सोमवार, 3 जुलाई 2017

प्रियंका का खून और सोनिया के आंसू

मित्रों, आपलोगों ने भी एक चुटकुला जरूर पढ़ा होगा जिसमें एक व्यक्ति का दूसरे से उसकी पत्नी की मौजूदगी में झगडा हो जाता है. जब तक पति दूसरे को पीट रहा होता है तब तक तो महिला मज़ा लेती है लेकिन जैसे ही पति मार खाने लगता है वो पुलिस को फोन कर देती है. पुलिस जब पूछती है कि इतनी देर से मारा-मारा चल रही है तो पहले क्यों नहीं फोन किया तो महिला जबाव देती है कि तबसे तो मेरे पति उसे पीट रहे थे.
मित्रों, हमारे गाँधी-नेहरु परिवार की भी इन दिनों यही हालत है. जब देश में एक के बाद एक जेहादी आतंकवादी हमले हो रहे थे और धरती को कथित काफिरों के निर्दोष खून से लाल किया जा रहा था, जब हजारों निर्दोष सिखों को गले में जलता हुआ टायर डाल कर कांग्रेसियों ने जिन्दा जला दिया तब राजमाता  Antonia Edvige Albina Maino उर्फ़ सोनिया गाँधी की आँखों से एक कतरा आंसू नहीं टपका. लेकिन जैसे ही पुलिस मुठभेड़ में चंद मुस्लिम आतंकवादी मारे गए उनका दिल जार-जार रोने लगा और आँखों से गंगा-जमुना की निर्बाध धारा बह निकली. आतंकियों के प्रति इतनी दया इतनी करुणा तो शायद लादेन के मन में भी नहीं उमड़ी होगी.
मित्रों, यह कैसी भारतीय राजनेता है जो भारत पर हमला करनेवालों के प्रति ही इतनी गहरी सहानुभूति रखती है! फिर ऐसी महिला कैसे स्वप्न में भी भारत का भला सोंच सकती है? और हम भी कितने दीवाने थे कि उसकी ही गोद में सर रखकर दस सालों तक अपने और अपने देश के भले के सपने देखते रहे!?
मित्रों, जब माँ ऐसी होगी तो उसके बच्चे कैसे होंगे जिनके जिस्म में राजमाता का खून प्रवाहित हो रहा है और जिनकी परवरिश राजमाता के मार्गदर्शन में हुआ है? सो बेटी ने भी सिद्ध कर दिया वो मामूली माहिला की नहीं बल्कि महान भारतीय सोनिया गाँधी की बेटी है. जब भीड़ हिन्दुओं-सिखों को मार रही थी तब तो बेटी नयनसुख प्राप्त करने में लगी थी लेकिन जैसे ही भीड़ के हाथों मरनेवाला मुसलमान हुआ अचानक उसका खून खौलने लगा,भुजाएँ कसमसाने लगीं,नसें फरकने लगीं.
मित्रों, ये कैसी करुणा है जो केवल जेहादी दरिंदों के लिए उमड़ती है और यह कैसा खून है जो सिर्फ एक मजहब विशेष के लिए ही खौलता है? यहाँ मैं यह स्पष्ट कर दूं कि मैं किसी भी तरह के भीड़तंत्र के खिलाफ हूँ. चाहे भीड़ के हाथों मुसलमान मारे जाएँ या काफ़िर. लेकिन राजमाता के मन में इतनी करुणा! आहा,मन अभिभूत हुआ जा रहा है. आज अगर महत्मा ईसा होते तो अपने रक्त से आपके चरण पखारते. और इतना गुस्सा! इतना गुस्सा तो अमरीशपुरी को उनकी किसी भी फिल्म में नहीं आया था. बल्कि आपको याद होगा कि मिस्टर इंडिया में तो वे बार-बार खुश हो रहे थे. इंडिया धन्य हो गया कि ऐसे महामानवों के पांव उसकी धरती पर पड़े.

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