रविवार, 26 जून 2016

चीन,भारत,आपी-पापी और हम

मित्रों,एशिया के साथ-साथ दुनिया भी इस समय संक्रमण-काल से गुजर रही है। इस समय दुनिया बहुध्रुवीय हो रही है। एक का नेतृत्व अमेरिका कर रहा है,दूसरी तरफ रूस है और तीसरी तरफ चीन-पाकिस्तान और उत्तर कोरिया। हमने हाल में भारत के मुद्दे पर एनएसजी में जो खींचातानी देखी उसके लिए इन तीनों ध्रुवों के बीच चल रहा शीत-युद्ध जिम्मेदार है।
मित्रों.जहाँ तक भारत का सवाल है तो भारत के पास अमेरिका से नजदीकी बढ़ाने के सिवा और कोई विकल्प है ही नहीं। भारत चीन की तरफ जा नहीं सकता क्योंकि चीन न तो कभी भारत का मित्र था और न ही कभी होगा। बल्कि वो भारत का चिरशत्रु था,है और रहेगा। रूस चीन के खिलाफ एक सीमा से आगे 1962 में भी नहीं गया था और अब भी नहीं जा सकता। तो फिर भारत करे तो क्या करे वो भी ऐसी स्थिति में जब दशकों से भारत की बर्बादी के सपने देखनेवाला चीन अब एक महाशक्ति बन चुका है और भारत को चारों तरफ से घेरकर अभिमन्यु की तरह तबाह कर देना चाहता है?
मित्रों,वैसे अगर हम देखें तो निरंतर आक्रामक होते चीन से निबटने के लिए अमेरिका के पास भी भारत से मित्रता बढ़ाने के अतिरिक्त और कोई विकल्प नहीं है। जापान चीन के मुकाबले क्षेत्रफल और जनसंख्या दोनों ही दृष्टिकोणों से काफी छोटा है। चीन भी अब कोई 1930-40 वाला चीन नहीं रहा कि जिसको जिस इलाके पर मन हुआ कब्जा कर लिया। ताईवान,वियतनाम आदि चीन के पड़ोसी देश भी अकेले आज के चीन के आगे नहीं ठहर सकते। सिर्फ और सिर्फ भारत ही ऐसा है जिसकी अगर सहायता की जाए तो चीन को हर मामले हर तरह से ईट का जवाब पत्थर से दे सकता है। जिन लोगों को भ्रम है वे भ्रम में रहें लेकिन सच्चाई तो यही है कि आज नहीं तो कल भारत को चीन और पाकिस्तान दोनों से एक साथ सैन्य संघर्ष का सामना करना पड़ेगा। जो लोग आज प्रत्येक आतंकी हमले के बाद कहते हैं कि भारत सीमापार स्थित आतंकी शिविरों पर हमले क्यों नहीं करता वे भूल जाते हैं कि इस समय चीन कितनी आक्रामकता के साथ पाकिस्तान के साथ खड़ा है। इसलिए पहले हमें अपने देश को आर्थिक और सैनिक दोनों क्षेत्रों में इतना सक्षम बनाना होगा कि पाकिस्तान तो क्या चीन को भी हमारी तरफ आँख उठाकर देखने में लाखों बार सोंचना पड़े।
