शुक्रवार, 30 सितंबर 2016

जय हिंद,जय हिंद की सेना

मित्रों,हमारे लिए यह अभूतपूर्व गौरव की बात है कि हमारी पहले लगाई गई खबर कुछ दिनों की देर से ही सही,सत्य साबित हुई है। भारत के परमवीर सैनिकों ने पाकिस्तान की सीमा में घुसकर कई दर्जन आतंकवादियों जन्नत का रास्ता दिखाया है। भारत सरकार की दिलेरी को सलाम जिसने आज अचानक भारत को अमेरिका के समकक्ष लाकर खड़ा कर दिया है। जो लोग प्रधानमंत्री के विदेश दौरों पर सवाल उठाते थे वे नासमझ शायद अब समझ गए होंगे कि पीएम विदेश क्यों जाते थे। यह पीएम के विदेश दौरों और भारत सरकार की शानदार कूटनीति का ही परिणाम है कि आज भारतीय सेना की सर्जिकल स्ट्राईक के बाद दुनिया के किसी भी कोने से भारत के खिलाफ कोई आवाज नहीं उठी। बल्कि इसके उलट दुनिया की एकमात्र महाशक्ति अमेरिका सहित कई गणमान्य देशों ने भारत के कदम को उचित ठहराया। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यह वही अमेरिका और गणमान्य देश हैं जिन्होंने 1998 में पोखरण-2 के बाद भारत पर बेशुमार प्रतिबंध लगा दिए थे। हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि यह वही अमेरिका है जिसकी एक चेतावनी के बाद 1999 में भारतीय सेना कारगिल-युद्ध के दौरान नियंत्रण रेखा के इस पार रहकर कार्रवाई करने के लिए मजबूर हो गई थी।
मित्रों,कुछ लोग कह सकते हैं कि अब समय बदल गया है लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि समय स्वतः नहीं बदला करता उसको बदल देना होता है। यह काम हर किसी के वश का होता भी नहीं। यह तो वही कर सकता है जिसके सीने में सिंह से ज्यादा निर्भय अदम्य साहस हो,जिसको अपने ऊपर हिमालय से भी ज्यादा अटल विश्वास हो और जिसकी दृढ़ता की तुलना हजारों पर्वतों से भी न की जा सके। वरना क्या कारण है कि नेहरू के समय जो सेना बुरी तरह से पराजित होती है वही सेना शास्त्री के समय विकराल बनकर दुश्मनों पर टूट पड़ती है? नेपोलियन या बाजीराव के पास कोई अलग तरह की सेना नहीं थी। सेना तो वही थी लेकिन कमांडर अलग तरह थे। भारत ने एक झटके में सॉफ्ट स्टेट के शर्मनाक तमगे को अपने सीने से नोंच फेंका है और पूरी दुनिया को बता दिया है कि जब-जब भी हमारे धैर्य की सीमा टूटेगी हम दुश्मन के खेमे में घुसकर प्रलय ला देंगे। हमने साबित कर दिया है कि द्वितीय विश्वयुद्ध के समय हिटलर ने कोई मजाक में नहीं कहा था कि हमें भारत की सेना दे दी जाए तो हम एक हफ्ते में पूरी दुनिया पर कब्जा कर लें। हमने साबित कर दिया है कि हम प्रताप,शिवा,गुरू गोविंद,पृथ्वीराज,हठी हम्मीर,लक्ष्मीबाई,सांगा,दुर्गावती,अब्दुल हमीद की संतान हैं और हमारे जिस्म में खून नहीं बहता गरम-गरम लावा बहता है,हमारी धमनियाँ इस्पात की बनी हैं और हमारे नथूनों से साँसें नहीं निकलती अग्नि का वबंडर निकलता है।
मित्रों,वर्तमान परिस्थिति में सबसे ज्यादा हँसी आती है पाकिस्तान पर जिसकी भई गति साँप-छछूंदर केरी की हो गई है। न निगलते बन रहा है और न उगलते। मान लिया कि भारत ने कार्रवाई की है तो तुरंत फौरी कदम उठाने पड़ेंगे और अगर मान लिया कि नहीं की है तो भारत के पास एक-एक पल की वीडियो रिकॉर्डिंग है। 1998 से अबतक लगातार भारत को परमाणु हमले की धमकी देनेवालों के मुँह पर आज लिंक अटूट लगा हुआ है। इतना ही नहीं मन से या बेमन से आज भारत के सारे राजनीतिक दलों को सरकार और सेना का साथ देना पड़ रहा है। जो लोग कल तक मोदी के 56 ईंच वाले बयान की हँसी उड़ा रहे थे आज अपना मुँह छुपाते फिर रहे हैं।
मित्रों,इतिहास साक्षी है कि भारत ने कभी किसी देश पर पहले हमला नहीं किया इसलिए हमारी आक्रामकता से किसी को भी डरने की जरुरत नहीं है लेकिन चीन-पाकिस्तान समेत पूरी दुनिया को यह समझ लेना होगा कि आज का भारत तीन साल पहलेवाला भारत नहीं है। आज भारत का नेतृत्व किसी हुक्म के गुलाम,किसी कठपुतली या किसी रिमोट-संचालित व्यक्ति के हाथों में नहीं है बल्कि एक ऐसे योगी,एक ऐसे संन्यासी के हाथों में है जिसके जीवन का एक-2 क्षण और जिसके शरीर का एक-2 कण राष्ट्र को समर्पित है।

