सोमवार, 28 नवंबर 2016

विपक्ष की दाढ़ी में तिनका

मित्रों, 15 अगस्त,1947 के बाद से ही अपने देश में पक्ष और विपक्ष के बीच यह अघोषित समझौता रहा है कि जब भी कोई पार्टी सत्ता में रहती है तो उन दूसरी पार्टियों को बचाती है जिनको गरियाकर या अपदस्थकर वो सत्ता में आती है। सौभाग्यवश इन दिनों पहली बार केंद्र में ऐसी सरकार सत्तारूढ़ है जो किसी को भी बचा नहीं रही है बल्कि देश को बचाने की सच्चे मन से कोशिश कर रही है। वरना इससे पहले जो तथाकथित प्रधानमंत्री थे वे पकड़े गए कालेधन को छुड़ाने के लिए आयकर आयुक्त को एक-एक दिन में 27 बार खुद ही फोन करते थे।
मित्रों, हमने-आपने सबने अकबर-बीरबल की चोर की दाढ़ी में तिनके वाली कहानी पढ़ी है। उक्त कहानी में किसी की भी दाढ़ी में तिनका नहीं होता लेकिन जो चोर होता है वो बीरबल के झाँसे में आकर अपनी दाढ़ी में तिनका खोजने लगता है। कालेधन के खिलाफ मोदी सरकार ने जो मुहिम छेड़ी है उसके खिलाफ जिस तरह से विपक्ष बौखलाया हुआ है उससे स्वतः ही पता चल जाता है कि किसके घर में कितना बोरा 500-1000 का नोट रखा हुआ है। वैसे जिन लोगों को लगता होगा कि मोदी सरकार का यह कालाधन के विरूद्ध पहला और आखिरी कदम है उनको बता दूँ कि अभी तो महफिल शुरू ही हुई है। अभी तो उसका चरमबिंदु (क्लाईमेक्स) पर पहुँचना बाँकी है। अभी तो भ्रष्टाचार की कई परतों को उघाड़ना बाँकी है,बरगद की कई जटाओं को काटना शेष है।
मित्रों, कहावत है कि जिनके मकान शीशे के होते हैं वे दूसरों के घरों पर पत्थर नहीं फेंका करते। जाहिर है कि जिसके पास खुद अपार कालाधन होगा वो श्यामालक्ष्मी के दूसरे उपासकों के विरूद्ध भला कैसे कार्रवाई करेगा? फिर मोदी के पास तो अपना सफेद धन भी नहीं है कालाधन तो दूर की बात है। कदाचित, मोदी के हाथों अपनी दुर्गति का अंदाजा विपक्ष के लुटेरों को पहले से ही था इसी वजह से वे 2014 में मोदी के पीएम बनने के खिलाफ एकजुट हो गए थे।
मित्रों, इन दिनों लालू परिवार दिल्ली में 100 करोड़ की लागत से राबड़ी भवन बना रहा है। कहाँ से आया उस लालू परिवार के पास इतना अकूत धन जो आज से 35-40 साल पहले पटना में एक कमरे के फ्लैट में किराये पर रहता था? आज सोनिया गांधी के बारे में विदेशी पत्र-पत्रिकाओं में छप रहा है कि उसके पास ब्रिटेन की महारानी से भी ज्यादा संपत्ति है। एक जमाने की बार-गर्ल महाकंगाल एंटोनिया माइनो उर्फ सोनिया गांधी के पास कहाँ से आई इतनी अकूत संपत्ति? इसी तरह से केजरीवाल, मुलायम, ममता, माया आदि ने भी कभी कोई व्यवसाय तो किया नहीं फिर इन भिखमंगों के पास कहाँ से आ गया उनके पास इतना पैसा जिसके छिन जाने से या छीन लिए जाने की प्रबल संभावना से वे पगला गए हैं?
मित्रों, इन दिनों कालेधन के खिलाफ संग्राम छिड़ने से सिर्फ राजनेता ही परेशान नहीं हैं बल्कि कई न्याय की कथित मूर्ति और बैंक यूनियन वाले भी अलबला रहे हैं। कहना न होगा कि नोट बंद होने की चोट इनको भी करारी पड़ी है। कहावत है कि जाके पैर न फटे बिबाई सो क्या जाने पीड़ पराई। जब किसी लुटेरे से उसकी जीवनभर की लूट की कमाई छीन ली जाती है तो उस हत्यारे पर क्या गुजरती है ये या तो वही जानता है या फिर उस लूट से मौज उड़ानेवाला उसका परिवार जानता है। जब कुत्तों के झुड में से किसी एक की पूँछ गाड़ी के नीचे आती है तो हर कोई बिना पूछे ही जान जाता है कि किस कुत्ते की पूँछ कुचली गई है।
मित्रों, मोदी सरकार बड़ी बेरहम है। जबरा मारे भी और रोये भी न दे। वह बेरहमी से मार भी रही है और रोने भी नहीं दे रही। चिल्लाये तो हर कोई जान जाएगा कि इसकी पूँछ भी कुचली गई है और चुप रहे तो पूँछ से हाथ ही धोना पड़ेगा। गरीबों का क्या उसको तो अपना लुटा हुआ पैसा वापस चाहिए, चमकता हुआ भारत चाहिए, अभावमुक्त सुखी जीवन चाहिए जिनके झूठे सपने उसे आज तक बारी-बारी से सत्ता में रहे लुटेरे दिखाते रहे हैं।

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