मित्रों,मैंने ओबामा की भारत-यात्रा के समय अपने एक आलेख के माध्यम से कहा था कि भारत को अमेरिकी राष्ट्रपति की इस बात को लेकर किसी भुलावे में नहीं आना चाहिए कि भारत एक महाशक्ति बन चुका है। सच्चाई तो यह कि हमें आर्थिक और सैनिक मामलों में चीन की बराबरी में आने में अभी कम-से-कम 15-बीस साल लगेंगे वो भी तब जब भारत की जीडीपी वर्तमान गति से बढ़ती रहे और एफडीआई का भारत में प्रवाह लगातार त्वरित गति से बढ़ता रहे।
मित्रों,जो आपिए और पुराने पापिए यानि छद्मधर्मनिरपेक्ष एनएसजी का सदस्य बनने में भारत की नाकामी पर ताली पीट रहे हैं और जश्न मना रहे हैं उनको यह नहीं भूलना चाहिए कि एनएसजी का सदस्य भारत को बनना था न कि नरेंद्र मोदी को। कल संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में अगर स्थायी सदस्यता मिलेगी तो वो सवा सौ करोड़ जनसंख्यावाले भारत को मिलेगी न कि नरेंद्र मोदी को। नरेंद्र मोदी तो आज हैं कल पीएम तो क्या धरती पर भी नहीं रहेंगे। उनकी कोशिशों का स्थायी लाभ भारत को मिलेगा,भारतवासियों को मिलेगा,भारतवासियों का सीना 56 ईंच का होगा,सिर गर्वोन्नत होगा और यह हमेशा के लिए होगा। नाकामी के लिए मोदी की आलोचना करके लोग क्या साबित करना चाहते हैं? अरे भाई,गिरते हैं शह सवार ही मैदाने जंग में! जिसने कोशिश की वही तो सफल-असफल होगा? क्या इससे पहले किसी ने कभी एनएसजी का नाम भी सुना था? 48 में से 42 देश हमारे समर्थन में थे फिर हम असफल कैसे हैं? संगठन में सर्वसम्मति की जगह अगर वोटिंग का नियम होता तो हम विजयी होते। साथ ही हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि NSG में असफलता के बावजूद भारत MTCR का सदस्य बनने जा रहा है जबकि चीन इसका सदस्य बनने के लिए 2004 से ही असफल प्रयास कर रहा है। अब अगर भारत चाहे तो चीन को MTCR का सदस्य बनने ही नहीं दे क्योंकि वहाँ भी सर्वसम्मति से निर्णय लेने का नियम है। जहाँ तक चीन को भारत के कदमों में झुकाने का सवाल है तो इसके लिए मोदी सरकार को प्रयास करने की जरुरत ही कहां है? वो काम तो हमलोग भी कर सकते हैं बस आज से अभी से हमें प्रण लेना होगा कि चाहे लगभग मुफ्त में ही क्यों न मिले हम चीन में बने सामानों को न तो खरीदेंगे और न ही उसका इस्तेमाल ही करेंगे।

गुरुवार, 16 जून 2016

परीक्षा बच्चों की थी फेल सरकार हो गई

हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,ऐसा आपने कम ही देखा होगा कि परीक्षा कोई और दे और फेल कोई और हो जाए। मगर बिहार में कुछ भी मुमकिन है। यहाँ ऐसे चमत्कार होते ही रहते हैं। पिछले साल परीक्षा बच्चों की थी और फेल अभिभावक हो गए थे। परंतु इस बार तो हद की भी भद्द हो गई। परीक्षा बच्चों ने दी और रिजल्ट निकला तो फेल सरकार हो गई थी।
मित्रों,पहले तो इस साल के उत्तीर्णता प्रतिशत ने सरकार को नंगा करके रख दिया। जब स्कूल में योग्य शिक्षक होंगे ही नहीं,पढ़ाई होगी ही नहीं तो बच्चे परीक्षा के समय लिखेंगे कहाँ से और फेल तो होंगे ही। सो इस साल चूँकि परीक्षा केंद्रों पर बाहर से मदद को पूरी तरह से रोक दिया गया था बच्चे बड़ी संख्या में फेल हो गए। लेकिन असली खुल्ला खेल दरबारी का पता तो तब चला जब लगभग अंगूठा छाप रूबी राय कला में और सौरभ श्रेष्ठ विज्ञान के क्षेत्र में टॉप कर गए और पत्रकारों द्वारा पूछे गए साधारण सवालों का भी जवाब नहीं दे पाए।
मित्रों,पहले तो जाँच समिति बनाकर मामले को रफा-दफा करने की सोंची गई। लेकिन जब मामला तूल पकड़ने लगा तो सरकार की चूलें हिलने लगीं। मुख्यमंत्री को स्वयं सामने आकर अपने परम प्रिय स्नेहिल लालकेश्वर प्रसाद सिन्हा के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर आपराधिक जाँच का आदेश देना पड़ा। लेकिन सवाल उठता है कि इतने बड़े पैमाने पर चलनेवाले खेल से क्या मुख्यमंत्री सचमुच पूरी तरह से नावाकिफ थे? क्या वे पहले से ही नहीं जानते थे कि लालकेश्वर दम्पति नटवरलाल है? अगर मुख्यमंत्री को पता था तो फिर लालकेश्वर को हटाकर पहले ही उसके,बच्चा राय और अन्य घोटालेबाजों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की गई? और अगर पता नहीं था हालाँकि मानने को जी तो नहीं चाहता है फिर अगर मान भी लिया जाए तो क्यों पता नहीं था? फिर राज्य सरकार की खुफिया एजेंसियाँ क्या कर रही थीं?
मित्रों,जैसा कि मैंने पिछले पाराग्राफ में कहा कि मानने को जी नहीं कर रहा है तो इसके पीछे भी ठोस कारण हैं। बतौर पूर्व सीएम जीतनराम मांझी जी नीतीश सरकार एक लंबे समय से पैसे लेकर अफसरों का ट्रांसफर-पोस्टिंग कर रही है। फिर अगर प्रत्येक पद को पैसे के लिए बेचा जाता है तो फिर खरीददार जब गड़बड़ करेगा तो विक्रेता को सूचना मिलने पर भी नजरंदाज करना ही पड़ेगा। लेकिन अपने नीतीश बाबू का कातिलाना अंदाज तो देखिए। पहले तो कई दिनों तक पूरी तरह से चुप्पी साधे रहे। फिर अचानक प्रकट हुए और अपने ही आदमी और आदमी की औरत को नटवरलाल कहकर मामले से पूरी तरह से पल्ला झाड़ लिया जैसे कि बेचारे को लता की तरह कुछ पता ही नहीं हो। मगर क्या दुश्शासन की गंध फैलने पर खबरों में शाहे बेखबर बन जाने मात्र से शासक अपराधमुक्त हो जाता है? क्या अपराधबोध से पूरी तरह से मुक्त होकर थेथर बन जाने से अपराध भी समाप्त हो जाता है? क्या जनता ने प्रदेश में अपराधवृद्धि होने पर उनसे और उनके डिप्युटी से यही सुनने के लिए उनके हाथों में सत्ता सौंपी थी कि ऐसा कहाँ नहीं होता है,किस राज्य में नहीं होता है?या फिर मामला उजागर होने के बाद जाहिर में यह सुनने के लिए कि किसी भी दोषी को छोड़ा नहीं जाएगा और भीतरखाने राजवल्लभ का बिछावन और तकिया डिटर्जेंट में धुलवा देने के लिए?
मित्रों,मैं कई साल पहले भी बिहार के बारे में लिए चुका हूँ कि मेरी सरकार खो गई है हुजूर! उस समय तो अराजकता का आगाज भर हुआ था। अब तो अराजकता अंजाम तक पहुँचने लगी है। उस समय सरकार यह नहीं कहती थी कि कहाँ नहीं हो रहा है कि झुठ्ठो खाली बिहार को बदनाम कर रहे हैं? नीतीश सरकार निश्चय-अनिश्चय हर मोर्चे पर फेल थी,फेल है और विषयवार फेल है। बात लीजिए हमसे और काम लीजिए हमारे पिताजी से की महान नीति पर चलने वाली सरकार के पास अगर उपलब्धि के नाम पर कुछ है तो सिर्फ दारू की खाली बोतल और सदियों से ताड़ी बेचकर जीविका उपार्जित करनेवाली पासी जाति की भुखमरी। 

सोमवार, 6 जून 2016

राहुल को कुछ भी बना दो वो रहेगा तो राहुल ही

हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह.मित्रों,हमारे एक दादाजी थे.नाम था शिवबल्लभ सिंह.उनके ही एक ग्रामीण मेरे पिताजी के साथ महनार के आर.पी.एस. कॉलेज में इतिहास के प्रोफ़ेसर थे.बेचारे बस नाम के ही प्रोफेसर थे.अकबर का बाप कौन था और भारत छोडो आन्दोलन कब हुआ ये भी उनको पता नहीं था.नाम था कामता सिंह.एक बार हमने दादाजी से मजाक में कहा कि कामता बाबू तो अब प्रिंसिपल बनने वाले हैं.सुनते ही दादाजी ने कहा कि कमतावा पनिसपल भी बन जतई त कमतवे न रहतई यानि कामता प्रिंसिपल भी बन जाएगा तो कामता ही रहेगा.
मित्रों,मैं इस उदाहरण द्वारा कांग्रेस के उन नेताओं को सचेत करना चाहता हूँ जो इन दिनों राहुल गाँधी को पार्टी का अध्यक्ष बनाने का रट्टा लगाने में लगे हैं.वे लोग यह समझने को तैयार ही नहीं हैं कि राहुल गाँधी पार्टी और देश को नेतृत्व देने के लायक हैं ही नहीं.क्या पार्टी अध्यक्ष बनते ही राहुल अचानक सुपर इंटेलिजेंट बन जाएंगे? फिर तो पार्टी अध्यक्ष की कुर्सी न हुई जादू हो गया? अगर ऐसा है तो फिर सोनिया जी तो अब तक इंटेलिजेंट नहीं हुईं जबकि वे १८ साल से कांग्रेस पार्टी की अध्यक्ष हैं?और अगर वे सचमुच इंटेलिजेंट थीं या अध्यक्ष बनने के बाद बन गयी हैं तो फिर उनको हटाने की जरुरत ही कया है?
मित्रों,वास्तविकता हो यह है कि कांग्रेस के दरबारी नेता नेहरु-गाँधी परिवार से आगे सोंच ही नहीं पाते हैं जबकि उनको भी पता है नेतृत्व का गुण आदमी अपने साथ लेकर पैदा होता है.न तो यह बाजार में बिकता है और न ही इसको जादू-मंत्र से किसी के अन्दर डाला जा सकता है.हमारे प्रधानमंत्री को तो नेतृत्व क्षमता प्राप्त करने के लिए किसी राजनैतिक परिवार में जन्म नहीं लेना पड़ा? उनमें यह गुण है और इतना ज्यादा है कि उन्होंने भारत को दुनिया का सिरमौर बनाने की ओर भी बला की तेजी से कदम बढ़ा दिया है.
मित्रों,अगर सिर्फ किसी खास कुर्सी पर बैठने से आदमी का कायाकल्प हो जाता तो फिर क्या जरुरत भी स्कूल,कॉलेजों और प्रशिक्षण संस्थानों की?दरअसल गुण कुर्सी में नहीं होता उसपर बैठनेवाले व्यक्ति में होता है.वर्ना इसी भारत के पिछले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के समय देश की क्या हालत थी और आज क्या है.
मित्रों,यूं तो मैं भविष्यवक्ता कतई नहीं हूँ लेकिन मुझे इस बात का आभास २०१४ के लोकसभा चुनाव के समय ही होने लगा था कि राहुल को अगर पीएम बनना है तो मनमोहन को हटाकर २४ घंटे के लिए भी बन जाएँ फिर ये दिन आए न आए.इसलिए तब ब्रज की दुनिया पर एक आलेख के द्वारा हमने उनसे ऐसा कर लेने की सलाह दी थी.लेकिन हमारी वे सुनने ही क्यों लगें?नहीं सुना तो अब तरसते रहिए अपने नाम से आगे प्रधानमंत्री लिखवाने के लिए.
मित्रों,अंत में मैं अपनी आदत के अनुसार कांग्रेसजनों को सलाह देना चाहूंगा कि भैये अध्यक्ष बनना तो खुद बन जाओ.काहे को बेचारे नादान परिंदे के पीछे पड़े हो?बेचारे को विदेश घूमने दो,दलितों के घर जाकर अपने साथ लाया खाना खाने दो और कुत्ते के द्वारा पवित्र किया हुआ बिस्किट खाने दो.काहे बेचारे की जिन्दगी ख़राब करने पर तुले हो? कहीं ऐसा न हो कि बिहारी टॉपर सौरभ श्रेष्ठ की तरह राहुल जी को भी कहना पड़ जाए कि अध्यक्ष बनाओगे कि मैं ......................