गुरुवार, 29 सितंबर 2016

बिहार के साथ काटजू का मजाक

मित्रों,यह मजाक भी अजीब चीज है। मजाक का यह सबसे बड़ा अवगुण है कि वो मर्यादाएँ नहीं जानता और अक्सर मजाक-मजाक में मजाक की सीमाओं को लांघ जाता है। यद्यपि उसमें एक गुण भी है जो इस अवगुण से कदापि न्यून नहीं है और वह गुण यह है कि यह बड़ी-से-बड़ी गलती को छिपा जाती है। कुछ भी बोल दीजिए,कुछ भी कर डालिए और कह दीजिए कि मैंने तो मजाक किया था। लेकिन कभी-कभी व्यक्ति का ज्यादा मजाकिया होना उसको खुद ही मजाक की साक्षात् प्रतिमा बना देता है। कुछ ऐसा ही हो रहा है इन दिनों सर्वोच्च न्यायालय के अवकाशप्राप्त न्यायाधीश मार्कण्डेय काटजू के साथ। हम सभी जानते हैं कि उन्होंने बिहार के बारे में जो भी कहा है वह मजाक में कहा है क्योंकि वे तो खुद ही भारत की न्यायपालिका के लिए,न्यायाधीश के नाम पर बहुत बड़ा मजाक हैं।
मित्रों,इन दिनों बिहार के सारे राजनीतिज्ञ काटजू साहब के पीछे नहा-धोकर पड़े हुए हैं। वे भी जिन्होंने अपने कुशासन रूपी सुशासन से बिहार को ही एक बार फिर से मजाक बना दिया है और वे भी जो विपक्ष में हैं और जानते हैं कि काटजू साहब ने जो भी कहा है कोई गलत नहीं कहा। भले ही काटजू साहब ऐसा कहते समय बिल्कुल भी मजाक के मूड में नहीं हों।
मित्रों,एक बिहारी होने और जन्म से लेकर अबतक कुछेक सालों को छोड़कर लगातार बिहार में रहने के कारण हम जानते हैं कि बिहार के लोग काफी मजाकिया प्रवृत्ति के होते हैं। वो इस दर्जे तक मजाकिया होते हैं कि बहुधा खुद अपना ही मजाक बनाते रहते हैं। हमने यह जानते हुए भी कि बड़े भाई-छोटे भाई मिलकर बिहार की बैंड बजा डालेंगे बैंड-बाजे के साथ फिर से उनको ही चुन लिया। कुछ इसी तरह के मनमौजी यूपी के भैया लोग भी होते हैं। सबकुछ पहले से पता होने के बावजूद वे बार-बार ऐसे दलों के हाथों में अपने प्रदेश का भविष्य सौंपते रहते हैं जिनका भूतकाल काफी डरावना और भयानक है। मै दावे के साथ कहता हूँ कि यूपी-बिहार वाले जिस दिन अपना मजाक खुद बनाना छोड़े देंगे कोई माई लाल उनके साथ मजाक में भी मजाक कर सकने की हिम्मत नहीं करेगा। आज बिहार के लोग भले ही अधपगले काटजू को फाँसी पर चढ़ा दें लेकिन क्या वे बताएंगे कि उन्होंने क्या सोंचकर लालू-नीतीश को वोट दिया था? इन दोनों ने आज बिहार की क्या गत कर दी है? क्या आज बिहार में फिर से शहाबुद्दीन,राजवल्लभ,बिंदी जैसे दुर्दांतों का राज नहीं है? लालू और उनके बेटों का राजदेव रंजन के हत्यारों के साथ खड़ा होना क्या यह साबित नहीं करता कि बिहार फिर से अपने उन्हीं पुराने दिनों में वापस आ गया है जिसकी मांग नीतीश जी चुनाव प्रचार के दौरान मोदी के अच्छे दिनों के वादे का मजाक उड़ाने के लिए कर रहे थे? आज सुप्रीम कोर्ट भी नीतीश जी से पूछ रहा है कि एक बार जब आपने जानबूझकर शहाबुद्दीन जैसे नरपशु को 45 मुकदमों में थोक में जमानत दिलवा दी तो अब ऐसा क्या हो गया है कि आप उसकी जमानत रद्द करने के लिए हमारे पास अपील कर रहे हैं और अगर अपील करनी ही थी तो उसके बाहर आने के तत्काल बाद क्यों नहीं की?
मित्रों,खुदा झूठ न बोलवाए सच्चाई तो यही है कि आज के नीतीश कल के जीतन राम माँझी से भी ज्यादा आदर्श कठपुतली बनकर रह गए हैं। चंदन कुमार जी का उपमुख्यमंत्री जो चारा,अलकतरा इत्यादि घोटक श्री-श्री भुजंग प्रसाद जी का सुपुत्र है और थेथरीलॉजी में अपने पिता का भी पिता है बीमारी का बहाना करके उनको नीचा दिखाने के लिए कैबिनेट की मीटिंग में नहीं जाता लेकिन 300 किमी दूर भागलपुर दौड़कर चला जाता है और नीतीश कुमार कैबिनेट की बैठक के बाद डरे-सहमे से गठबंधन सदस्यों को आश्वासन देते हैं कि उनके चलते अब उनको समस्या नहीं होगी। आखिर क्या मतलब है इस बेमांगे दिए गए आश्वासन का? क्या नीतीश कुमार यह कहना नहीं चाहते कि जो तुमको हो पसंद वही काम करेंगे भले ही बिहार फिर से अपने-आपमें मजाक बन जाए तो बन जाए? इतनी ठकुरसुहाती तो माँझी भी अपने किंगमेकरों की नहीं करते थे। निष्कर्ष यह कि काटजू साहब भले ही बेदिमागी हों और शर्तिया तौर पर बेदिमागी बातें करने में उनका पूरी वसुधा में भले ही कोई जोड़ा नहीं हो लेकिन सच्चाई तो यही है कि हम बिहारियों ने खुद ही अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारकर उनको ऐसा करने का सुअवसर दे दिया है। पता नहीं अगले साल यूपी वाले भैया लोग अपने भविष्य के साथ क्या खिलवाड़े करने वाले हैं? वे अपने-आपके साथ ही फिर से एक बार मजाक करेंगे या मजाक उड़ानेवालों को ही मजाक का पात्र बना डालेंगे?

रविवार, 25 सितंबर 2016

बोले राम सकोप तब भय बिनु होंहि न प्रीति

मित्रों,सर्वप्रथम हम आपलोगों से क्षमा चाहते हैं। क्योंकि हमने पहली बार झूठ को सच मान लेने का अपराध किया है। दरअसल खबर आई ही थी इतने बड़े-बड़े लोगों और पत्रकारों के माध्यम से कि हम भ्रमित हो गए। लेकिन कल जब हमने पीएम को सुना और गुना तो समझ गए कि खबर झूठी थी। पता नहीं यह खबर कहाँ से आई, क्यों आई या क्यों लाई गई कि भारत की सेना ने पाक सीमा में घुसकर आतंकी शिविरों पर कार्रवाई की है?
मित्रों,हमें तो पीएम के कल के भाषण से खासी निराशा हुई। इतनी निराशा हमें तब भी नहीं हुई थी जब हमारी सिविल सेवा की परीक्षा का अंतिम बार अंतिम परिणाम आया था। लगा जैसे मौका श्राद्ध का हो और गीत विवाह के गाए जा रहे हों। लगा जैसे हम एकबार फिर से अटल बिहारी वाजपेई को सुन रहे हों। लगा जैसे कुरूक्षेत्र के मैदान में श्रीकृष्ण अर्जुन को युद्ध छोड़कर भाग जाने और गांडीव को त्यागकर कर में कमंडल लेकर संन्यास ले लेने के लिए प्रेरित कर रहे हों। लगा जैसे निर्बल राम रावण के आगे दंडवत होकर कह रहे हों कि सीता को आप ही रखिए हमें किसी भी स्थिति में युद्ध नहीं चाहिए। लगा जैसे हम दीवाली में फोड़ने के लिए बहुत महंगा पटाखा लाए हों। पूरे गांव को हमने हमने अपने दरवाजे पर जमा कर लिया हो और वो धमाका करने के बजाए फुस्स हो गया हो।
मित्रों,रामायण में एक प्रसंग है कि भगवान राम को सेनासहित सागर पार करना है। वे तीन दिनों तक विनत होकर सिंधु से रास्ता मांगते हैं। अंततः उनका धैर्य जवाब दे देता है और राम क्रोधित होकर अनुज लक्ष्मण से धनुष-वाण ले आने को कहते हैं। धनुष पर ब्रह्मास्त्र का संधान होते ही सिंधु त्राहिमाम करता हुए उनके चरणों में आ गिरता है। हमारे बिहार में भी कहावत है कि जैसा देवता वैसी पूजा। कहने का मतलब कि कुछ बात के देवता होते हैं और कुछ लात के। कई प्रधानमंत्री आए और गए। सबने पाकिस्तान से यही कहा कि हमें आपके साथ मिलकर गरीबी,अशिक्षा,बिमारी,कुपोषण और बेरोजगारी के खिलाफ लड़ाई लड़नी है लेकिन पाकिस्तान के कानों पर जूँ तक नहीं रेंगी। बदले में उसने कहा कि आपको इनके खिलाफ लड़ना है तो शौक से लड़िए मगर हमें तो पूरी मानवता के खिलाफ ही लड़ना है,पूरी धरती की शांति को नष्ट-विनष्ट करके रख देना है। ऐसे में भला कब तक इंतजार किया जाएगा कि पाकिस्तान का स्वतः हृदय-परिवर्तन हो जाए? मर्यादापुरूषोत्तम राम ने भी ताड़का जैसी कई राक्षसियों का संहार किया जबकि नीति कहती है कि स्त्री अवध्या होती है। क्या हमारे प्रधानमंत्री इतनी छोटी-सी बात भी नहीं समझ पा रहे हैं?
मित्रों,राष्ट्रकवि दिनकर कहते हैं क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो,उसको क्या जो दंतहीन,विषहीन,विनीत,सरल हो। सहनशीलता,क्षमा,दया को तभी पूजता जग है,बल का दर्प चमकता उसके पीछे जब जगमग है। हम यह नहीं कहते कि भारत सरकार जल्दबाजी में कोई कदम उठाए लेकिन यह भी नहीं चाहते कि कोई कदम उठाया ही नहीं जाए। आखिर कब तक हम दुनियाभर में राक्षसी-संस्कृति के प्रसार में लगे लोगों के दुस्साहस को नजरंदाज करते रहेंगे? आखिर कब तक हमारे सैनिक बिना लड़े ही मारे जाते रहेंगे? आखिर कब तक हमारी धरती हमारे अपनों के खून से लाल होती रहेगी और हम मूकदर्शक होकर किंकर्त्तव्यविमूढ़ भाव को धारण किए राजकीय सम्मान के साथ अंतयेष्टि करते रहेंगे? आखिर कब तक??? आखिर कब तक प्रधानमंत्रीजी??? आप हमारी आखिरी उम्मीद थे और हैं। हमारी उम्मीदों को टूटने से बचा लीजिए प्लीज। अन्यथा हमें मानना पड़ेगा कि भारत एक सॉफ्ट स्टेट था और हमेशा रहेगा। हमें मानना पड़ेगा कि भारत में कभी कोई वीर पैदा ही नहीं हुआ। चंद्रगुप्त,प्रताप,पृथ्वीराज,सांगा,लक्ष्मीबाई,आल्हा-ऊदल,गोरा-बादल,शिवाजी आदि भारत में हुए ही नहीं थे। हमारा पूरा-का-पूरा इतिहास झूठ है। चंदवरदाई,जगनिक,महेश और भूषण झूठे हैं। लात खाना हमारी आदत और फितरत है और हमेशा रहेगी।

शुक्रवार, 23 सितंबर 2016

POK में सैन्य कार्यवाही की खबर,सत्य या अफवाह?

हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,कूटनीति की तुलना अगर हम करना चाहें तो दो कामों से कर सकते हैं। पहला नट की रस्सी और दूसरा सुनारी। दोनों को एकसाथ मिलाकर अगर हम कहें तो कूटनीति में एकसाथ संतुलन और महीनी दोनों की जरुरत होती है। साथ ही कूटनीति बर्फ की शिला के समान होती है जिसका 9/10 वाँ हिस्सा हमेशा दृष्टि से ओझल होता है और 1/10 वाँ हिस्सा आँखों के सामने। तथापि हमारे देश के कुछ लोग ऐसे हैं जो यह चाहते हैं भारत सरकार जो भी कूटनीतिक कदम उठाये उनको बताकर ही उठाए।
मित्रों,जो बातें पर्दे के पीछे करने योग्य होती हैं उनको पर्दे के पीछे करना ही उचित होता है वरना फिर मरियम शरीफ भी बस नाम की ही शरीफ रह जाती है। जबसे मीडिया में पाक अधिकृत कश्मीर में भारतीय सेना द्वारा आतंकी शिविरों पर कार्यवाही की खबरें आई हैं मोदी-विरोधी मानसिकता वाले लोग यह मानने को तैयार ही नहीं हैं कि भारत कभी ऐसा कर भी सकता है। जबकि भारत ही नहीं पाकिस्तान से भी जो संकेत सामने आ रहे हैं वे यही बता रहे हैं कि भारत की वर्तमान केंद्र सरकार ने इस परंपरागत मिथक को एक झटके में तोड़ डाला है कि भारतीय सेना कभी सीमापार जाकर कार्यवाही कर ही नहीं सकती। ऐसी खबरों की सच्चाई जानने के लिए सिर्फ संकेतों का ही सहारा होता है क्योंकि अलग-अलग कारणों से इस समय न तो भारत सरकार और न ही पाकिस्तान सरकार चाहती है कि सच सामने आए।
मित्रों,पहला संकेत तो यह है कि क्विंट नामक वेबसाईट जिस पर यह खबर सबसे पहले आई थी के मालिक राघव बहल कोई छोटे-मोटे व्यक्ति नहीं हैं। नेटवर्क 18 और टीवी 18 को जब तक रिलायंस ने खरीद नहीं लिया था तब तक वे ही इसके मालिक थे इसलिए उनके हवाले से आई कोई खबर अफवाह हो ही नहीं सकती है। बाद में हल्ला होने बाद जब वेबसाईट के संपादक और वरिष्ठ पत्रकार संजय पुगलिया जी से ट्विट करके पूछा गया तो उन्होंने कहा कि उनकी वेबसाईट अभी भी अपनी बात कायम है।

    .@sanjaypugalia sir can u reconfirm this news @TheQuint @QuintHindi

    — Varun (@sweetspottrader) September 21, 2016

    Our veteran investigative reporter @NandyGram has got this big scoop. More info is awaited. https://t.co/9dle3taGO7

    — Sanjay Pugalia (@sanjaypugalia) September 21, 2016

इतना ही नहीं भारत के रिटायर्ड एयर मार्शल और आर्म्ड फोर्सेस ट्राईब्युनल के सदस्य अनिल चोपड़ा (Aviator anil chopra) और रक्षा संवाददाता सुमन शर्मा ने भी ट्विट द्वारा खबर की पुष्टि की है।
  Quint story is correct https://t.co/Z7z5bAvWTh

    — Sumann Sharrma (@SumannSharrma) September 21, 2016
मित्रों,इंडिया टीवी,दैनिक जागरण और दैनिक भास्कर भी कोई छोटे-मोटे मीडिया-ग्रुप नहीं है कि अपने सूत्रों से सत्यता प्रमाणित किए बिना किसी खबर को प्रकाशित-प्रसारित कर दें। फिर पाकिस्तान द्वारा व्यावसायिक उड़ानों पर रोक लगाना भी संकेत करता है कि पाकिस्तान ने ऐसा इसलिए किया जिससे पाकिस्तानी वायुक्षेत्र में घुस आए विमान या हेलीकॉप्टर को आसानी से पहचाना जा सके। कल रात इस्लामाबाद के आसमान पर एफ-16 विमानों की उड़ान और नगरवासियों में मची भगदड़ भी बताती है कि पाकिस्तान के साथ कुछ तो ऐसा किया गया है जिससे वे काफी ज्यादा भयभीत है। कदाचित इसी भय का परिणाम है कि पाकिस्तानी प्रधानमंत्री न्यूयार्क में बार-बार अमेरिका और चीन के नेताओं से बात कर रहे हैं और निवेशक पाकिस्तान से धड़ाधड़ पैसा बाहर निकाल रहे हैं जिससे पाकिस्तानी शेयर बाजार जमीन सूंघ रहा है। भारत के रक्षा मंत्री द्वारा कहना कि दुश्मन को घुटनों पर लाना जरूरी है और प्रधानमंत्री का लगातार दूसरे दिन वार रूम में समय बिताना भी इशारों-इशारों में कहता है कि इशारों को तो समझो मगर राज को राज ही रहने दो। वैसे आपको याद है कि मनमोहन सिंह अपने कार्यकाल में कभी वार रूम में गए भी थे?

शुक्रवार, 16 सितंबर 2016

छोटे से गडकरी की गजभर की जुबान

मित्रों,जुबान की महिमा अपम्पार है। यही जुबान पान की खिलवाती है और यही लात भी। शायद इसलिए भगवान ने इंसान को छोटी जुबान दी है ताकि वो कम बोले और जो भी बोले सोंच-समझकर बोले। लेकिन कुछ लोग हैं कि मानते ही नहीं। बड़बोलों के वर्ल्ड चैंपियन केजरीवाल सर इन दिनों बंगलुरू में अपनी जुबान छोटी करवा रहे हैं। उनकी जीभ की सर्जरी का उनको और हमारे देश को कितना फायदा होता है यह तो तभी पता चलेगा जब वे वहाँ से वापस आ जाएंगे। परंतु अपने देश में तो प्रत्येक मामले में एक ढूंढ़ो हजार मिलते हैं वाली स्थिति है। यहाँ हम किस-किस का नाम लें समझ में नहीं आता क्योंकि एक का नाम लेने पर हजारों के नाराज हो जाने का खतरा है कि हमारा नाम क्यों नहीं लिया।
मित्रों,शायर कफील आजर ने कहा है कि बात निकलेगी तो दूर तलक जाएगी लेकिन कुछ लोग हैं कि इन पंक्तियों में अंतर्निहित मर्म को समझने को तैयार ही नहीं हैं और बार-बार कुछ-न-कुछ ऐसा बोलते रहते हैं कि जिससे खुद उनके साथ-साथ देश को भी नुकसान होता है। अब अपने नितिन गडकरी को ही लें। आपको याद होगा कि जब बिहार विधानसभा का चुनाव-प्रचार चल रहा था तब शाह भाईसाब ने कहा था कि कालेधन पर लोकसभा चुनावों के समय पीएम ने जो कुछ भी वादा किया था वो तो चुनावी जुमला था और फिर बिहार में भाजपा तो हारी ही बिहार का भी बंटाधार हो गया। एक गलतबयानी से आज बिहार में फिर से खूनी-दरिंदों का राज कायम हो चुका है।
मित्रों,यूपी में चुनाव सिर पर है और गडकरी अनाप-शनाप बोल रहे हैं। उन्होंने यह कहकर प्रधानमंत्री की सारी अनथक मेहनत पर ही पानी फेर दिया है कि अच्छे दिन कभी नहीं आते। उनका यह भी कहना है कि अच्छे दिनवाला बयान तो मनमोहन ने दिया था भाजपा ने दिया ही नहीं। जबकि सच्चाई यह है जब 2014 का लोकसभा का चुनाव-प्रचार चल रहा था तब दिन-रात रेडियो-टीवी पर भाजपा का यही प्रचार-गीत बचता रहता था कि अब अच्छे दिन आनेवाले हैं। जब बेचना था तब तो भाजपा ने सपनों को बेचा और अब वो कैसे कह सकती है हमने जो सपने दिखाए थे वो सपने तो सपने थे और चूँकि सपने तो सपने होते हैं इसलिए लोग उनको भूल जाएँ?
मित्रों,अच्छे दिन के वादे में तो सबकुछ समाहित होता है तो क्या केंद्र सरकार में वरिष्ठ मंत्री गडकरी के बयान के बाद यह मान लिया जाए कि मोदी सरकार ने हार मान ली है और मान लिया है कि उनसे कुछ भी नहीं होनेवाला, जैसे चल रहा था सबकुछ वैसे ही चलता रहेगा? या फिर यह मान लिया जाए कि हर बड़े चुनाव के पहले गडकरी जानबूझकर ऐसे बयान देते हैं जिससे नरेंद्र मोदी कमजोर हों? तो क्या नरेंद्र मोदी इतने कमजोर हैं कि अपने मंत्रियों तक पर भी लगाम नहीं रख सकते? ऐसा इसलिए भी मानना पड़ेगा क्योंकि केजरीवाल की तरह गडकरी को गले की कोई बीमारी है ऐसा अबतक तो सुनने में नहीं आया।

शनिवार, 10 सितंबर 2016

साहेब खुश हुआ मगर चंदा बाबू मायूस

मित्रों,पता नहीं आपने मिस्टर इंडिया फिल्म कितनी बार देखी है लेकिन मैंने तो सैंकड़ों बार देखी है। बतौर गालिब दिल को बहलाने के लिए गालिब ये खयाल अच्छा है। उस फिल्म में एक मोगैम्बो होता है जो तभी खुश होता है जब किसी की मौत होती है या फिर कोई देशविरोधी खबर आती है। मोगैम्बो ने तेजाब के तालाब बना रखे हैं जिसमें उसके एक इशारे पर लोग बिना सोंचे-विचारे कूद जाते हैं और घुल जाते हैं। चूँकि फिल्म फिल्म होती है इसलिए उसमें एक हीरो भी होता है जिसके हाथ एक ऐसा गजेट लगता है जिसको पहनने से आदमी अदृश्य हो जाता है। अंत में बुराई की हार होती है और मोगैम्बो का उसके काले साम्राज्यसहित अंत हो जाता है।
मित्रों,ये तो हुई फिल्मों वाली बात। लेकिन असल जिंदगी में ऐसा नहीं होता और हो भी नहीं सकता। वैसे तो बिहार में अनगिनत मोगैम्बो हैं लेकिन आज हम बात करेंगे सारे मोगैम्बो के साहेब यानि कुख्यात शहाबुद्दीन की। श्रीमान् शहाबुद्दीन जो जेल में रहने के समय से ही राजद की कार्यकारिणी के सदस्य है भी हत्या करके लाश को तेजाब में घुला चुके हैं निरीह-वृद्ध सिवान निवासी चंदा बाबू के बड़े बेटे की लाश। बेचारे का दोष बस इतना था कि वो सिवान में रहता था और मुँह में जुबान रखता था। दूसरे बेटे ने जब साहेब के खिलाफ भाई की हत्या का मुकदमा किया तो उसे भी साहेब ने मरवा दिया। अब परिवार में बचे कुछ जमा 3 लोग। चंदा बाबू,उनकी बीमार पत्नी और विकलांग बेटा। अब कौन लड़ता साहेब के खिलाफ? फिर जिस साहेब के पीछे पूरी सरकार हो और जिसकी जेब में न्यायपालिका को खरीदने के लिए अकूत पैसा हो उससे कोई लड़ेगा भी कैसे? सो आज न कल साहेब की जमानत तो तय थी। जब साहेब जेल में रहते हुए राजदेव रंजन जैसे दिग्गज पत्रकार को आसानी से चींटी की तरह मसल देता है और उसका बाल भी बाँका नहीं होता तो चंदा बाबू जैसों की क्या बिसात?
मित्रों,कुल मिलाकर आज 11 साल बाद साहेब जेल से बाहर आ रहे हैं लेकिन चंदा बाबू मायूस हैं। क्या विडंबना है कि जिस नीतीश कुमार ने उनको जेल में बंद किया उनकी ही सरकार ने उसकी रिहाई का मार्ग भी प्रशस्त किया। डेढ़ हजार से ज्यादा गाड़ियाँ जिन पर साहेब की उनके कद के अनुसार ही बड़ी-सी और लालू-नीतीश की छोटी तस्वीरें लगी हुई हैं उनके स्वागत के लिए भागलपुर पहुँच चुकी हैं और पहुँच चुके हैं 4 मंत्री और 35 विधायक। इनमें से 500 गाड़ियाँ तो सिर्फ सिवान से गई हैं। आज असली मोगैम्बो की जयजयकार से पूरा बिहार गूंजायमान हो जानेवाला है। वैसे साहेब के लिए जेल का कोई मतलब था भी नहीं। वे तो जेल में भी दरबार लगाते थे। उनकी पार्टी दस साल के वनवास के बाद फिर से सत्ता में जो है। लेकिन अब चंदा बाबू क्या करेंगे? पूरी तरह से हताश चंदा बाबू कहते हैं कि अब वे ऊपर की अदालत में नहीं जाएंगे बल्कि ऊपरवाले की अदालत में जाएंगे। विश्वास ही उठ गया है तंत्र पर से। अब उन्होंने सबकुछ भगवान पर छोड़ दिया है। भगवान मन हो तो न्याय करें और न मन हो तो नहीं करें। जिंदगी है कोई मिस्टर इंडिया फिल्म नहीं कि कोई ऐसा गैजेट उनके हाथ लग जाएगा जिसको पहनने के बाद वे या कोई अन्य हीरोनुमा व्यक्ति अदृश्य हो जाए। वैसे अब सिवान की धरती से कई लोग हमेशा के लिए अदृश्य हो जानेवाले हैं। साहेब ने जेल में रहते हुए ही हिट लिस्ट तो तैयार की है। ये बात और है कि साहेब शिकार करने या करवाने के समय माई समीकरण का भी खयाल नहीं रखते,साहेब जो ठहरे। उन्होंने पहले भी ज्यादातर यादवों को मारा है और भविष्य में निश्चित रूप से ज्यादातर यादव ही उनके हाथों मारे जानेवाले हैं। यहाँ मैंने शिकार शब्द का प्रयोग इसलिए किया क्योंकि अगर साहेब ने हत्या की होती तो बाईज्जत बरी होकर यूँ भव्य तरीके से बाहर नहीं आते बल्कि जेल के भीतर ही सड़ा दिए जाते। अब ये मत कहिएगा कि ऐसे शासन से तो राजतंत्र या अंग्रेजों का राज ही अच्छा था।
मित्रों,मैं कह रहा था कि चंदा बाबू अब सीधे संसार के सबसे बड़े न्यायाधिकारी भगवान के शरणागत हैं। कमोबेश हर साधारण बिहारी की यही हालत होती है ऐसी हालत में। पूरा बिहार इन दिनों भगवान भरोसे है। धरती पर जब शैतानों का राज कायम हो तो कोई कर भी क्या सकता है भगवान को गुहारने के सिवा? पहले बिंदी यादव फिर राजवल्लभ यादव और अब साहेब सारे मोगैम्बो तो एक-एक कर जेल से बाहर आते जा रहे हैं। जेल-कोर्ट-कचहरी सब बेमतलब। रहें या न रहें कोई फर्क नहीं। कानून की मोटी-मोटी किताबें भी बेमानी।
मित्रों,इस बीच पता चला है कि पाखंड और ढोंग के मामले में शानदार तरीके से अपना नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में दर्ज करवा चुके बिहार के वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी जिन्होंने बिहार में बहार लाने का वादा और दावा किया था साहेब के स्वागत में गई गाड़ियों पर लगी तस्वीरों में कोने में स्थान मिलने के बावजूद परेशान हैं। बगुला भगत जी फरमाते हैं कि जहाँ अंडरवर्ल्ड का गढ़ है वहाँ तो पूँजी-निवेश हो रहा है लेकिन बिहार में नहीं हो रहा। शायद श्री महान जी का आशय मुंबई से है।
मित्रों,जिन लोगों को रात में नहीं दिखता उनके बारे में कहा जाता है कि उनको रतौंधी हो गई हैं। जिनको दिन में नहीं दिखता उनको लोग लक्ष्मीजी की सवारी के नाम से संबोधित करते हैं लेकिन जो लोग देखकर भी नहीं देखपाने का नाटक करते हों उनके बारे में क्या कहा जाए। वैसे तो हमारे शब्दकोश में भी कई शब्द हैं लेकिन सारे के सारे असंसदीय हैं। सवाल उठता है कि क्या नीतीश जी व्यवसायियों को बिहार में जबर्दस्ती लाएंगे? अगर ऐसा हो सकता तब तो नीतीश ने अपने मुकुट में एक से बढ़कर एक मोगैम्बो जड़ रखे हैं। काश,ऐसा हो सकता तो हमारा बिहार तरक्की की रेस में अमेरिका से भी आगे होता!!!

शुक्रवार, 9 सितंबर 2016

मलाला ने किया नोबेल सम्मान का अपमान

मित्रों,पता नहीं नोबेल का शांति पुरस्कार देने का आधार क्या है? मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि सन् 1901 ईं. से लेकर अबतक इसे प्राप्त करनेवालों की सूची में अराफात जैसे कई खुराफातियों के नाम हैं जिनका नाम इस सूची में कतई नहीं होना चाहिए। वर्ष 2014 में शांति का नोबेल सम्मान प्राप्त करनेवाली मलाला युसुफजई को ही लें। दुनिया में हर साल सैंकड़ों-हजारों लोगों पर आतंकी गोलियाँ चलाते हैं और उनमें से ज्यादातर इतने भाग्यशाली नहीं होते कि जीवित बच जाएँ। तो क्या उनमें से सबको नोबेल पुरस्कार दे दिया जाना चाहिए? इनमें से कई एक तो हमारी बिरादरी के यानि पत्रकार भी होते हैं लेकिन किसी पत्रकार को नोबेल नहीं मिलता।
मित्रों,मैं शुरू से ही नहीं मानता कि मलाला युसुफजई सिर्फ इस कारण से नोबेल की हकदार हो गई क्योंकि उसके ऊपर जेहादी आतंकवादियों ने गोलियाँ चलाईँ। हमें पुरस्कार देने के समय प्राप्तकर्ता की सोंच और विचारधारा की भी विस्तार से विवेचना करनी चाहिए। मैं समझता हूँ कि नोबेल चयन समिति से मलाला के मामले में यही गलती हुई है।
मित्रों,कल जिस तरह से मलाला ने कश्मीर में जेहादी आतंकवाद का खुलकर समर्थन किया है उससे साफ पता चलता है कि उसकी सोंच निहायत संकीर्ण और सांप्रदायिक है। मलाला इस्लाम से बाहर जाकर सोंच ही नहीं सकती है। वह सर्वधर्मसमभाव में भी विश्वास नहीं रखतीं। वरना क्या कारण है कि उसको कश्मीरी मुसलमानों द्वारा कश्मीरी पंडितों को दिए गए अनगिनत घाव नजर नहीं आए। वास्विकता तो यह है पिछले 2 दशक से कश्मीर में क्षेत्रीयताधारित अलगाववाद चल ही नहीं रहा है बल्कि धर्माधारित आतंकवाद चल रहा है। शायद मलाला को यह दिख नहीं रहा या फिर वो देखना ही नहीं चाहती क्योंकि उसको लगता है कि इस्लाम के नाम पर जो होता है हमेशा सही होता है। फिर सवाल यह भी उठता है कि अगर कश्मीर में इस्लाम के नाम पर हिंसा सही है तो उसी इस्लाम के नाम पर मलाला पर जिन लोगों ने गोलियाँ चलाईं वो कैसे गलत थे? क्या कश्मीरी मुसलमानों का इस्लाम तालिबान के इस्लाम से अलग है?
मित्रों,माना कि कश्मीर में कई हफ्तों से स्कूल बंद हैं लेकिन इसके लिए जिम्मेदार कौन है? क्या एक खूंखार आतंकी की मौत के बाद और उसके कई साल पहले से सेना-पुलिस पर पत्थर फेंकनेवाले लोग शांति के पुजारी हैं?  क्या मलाला के लिए कश्मीर में बसे मुसलमान ही सिर्फ मानव हैं? क्या कश्मीरी पंडितों और सेना-पुलिस के जवानों का कोई मानवाधिकार नहीं है? क्या कश्मीरी पंडितों के परिवारों की स्त्रियों के साथ सामूहिक बलात्कार मानवाधिकार का सम्मान करना है? जिन बच्चों को स्कूल जाना चाहिए क्या उनका चंद पैसों के लालच में आकर पत्थरबाजी करना किसी भी दृष्टि से सही है? कोई पत्थर फेंकेगा तो बदले में वो फूल की उम्मीद कैसे कर सकता है?
मित्रों,आश्चर्य की बात है खुद मलाला के देश में पीओके और बलुचिस्तान में सरकारी अमले द्वारा मानवाधिकारों का घनघोर उल्लंघन हो रहा है लेकिन मलाला को दिख नहीं रहा। इसका मतलब तो यही लगाना चाहिए कि मलाला मानती है कि जो मानवाधिकार-उल्लंघन पाकिस्तान की सरकार के समर्थन से हो या सीधे-सीधे पाकिस्तान की सरकार द्वारा हो वो सही है फिर चाहे वो बलुचिस्तान में हो,पीओके में हो या फिर जम्मू-कश्मीर में हो?
मित्रों,मैं मानता हूँ कि ऐसा बचकाना और बेवकूफाना बयान देकर मलाला ने साबित कर दिया है कि नोबेल सम्मान बच्चों को देने की चीज नहीं है। साथ ही उसने उसको दिए गए महान सम्मान को अपमानित किया है। मेरा मानना है कि शांति पुरस्कार ऐसे लोगों को दिया जाना चाहिए जो तू वसुधैव कुटुंबकम् में विश्वास रखते हों,सर्वधर्मसमभाव में यकीन रखते हों,मानवमात्र ही नहीं सभी जीवों के प्रति दयालु हों,सबका साथ सबका विकास चाहते हों ऐसे लोगों को नहीं जिनकी आँखों पर सांप्रदायिकता या क्षेत्रीयता का संकीर्ण चश्मा चढ़ा हो। आज निश्चित रूप से नोबेल सम्मान खुद पर शर्मिंदा हो रहा होगा और अल्फ्रेड नोबेल की आत्मा चित्कार कर रही होगी।

गुरुवार, 8 सितंबर 2016

चीन से लेकर लाओस तक गूंजी भारतीय शेर की दहाड़


मित्रों,भारत के पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू के बारे में कहा जाता रहा है कि उनको वैश्विक कूटनीति की काफी बेहतर समझ थी। कितनी समझ थी ये तो नेहरू ही जानें लेकिन महान नेहरू की महान गलतियों का खामियाजा भारत आज तक भुगत जरूर रहा है। दुर्भाग्यवश बाद में भी जो सरकारें केंद्र में काबिज हुईं उन्होंने भी नेहरूवादी कूटनीति का ही अनुस रण किया। इसलिए हमारे सैनिक मैदान मारते रहे फिर भी हम वार्ता की मेज पर हारते रहे।
मित्रों,पहली बार केंद्र में एक ऐसी सरकार आई है जिसने नेहरूवादी कूटनीति को पूरी तरह से विसर्जित कर बिल्कुल नई तरह की नीति अपनायी है। नेहरू को शायद नोबेल शांति पुरस्कार का लालच था लेकिन नरेंद्र मोदी को अपने देशवासियों से पुरस्कार का भी लालच नहीं है। उनको तो बस वही करना है जो देश के लिए जरूरी है। कुछ लोग उनकी कूटनीति की तुलना बिस्मार्क की विदेशनीति से करते हैं लेकिन मैं ऐसा नहीं मानता क्योंकि बिस्मार्क विस्तारवाद में विश्वास रखता था और मोदी का मूल मंत्र वैश्विक स्तर पर भी सबका साथ सबका विकास का है।
मित्रों,जो लोग बात-बात पर फीता लेकर मोदी का सीना मापने की बात करते हैं मैं उनसे कहना चाहता हूँ कि वे बाजार से और भी बड़ा फीता मंगवा लें क्योंकि 56 ईंच वाला फीता अब छोटा पड़ने लगा है। नरेंद्र मोदी ने चुनाव प्रचार के दौरान ही अपनी भावी विदेश नीति का संकेत देते हुए कहा था कि हम ऐसा प्रबंध करेंगे कि कोई हमें आँख न दिखाए। साथ ही हम भी किसी को आँख नहीं दिखाएंगे और हर किसी से आँखों में आँखें डालकर बात करेंगे। अपनी इसी नीति पर खूबसूरती से अमल करते हुए एशिया की बिसात को ही पलट कर रख दिया है। आज भारत चीन से घिरा हुआ नहीं है बल्कि चीन भारत से घिरा हुआ है। जिस तरह से चीन के राष्ट्र प्रमुख भारत आने से पहले पाकिस्तान जाते हैं उसी तरह से प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी जब दूसरी बार चीन गए तो उससे पहले वियतनाम गए।
जानकारों का कहना है कि साउथ चाइना सागर में चीन के विस्तार के कारण वियतनाम दबाव में है और मोदी के इस कदम को भारत और वियतनाम के बीच बढ़ती दोस्ती और साझेदारी के रूप में देखा जा रहा है। इसी साल जुलाई में अंतरराष्ट्रीय अदालत ने कहा था कि ऐसे कोई ऐतिहासिक सबूत नहीं हैं कि चीन का इस समुद्र और इसके संसाधनों पर एकाधिकार रहा है। मोदी को लाओस में दक्षिण एशिया शिखर सम्मेलन की बैठक में शिरकत के लिए जाना ही था, लेकिन अगर चीन से जुड़ा पहलू इसमें शामिल है तो ये अच्छा सामरिक संदेश देने का प्रयास है। दशकों से वियतनाम हमारा सैन्य और सामरिक महत्व का सहयोगी रहा है।
हांगझाउ (चीन) में अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा के उलट पीएम मोदी का भव्य स्वागत हुआ। वहाँ जी-20सम्मेलन के मंच से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तान पर बेहद तीखा हमला किया। पाकिस्तान का नाम लिए बिना मोदी बोले कि एक देश अकेले ही दक्षिण एशिया में आतंकवादियों के एजेंट फैलाने में जुटा है। पाकिस्तान को शह देने वाले चीन को भी मोदी ने उसी की धरती पर खरी-खरी सुनाई।

दुनिया की 20 ताकतवर अर्थव्यवस्थाओं के मंच जी-20 के सम्मेलन के अंतिम सत्र में मोदी ने विश्व समुदाय से आतंकवाद के खिलाफ एकजुट होने की अपील की। उन्होंने कहा कि इस पर दोहरे मानदंड न अपनाएं। आतंकवाद को समर्थन दे रहे देशों को अलग-थलग करना चाहिए न कि उनका सम्मान होना चाहिए। उन्होंने कहा कि आतंकवाद पर भारत की नीति जीरो टोलरेंस की है, क्योंकि इससे कम कुछ नहीं चलेगा। इससे एक दिन पहले ब्रिक्स देशों से भी मोदी ने आतंकवाद के समर्थक और प्रायोजक देशों को अलग-थलग करने की अपील की थी। उन्होंने चेतावनी भी दी कि आतंकवाद के खिलाफ तमाम देश एकजुट नहीं हुए तो व्यापार और निवेश सब चौपट हो जाएगा। पीएम मोदी ने कहा कि आतंकियों के पास बैंक और हथियारों के कारखाने नहीं होते, ज़ाहिर है कि फंड और हथियार उन्हें कहीं और से मिलते हैं।

इतना ही नहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जी-20 बैठक में भ्रष्टाचार और कालेधन पर लगाम कसने के लिए सदस्य देशों से मदद की अपील की। उन्होंने कहा कि प्रभावी वित्तीय संचालन के लिए भ्रष्टाचार, कालाधन और कर चोरी से निपटना जरूरी है। इसके लिए भ्रष्टाचार के खिलाफ आर्थिक अपराधियों की सुरक्षित पनाहगाह खत्म करनी होंगी। साथ ही मनी लांड्रिंग करने वालों का बिना शर्त प्रत्यर्पण, जटिल अंतरराष्ट्रीय नियम सरल बनाना और बहुत ज्यादा बैंकिंग गोपनीयता खत्म करने की दिशा में प्रयास जरूरी हैं।

प्रधानमंत्री मोदी ने चीन के राष्ट्रपति शी जिंगपिंग से द्विपक्षीय वार्ता के दौरान भी आतंकवाद के मुद्दे पर बात की। सूत्रों के मुताबिक पीएम मोदी ने शी जिनपिंग से बातचीत के दौरान NSG यानी न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप में भारत की सदस्यता का मुद्दा भी उठाया और चीन से अपने रुख पर फिर से विचार करने को कहा। चीन NSG में भारत की सदस्यता का विरोध करता रहा है।
मोदी ने कहा कि आप विश्व का नेतृत्व तो करना चाहते हैं। लेकिन जहां चरमपंथ का सवाल है, ख़ासकार जिस देश के साथ आपके सबसे घनिष्ठ संबंध है, वहां से जो चरमपंथ आ रहा है उस पर आप कुछ नहीं कर रहे हैं। मोदी ने ये भी कहा कि संयुक्त राष्ट्र में जब हम ये मुद्दा उठाते हैं तो आप उसमें भी बाधा डालते हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने चीन और पाकिस्तान के बीच बन रहे आर्थिक कॉरिडोर के कश्मीर क्षेत्र से गुज़रने का मुद्दा भी उठाया।

चीनी नेता ने कहा कि भारत उनके लिए बहुत अहम और इस क्षेत्र का सबसे बड़ा देश है और उसकी बात को हम गंभीरता से लेते हैं।

मोदी ने ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री मैल्कम टर्नबुल से द्विपक्षीय मुलाकात के दौरान भी आतंकवाद के खिलाफ एकजुटता बढ़ाने पर ज़ोर दिया। उन्होंने NSG के मुद्दे पर भारत के समर्थन के लिए ऑस्ट्रेलिया को धन्यवाद भी दिया।

ब्रिक्स की अगली बैठक गोवा में होने वाली है। उससे पहले ये बात उठाने ये संकेत मिल रहे हैं कि भारत यह कोशिश कर रहा है कि गोवा की बैठक में 'आतंकवाद' और पाकिस्तानी घुसपैठ का मुद्दा उठाया जाए।

चीन से लाओस पहुंचने पर आसियान सम्मेलन में भी पीएम ने आतंकवाद पर चोट की और कहा कि आतंक का निर्यात बंद होना ही चाहिए। पीएम मोदी ने कहा कि आसियान इंडिया प्लान ऑफ एक्शन (2016-20) के तहत 54 गतिविधियों को पहले ही लागू किया जा चुका है। उन्होंने बढ़ती हिंसा और आतंकवाद और कट्टरवाद को समाज की सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा बताया। ये तीसरा मौका है, जब पीएम मोदी इंडिया-आसियान समिट में शामिल हुए और उन्होंने इस बात का जिक्र अपने संबोधन में भी किया।

पीएम मोदी इस समिट के बाद कई देशों के राष्ट्रप्रमुखों से मुलाकात करेंगे, लेकिन इसमें सबसे अहम अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के साथ होने वाली उनकी बैठक है। दोनों नेताओं के बीच विभिन्न क्षेत्रीय एवं बहुपक्षीय मुद्दों पर चर्चा किए जाने की संभावना है। व्हाइट हाउस की तरफ से भी इस बात की जानकारी दी गई कि प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति ओबामा लाओस में द्विपक्षीय बैठक करेंगे। पिछले दो सालों में ये मोदी और ओबामा की 8वीं मीटिंग होगी। वैसे, रविवार को चीन में जी20 सम्मेलन से इतर भी प्रधानमंत्री मोदी और ओबामा की बैठक हुई थी।

इसके अलावा पीएम मोदी मेजबान देश के प्रधानमंत्री थोंगलोउन सिसोउलिथ, दक्षिण कोरियाई राष्ट्रपति पार्क गुन-हे और म्यांमा की स्टेट काउंसेलर आंग सान सू ची से भी मुलाकात करेंगे। मोदी ने बुधवार को अ पने जापानी समकक्ष शिंझो आबे के साथ द्विपक्षीय बैठक की । भारत और जापान ने आतंकवाद से मुकाबले, व्यापार और निवेश के क्षेत्र में सहयोग को और अधिक मजबूत करने का संकल्प लिया । साथ ही मोदी ने आबे से हाल ही में बांग्लादेश में हुए आतंकी हमलों में जापानी नागरिकों के मारे जाने को लेकर संवेदनाएं भी जाहिर कीं। बांग्लादेश में इस्लामी चरमपंथियों ने विदेशियों के बीच मशहूर एक कैफे पर हमला किया था, जिसमें 22 लोग मारे गए थे।

आबे ने कहा कि जापान आतंकवाद के समक्ष घुटने नहीं टेकने वाला है। उन्होंने आतंकवाद से निपटने के लिए भारत के साथ सहयोग को और अधिक मजबूत करने की इच्छा जाहिर की। गुरुवार दोपहर को लाओस के प्रधानमंत्री की ओर से आज एक भव्य भोज का आयोजन किया जाएगा। मोदी शाम के समय दिल्ली के लिए रवाना होंगे।

चीन से लेकर लाओस तक गूंजी भारतीय शेर की दहाड़

मित्रों,भारत के पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू के बारे में कहा जाता रहा है कि उनको वैश्विक कूटनीति की काफी बेहतर समझ थी। कितनी समझ थी ये तो नेहरू ही जानें लेकिन महान नेहरू की महान गलतियों का खामियाजा भारत आज तक भुगत जरूर रहा है। दुर्भाग्यवश बाद में भी जो सरकारें केंद्र में काबिज हुईं उन्होंने भी नेहरूवादी कूटनीति का ही अनुशरण किया। इसलिए हमारे सैनिक मैदान मारते रहे फिर भी हम वार्ता की मेज पर हारते रहे।
मित्रों,पहली बार केंद्र में एक ऐसी सरकार आई है जिसने नेहरूवादी कूटनीति को पूरी तरह से विसर्जित कर बिल्कुल नई तरह की नीति अपनायी है। नेहरू को शायद नोबेल शांति पुरस्कार का लालच था लेकिन नरेंद्र मोदी को अपने देशवासियों से पुरस्कार का भी लालच नहीं है। उनको तो बस वही करना है जो देश के लिए जरूरी है। कुछ लोग उनकी कूटनीति की तुलना बिस्मार्क की विदेशनीति से करते हैं लेकिन मैं ऐसा नहीं मानता क्योंकि बिस्मार्क विस्तारवाद में विश्वास रखता था और मोदी का मूल मंत्र वैश्विक स्तर पर भी सबका साथ सबका विकास का है।
मित्रों,जो लोग बात-बात पर फीता लेकर मोदी का सीना मापने की बात करते हैं मैं उनसे कहना चाहता हूँ कि वे बाजार से और भी बड़ा फीता मंगवा लें क्योंकि 56 ईंच वाला फीता अब छोटा पड़ने लगा है। नरेंद्र मोदी ने चुनाव प्रचार के दौरान ही अपनी भावी विदेश नीति का संकेत देते हुए कहा था कि हम ऐसा प्रबंध करेंगे कि कोई हमें आँख न दिखाए। साथ ही हम भी किसी को आँख नहीं दिखाएंगे और हर किसी से आँखों में आँखें डालकर बात करेंगे। अपनी इसी नीति पर खूबसूरती से अमल करते हुए एशिया की बिसात को ही पलट कर रख दिया है। आज भारत चीन से घिरा हुआ नहीं है बल्कि चीन भारत से घिरा हुआ है। जिस तरह से चीन के राष्ट्र प्रमुख भारत आने से पहले पाकिस्तान जाते हैं उसी तरह से प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी जब दूसरी बार चीन गए तो उससे पहले वियतनाम गए।
जानकारों का कहना है कि साउथ चाइना सागर में चीन के विस्तार के कारण वियतनाम दबाव में है और मोदी के इस कदम को भारत और वियतनाम के बीच बढ़ती दोस्ती और साझेदारी के रूप में देखा जा रहा है। इसी साल जुलाई में अंतरराष्ट्रीय अदालत ने कहा था कि ऐसे कोई ऐतिहासिक सबूत नहीं हैं कि चीन का इस समुद्र और इसके संसाधनों पर एकाधिकार रहा है। मोदी को लाओस में दक्षिण एशिया शिखर सम्मेलन की बैठक में शिरकत के लिए जाना ही था, लेकिन अगर चीन से जुड़ा पहलू इसमें शामिल है तो ये अच्छा सामरिक संदेश देने का प्रयास है। दशकों से वियतनाम हमारा सैन्य और सामरिक महत्व का सहयोगी रहा है।
हांगझाउ (चीन) में अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा के उलट पीएम मोदी का भव्य स्वागत हुआ। वहाँ जी-20सम्मेलन के मंच से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तान पर बेहद तीखा हमला किया। पाकिस्तान का नाम लिए बिना मोदी बोले कि एक देश अकेले ही दक्षिण एशिया में आतंकवादियों के एजेंट फैलाने में जुटा है। पाकिस्तान को शह देने वाले चीन को भी मोदी ने उसी की धरती पर खरी-खरी सुनाई।

दुनिया की 20 ताकतवर अर्थव्यवस्थाओं के मंच जी-20 के सम्मेलन के अंतिम सत्र में मोदी ने विश्व समुदाय से आतंकवाद के खिलाफ एकजुट होने की अपील की। उन्होंने कहा कि इस पर दोहरे मानदंड न अपनाएं। आतंकवाद को समर्थन दे रहे देशों को अलग-थलग करना चाहिए न  कि उनका सम्मान होना चाहिए। उन्होंने कहा कि आतंकवाद पर भारत की नीति जीरो टोलरेंस की है, क्योंकि इससे कम कुछ नहीं चलेगा। इससे एक दिन पहले ब्रिक्स देशों से भी मोदी ने आतंकवाद के समर्थक और प्रायोजक देशों को अलग-थलग करने की अपील की थी। उन्होंने चेतावनी भी दी कि आतंकवाद के खिलाफ तमाम देश एकजुट नहीं हुए तो व्यापार और निवेश सब चौपट हो जाएगा। पीएम मोदी ने कहा कि आतंकियों के पास बैंक और हथियारों के कारखाने नहीं होते, ज़ाहिर है कि फंड और हथियार उन्हें कहीं और से मिलते हैं।

इतना ही नहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जी-20 बैठक में भ्रष्टाचार और कालेधन पर लगाम कसने के लिए सदस्य देशों से मदद की अपील की। उन्होंने कहा कि प्रभावी वित्तीय संचालन के लिए भ्रष्टाचार, कालाधन और कर चोरी से निपटना जरूरी है। इसके लिए भ्रष्टाचार के खिलाफ आर्थिक अपराधियों की सुरक्षित पनाहगाह खत्म करनी होंगी। साथ ही मनी लांड्रिंग करने वालों का बिना शर्त प्रत्यर्पण, जटिल अंतरराष्ट्रीय नियम सरल बनाना और बहुत ज्यादा बैंकिंग गोपनीयता खत्म करने की दिशा में प्रयास जरूरी हैं।

प्रधानमंत्री मोदी ने चीन के राष्ट्रपति शी जिंगपिंग से द्विपक्षीय वार्ता के दौरान भी आतंकवाद के मुद्दे पर बात की। सूत्रों के मुताबिक पीएम मोदी ने शी जिनपिंग से बातचीत के दौरान NSG यानी न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप में भारत की सदस्यता का मुद्दा भी उठाया और चीन से अपने रुख पर फिर से विचार करने को कहा। चीन NSG में भारत की सदस्यता का विरोध करता रहा है।
मोदी ने कहा कि आप विश्व का नेतृत्व तो करना चाहते हैं। लेकिन जहां चरमपंथ का सवाल है, ख़ासकार जिस देश के साथ आपके सबसे घनिष्ठ संबंध है, वहां से जो चरमपंथ आ रहा है उस पर आप कुछ नहीं कर रहे हैं। मोदी ने ये भी कहा कि संयुक्त राष्ट्र में जब हम ये मुद्दा उठाते हैं तो आप उसमें भी बाधा डालते हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने चीन और पाकिस्तान के बीच बन रहे आर्थिक कॉरिडोर के कश्मीर क्षेत्र से गुज़रने का मुद्दा भी उठाया।

चीनी नेता ने कहा कि भारत उनके लिए बहुत अहम और इस क्षेत्र का सबसे बड़ा देश है और उसकी बात को हम गंभीरता से लेते हैं।

मोदी ने ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री मैल्कम टर्नबुल से द्विपक्षीय मुलाकात के दौरान भी आतंकवाद के खिलाफ एकजुटता बढ़ाने पर ज़ोर दिया। उन्होंने NSG के मुद्दे पर भारत के समर्थन के लिए ऑस्ट्रेलिया को धन्यवाद भी दिया।

ब्रिक्स की अगली बैठक गोवा में होने वाली है। उससे पहले ये बात उठाने ये संकेत मिल रहे हैं कि भारत यह कोशिश कर रहा है कि गोवा की बैठक में 'आतंकवाद' और पाकिस्तानी घुसपैठ का मुद्दा उठाया जाए।

चीन से लाओस पहुंचने पर आसियान सम्मेलन में भी पीएम ने आतंकवाद पर चोट की और कहा कि आतंक का निर्यात बंद होना ही चाहिए। पीएम मोदी ने कहा कि आसियान इंडिया प्लान ऑफ एक्शन (2016-20) के तहत 54 गतिविधियों को पहले ही लागू किया जा चुका है। उन्होंने बढ़ती हिंसा और आतंकवाद और कट्टरवाद को समाज की सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा बताया। ये तीसरा मौका है, जब पीएम मोदी इंडिया-आसियान समिट में शामिल हुए और उन्होंने इस बात का जिक्र अपने संबोधन में भी किया।

पीएम मोदी इस समिट के बाद कई देशों के राष्ट्रप्रमुखों से मुलाकात करेंगे, लेकिन इसमें सबसे अहम अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के साथ होने वाली उनकी बैठक है। दोनों नेताओं के बीच विभिन्न क्षेत्रीय एवं बहुपक्षीय मुद्दों पर चर्चा किए जाने की संभावना है। व्हाइट हाउस की तरफ से भी इस बात की जानकारी दी गई कि प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति ओबामा लाओस में द्विपक्षीय बैठक करेंगे। पिछले दो सालों में ये मोदी और ओबामा की 8वीं मीटिंग होगी। वैसे, रविवार को चीन में जी20 सम्मेलन से इतर भी प्रधानमंत्री मोदी और ओबामा की बैठक हुई थी।

इसके अलावा पीएम मोदी मेजबान देश के प्रधानमंत्री थोंगलोउन सिसोउलिथ, दक्षिण कोरियाई राष्ट्रपति पार्क गुन-हे और म्यांमा की स्टेट काउंसेलर आंग सान सू ची से भी मुलाकात करेंगे। मोदी ने बुधवा को पने जापानी समकक्ष शिंझो आबे के साथ द्विपक्षीय बैठक की थी। भारत और जापान ने आतंकवाद से मुकाबले, व्यापार और निवेश के क्षेत्र में सहयोग को और अधिक मजबूत करने का संकल्प लिया था। साथ ही मोदी ने आबे से हाल ही में बांग्लादेश में हुए आतंकी हमलों में जापानी नागरिकों के मारे जाने को लेकर संवेदनाएं भी जाहिर कीं। बांग्लादेश में इस्लामी चरमपंथियों ने विदेशियों के बीच मशहूर एक कैफे पर हमला किया था, जिसमें 22 लोग मारे गए थे।

आबे ने कहा कि जापान आतंकवाद के समक्ष घुटने नहीं टेकने वाला है। उन्होंने आतंकवाद से निपटने के लिए भारत के साथ सहयोग को और अधिक मजबूत करने की इच्छा जाहिर की। गुरुवार दोपहर को लाओस के प्रधानमंत्री की ओर से आज एक भव्य भोज का आयोजन किया जाएगा। मोदी शाम के समय दिल्ली के लिए रवाना होंगे।

सोमवार, 5 सितंबर 2016

क्या मुस्लिम महिलाओं को मिल पाएगा सुप्रीम कोर्ट से न्याय?

मित्रों,मैंने यूपीए की सरकार के समय अपने ब्लॉग brajkiduniya.blogspot.com पर लिखा था कि रजिया को बेशक विशेष सुविधा दीजिए लेकिन राधा को उससे वंचित भी नहीं रखिए। लेकिन देखा जा रहा है कि सत्ता में आने के ढाई साल बाद भी नई सरकार ने पुरानी सरकार की उन विभेदपूर्ण व तुष्टीकारक नीतियों को ही जारी रखा है जिसके चलते हिंदू अपने ही देश में,बहुसंख्यक होते हुए भी द्वितीयक स्तर के नागरिक बना दिए गए हैं। जब कथित हिंदुत्त्ववादी केंद्र सरकार का ऐसा हाल है तो जिन प्रदेशों में समाजवादी या साम्यवादी पार्टियों या विचारधाराहीन कांग्रेस पार्टी की सरकार है उनके हालात का तो कहना ही क्या। आज भी यकीनन यकीन नहीं होता कि भारत एक हिंदूबहुल देश है।
मित्रों,बात सरकारों तक ही सीमित होती तो फिर भी गनीमत थी। देखा तो यह भी जा रहा है कि न्यायपालिका भी सिर्फ हिंदुओं के रीति-रिवाजों और हिंदुओं के मामलों में ही टांग अड़ाने में मजा आ रहा है। अब दही-हांडी की ऊँचाई और उसमें भाग लेनेवालों की उम्र तक भी सुप्रीम कोर्ट तय करने लगा है और यह गलत भी नहीं है। लेकिन जैसे ही मुसलमानों का मामला आता है सुप्रीम कोर्ट कोना पकड़ लेता है। कुछ ही दिनों बाद धर्म के नाम पर बकरीद पर हजारों बेजुबान-निर्दोष जानवरों का गला रेत दिया जाएगा लेकिन सुप्रीम कोर्ट इसमें कतई हस्तक्षेप नहीं करेगा।
मित्रों,ऐसे माहौल में यह देखना बेहद दिलचस्प होगा कि भारत की करोड़ों मुस्लिम महिलाओं को तलाक और बहुविवाह के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट से न्याय मिल पाता है या नहीं। गेंद 1986 के शाहबानो मामले के बाद एक बार फिर से सुप्रीम कोर्ट के पाले में है। सवाल उठता है कि क्या सुप्रीम कोर्ट मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के कुरानाधारित इस कुतर्क को मानेगा कि पुरूष ज्यादा बुद्धिमान होते हैं और बहुविवाह को रोकने से पत्नियों की हत्या को बढ़ावा मिलेगा। देश के बाँकी संप्रदाय के लोग तो एक ही विवाह कर रहे हैं और फिर भी अपनी पत्नियों की हत्या नहीं कर रहे हैं तो फिर मुसलमानों में ही यह हत्या करने की पागलपनवाली बीमारी फैलने का भय क्यों है?
मित्रों,कुछ ऐसा ही तर्क यूनानी दार्शनिक अरस्तू ने भी आज से ढाई हजार साल पहले दिया था कि चूँकि महिलाओं के मुँह में कम दाँत होते हैं इसलिए वे पुरुषों से कमतर होती हैं। लेकिन आज का पश्चिमी समाज तो इसे सही नहीं मानता। चर्च सदियों तक अड़ा रहा कि सूर्य और बाँकी के ग्रह-तारे धरती की परिक्रमा करते हैं क्योंकि बाईबिल में यही लिखा है लेकिन बाद में चर्च ने अपना मत बदल लिया क्योंकि पश्चिम में चर्च की रूढ़िवादिता के खिलाफ लंबे समय तक धर्मसुधार आंदोलन चला जिससे ऐसा नहीं करने पर उसकी अपनी प्रासंगिकता ही खतरे में पड़ जाने का खतरा था।
मित्रों,दुर्भाग्यवश हम देखते हैं कि ऐसा कोई सुधार आंदोलन अब तक मुस्लिम समाज में नहीं चला है। आंदोलन चला भी है तो बहावी आंदोलन जिसने कट्टरता और रूढ़िवादिता को बढ़ाया ही है घटाया नहीं है। सवाल उठता है कि अगर कुरान कहता है कि धरती चपटी है तो क्या मुसलमान अपने बच्चों को वैसे स्कूलों में नहीं पढ़ाएंगे जिनमें यह पढ़ाया जाता है कि धरती गोल है? ऐसे में अगर मुस्लिम समाज अपने रीति-रिवाजों और मान्यताओं में समयानुकूल बदलाव नहीं करता है और महिलाओं को पशुओं से भी घटिया जानवर मानते हुए 1400 साल पुरानी किताब कुरान का हवाला देकर उनके मानवाधिकारों का लगातार हनन करता रहता है तो सवाल उठता है कि न्याय और धर्म की भूमि भारत क्या उसे चुपचाप ऐसा करने देगा? मुस्लिम महिलाओं के उद्धार और उनके गरिमामय जीवन को सुनिश्चित करने की शुरुआत सुप्रीम कोर्ट बखूबी कर सकता है। मगर वो ऐसा करेगा क्या? और क्या अपने समुचित उत्तर द्वारा केंद्र सरकार ऐसा करने में उसकी सहायता करेगी?