशारा किया था। सिर्फ राजधानी पटना की ही बात करें तो कल पूर्व मंत्री एजाजुल हक के फ्लैट में घुसकर उनको चाकू मार दिया गया, नीतीश सरकार की नाक के नीचे जीपीओ गोलंबर के पास कल रात गोविंद ढाबा के मालिक गोविंद से 50 हजार रुपये छीन लिए गए, कपड़ा व्यवसायी से नक्सली संगठन के नाम पर 10 लाख रुपये की रंगदारी मांगी गई और एयरपोर्ट थानान्तर्गत किसी जज साहब की धर्मपत्नी से चेन छीन ली गई। ये तो हुई बिहार के कानून-व्यवस्था की खबर अब हम बात करेंगे बिहार पुलिस पर बिहार की जनता के विश्वास की। आज आप बिना घूस दिए या बिना कोर्ट के आदेश के बिहार के थानों में एफआईआर भी दर्ज नहीं करवा सकते। बिहारवासियों का पुलिस पर विश्वास इतना कम हो गया है कि लोगों ने अपराधियों को पकड़ने के बाद पुलिस के हवाले करना ही बंद कर दिया है और ऑन द स्पॉट अपराधियों का निपटारा कर दे रहे हैं। आज एक बार फिर से बिहार में जंगलराज कायम हो चुका है और लोग बिहार में निवेश करने से डरने लगे हैं।
मित्रों,जब नीतीश कुमार ने बिहार का राजपाट संभाला था तब नक्सलवाद सिर्फ गंगा के दक्षिण में ही सक्रिय था। आज नक्सलवाद उत्तर बिहार के अधिकांश क्षेत्रों में भी अपने पाँव पसार चुका है। हमारा वैशाली जिला जो नक्सलवाद के मायने भी नहीं जानता था का बहुत बड़ा इलाका इस समय नक्सलवाद की चपेट में आ चुका है। जिले के कई प्रखंडों में बिना लेवी दिए कोई ठेकेदार न तो सड़क ही बनवा सकता है और न ही कोई उद्योगपति फैक्ट्री ही डाल सकता है। क्या यही है नीतीश कुमार का सुशासन? हमारे हाजीपुर शहर में ही लूट रोजाना की घटना बन गई है।
मित्रों,बिहार की आम जनता का मानना है कि लालू-राबड़ी राज के मुकाबले राज्य में घूसखोरी घटी नहीं है बल्कि बढ़ी है। पहले लालू-राबड़ी राज में खद्दरधारी लोग बिना पैसे के भी काम करवा देते थे लेकिन आज बिना पैसे दिए कोई काम नहीं होता। पहले 250 रुपये में जमीन की दाखिल खारिज हो जाती थी आज 5 हजार से कम में नहीं होती। बिजली विभाग बिजली कम देती है अनर्गल बिलिंग के झटके ज्यादा देती है। नीतीश राज में बने पुल 5 साल में ही गिर जा रहे हैं। क्यों? इतना ही नहीं नीतीश जी ने शासन में आने के बाद कहा था कि ठेकेदारों को सड़कों के निर्माण के समय गारंटी देनी पड़ेगी कि सड़कें कितने सालों तक चलेगी। अब नीतीश सरकार जनता पर यह जिम्मेदारी छोड़ रही है कि कहीं पर सड़क टूट जाती है तो टॉल फ्री नंबर पर फोन करे। सरकार उसके बाद ठेकेदार को ब्लैक लिस्ट में डाल देगी और इस प्रकार भ्रष्टाचार समाप्त हो जाएगा। सरकारी अस्पतालों की स्थिति में नीतीश राज की शुरुआत में जो सुधार आया था अब फिर से स्थिति बिगड़ चुकी है। कहीं दवा घोटाला है तो कहीं यंत्र खरीद घोटाला। जहाँ नजर डालिए बस घोटाला ही घोटाला। सरकार किसानों से धान खरीदती है तो वहाँ भी घोटाला हो जाता है। यानि जहाँ भी कोई काम राज्य सरकार अपने हाथ में लेती है वहीं पर एक घोटाला हो जाता है और इस तरह से राज्य में सुशासन का राज स्थापित किया जा रहा है।
मित्रों,जहाँ तक शिक्षा का सवाल है तो मैंने शुरू में ही अर्ज किया कि बिहार के स्कूलों में नीतीश कुमार ने अयोग्य और असामाजिक तत्त्वों को शिक्षक बना दिया इसलिए प्राथमिक शिक्षा का जो हाल होना चाहिए था वही हो गया है। किसी भी सरकारी स्कूल में यूँ तो पहले से ही पढ़ाई न के बराबर हो रही थी अब दूरदर्शी नीतीश जी ने उपस्थिति की अनिवार्यता को समाप्त करके हालत को और भी चौपट करने की दिशा में महान कदम उठा दिया है। अब जबकि छात्र स्कूलों में आएंगे ही नहीं तो पठन-पाठन का माहौल कहाँ से बनेगा? यही कारण है कि जब बिहार में मैट्रिक या इंटर या बीए की परीक्षा आयोजित होती है तो बिहार को शर्मशार होना पड़ता है। पिछले 10 सालों में प्राइमरी स्कूलों से लेकर विश्वविद्यालयों तक शिक्षा के माहौल को षड्यंत्रपूर्वक नीतीश सरकार द्वारा समाप्त कर दिया है। बिहार सरकार प्रतियोगिता परीक्षा का आयोजन करती है और बहाली कर दी जाती है कभी मुख्यमंत्री और विधानसभा अध्यक्ष के परिजनों की तो कभी स्वास्थ्य मंत्री की सुपुत्री की।
मित्रों,नीतीश कुमार जी ने कल-परसों ही एक बार फिर से आरक्षण और अपने भेजा का बेजा इस्तेमाल किया है। नीतीश जी ने ठेकों में आरक्षण लागू कर दिया है। इससे पहले भी मोहम्मद बिन तुगलक के 21वीं शताब्दी अवतार श्रीमान ने पंचायती राज में विचित्र आरक्षण व्यवस्था लागू की थी। आप सभी जानते हैं कि लोकतंत्र बहुमत से चलता है लेकिन बिहार की पंचायती राज व्यवस्था में लोकतंत्र तुगलकी आरक्षण से चलता है। किसी पंचायत में भले ही सवर्णों या यादवों की आबादी 99 प्रतिशत रहे लेकिन गाँव का मुखिया बनेगा कोई दलित या महादलित ही भले ही उस पंचायत में उनका एक ही परिवार क्यों न रहता हो।
मित्रों,तो ये है संक्षेप में नीतीश राज में बिहार की स्थिति। अब आप ही बताईए कि बिहार में बहार हो,नीतीश कुमार हो नारा लगा देने मात्र से कैसे बिहार में बहार आ सकती है? ठीक इसी तरह से यूपी सरकार कहती है कि यूपी में दम है क्योकि यूपी में जुर्म कम है। क्या यूपी सरकार के ऐसा कह देने या ऐसे नारे लगा देने भर से यूपी में जुर्म कम हो गया या हो जाएगा। वास्तविकता तो यह है कि यह नारा बिहार की स्थिति पर फिट तो नहीं ही हो रही है बल्कि पूरी तरह से विरोधाभासी है। नारा तो कुछ इस तह से होना चाहिए कि संपूर्ण विनाश हो,रक्तरंजित बिहार हो,फिर से नीतीश कुमार हों।

हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित

शुक्रवार, 3 जुलाई 2015

आडवाणी जी यूपी में तो कई साल से आपातकाल लागू है

हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,अपने भीष्मपितामह लालकृष्ण आडवाणी जब भी कुछ बोलते हैं तो उसके अनगिनत अर्थ लगाए जाते हैं। श्री आडवाणी ने कहा कि आपातकाल लगाने वाली प्रवृत्तियाँ आज भी हमारे देश में मौजूद हैं और लोगों ने इसे सीधे-सीधे केंद्र की मोदी सरकार से जोड़ दिया जबकि अभी तक मोदी सरकार ने ऐसा कोई भी कदम नहीं उठाया है जिससे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को खतरा पैदा होता हो। अगरचे भारत के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में जरूर वर्ष 2012 से ही यानि समाजवादी सरकार के आने के बाद से ही अघोषित आपातकाल लागू है।

मित्रों,अगर आप यूपी में रहते हैं तो आप सुपर चीफ मिनिस्टर आजम खान के खिलाफ लिखने की सोंच भी नहीं सकते हैं। पता नहीं कब आपको पुलिस घर से उठा ले। अभी पिछले दिनों एक पत्रकार जगेंद्र सिंह को तो यूपी सरकार के कद्दावर मंत्री राममूर्ति वर्मा के खिलाफ लिखने पर खुद जनता की रक्षा की शपथ लेनेवाले पुलिसवालों ने ही घर में घुसकर जिंदा जला दिया और वर्मा यूपी सरकार में आज भी मंत्री बना हुआ है। संकेत साफ है कि हमारे खिलाफ लिखोगे तो जिंदा जला दिए जाओगे और हमारा कुछ भी नहीं बिगड़ेगा। मैं समझता हूँ कि ऐसा तो 1975 के आपातकाल में भी नहीं हुआ था।

मित्रों,कल ही पूर्व बसपा सांसद शफीकुर्ररहमान बर्क के खिलाफ दो साल पहले फेसबुक पर की गई टिप्पणी के चलते एक स्वतंत्र टिप्पणीकार को गिरफ्तार कर लिया गया है। इस बार यूपी पुलिस ने 66 ए के तहत मामला दर्ज नहीं किया है बल्कि सांप्रदायिक उन्माद पैदा करने के ज्यादा संगीन धारा के तहत मुकदमा किया है। अगर यह प्रयोग सफल रहता है और पूर्व की तरह सुप्रीम कोर्ट मामले में हस्तक्षेप कर पीड़ित पत्रकार को नहीं छुड़वाता है तो आगे उम्मीद की जानी चाहिए कि धड़ल्ले से इस सूत्र का यूपी पुलिस द्वारा प्रयोग किया जाएगा और यूपी में पत्रकार बिरादरी का जीना मुश्किल कर दिया जाएगा।

मित्रों,कहने का तात्पर्य यह है कि देश में आपातकाल लागू करने के लिए न तो संसद की अनुमति चाहिए और न ही केंद्र सरकार की पहल ही जरूरी है बल्कि राज्य सरकारें भी चाहें तो बिना घोषणा किए ही आपातकाल जैसी परिस्थितियाँ पैदा कर सकती हैं और यूपी की समाजवादी सरकार यही कर रही है। यूपी में पिछले तीन सालों से लोकतंत्र को खूंटी पर टांग दिया गया है और एक पार्टी की सरकार चल रही है। उसी एक पार्टी के लोग प्रतियोगिता परीक्षाओं में पास हो रहे हैं,उसी एक पार्टी के लोग रंगदारी वसूल रहे हैं,उसी एक पार्टी के लोग थानेदारों को हुक्म दे रहे हैं और उसी एक पार्टी के लोग पत्रकारों को जिंदा जला भी रहे हैं। सवाल यह है कि इस एक पार्टी के सरकार-समर्थित गुंडाराज को रोका कैसे जाए? फिलहाल तो कोई मार्ग दिख नहीं रहा। वैसे भी जनता ने जब बबूल का पेड़ लगाया है तो उसको आम खाने को कहाँ से मिलेगा? गिनते रहिए गिनती कि कितने पत्रकार अंदर कर दिए गए और कितनों को मोक्षधाम पहुँचा दिया गया।
 

हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित