रविवार, 31 दिसंबर 2017

अलविदा २०१७ स्वागतम २०१८

मित्रों, आज साल २०१७ का अंतिम दिन है. समझ में नहीं आता कि इस साल को किस तरह याद करूँ? व्यक्तिगत जीवन की अगर बात करूँ तो ये साल हमारे लिए काफी अच्छा रहा. साल की शुरुआत में हमने अधूरा ही सही घर बनाया. भगवान ने हमें साल के अंत में दिसंबर की सात तारीख को ७ बजकर ७ मिनट पर एक और पुत्र दिया जिसका नाम उसके बड़े भाई भगत सिंह ने कुंवर सिंह रखा. लेकिन हमारा कुछ भी व्यक्तिगत तो होता नहीं है बल्कि हमारा दिल तो देश के लिए धडकता है इसलिए आगे हम बीते हुए साल की व्याख्या देश के सन्दर्भ में करेंगे.
मित्रों, इस साल हमारे देश में सबसे बड़ी घटना हुई जीएसटी लागू होना. इसे हम एक आर्थिक क्रांति का नाम भी दे सकते हैं हालाँकि वर्तमान में इसका अल्पकालिक दुष्प्रभाव देखने को मिल रहा है लेकिन हम उम्मीद करते हैं कि बहुत जल्दी केंद्र और प्रदेशों की सरकारें मिलकर तात्कालिक मंदी को दूर कर लेंगी और न सिर्फ जीडीपी दहांई के अंकों में दहाडेगी बल्कि तेजी से बढती बेरोजगारी भी घटेगी और भारत २०१८ में एक बार फिर से वर्ष १८१३ से पहले के भारत की तरह दुनिया की फैक्ट्री बन सकेगा.
मित्रों, इस साल में देश में जो दूसरी सबसे बड़ी घटना घटी वो थी तीन तलाक पर प्रतिबन्ध. इसे हम रक्तहीन सामाजिक क्रांति की संज्ञा भी दे सकते हैं. इस क्रांति का नेत्रित्व किया स्वयं मुस्लिम बहनों ने लेकिन उनके पीछे चट्टान की तरह खड़ी दिखी केंद्र सरकार. पहले सुप्रीम कोर्ट ने स्वाधीनता दिवस के ठीक एक सप्ताह बाद इसे प्रतिबंधित कर दिया और करोड़ों मुस्लिम महिलाओं को डेढ़ हजार साल की लैंगिक गुलामी से आजादी दे दी . परन्तु फिर भी जब तीन तलाक जारी रहा तब केंद्र सरकार ने दो कदम आगे बढ़कर संसद में तत्सम्बन्धी नया कानून पेश किया. कानून लोकसभा से ध्वनिमत से पारित भी हो चुका है, उम्मीद की जानी चाहिए कि नए साल में राज्यसभा से पारित होने के बाद लागू भी हो जाएगा. गौरतलब है कि नए कानून में तीन तलाक को गैरजमानती अपराध बना दिया गया है और इसके लिए शौहर को ३ साल की जेल हो सकती है.
मित्रों, मुस्लिम पारिवारिक और विवाह कानून में बदलाव करने की हिम्मत आज तक न तो अंग्रेजों ने की थी और न ही पिछले ७० सालों में आनेवाली सरकारों ने. अब अगर लगे हाथों जनसंख्या स्थिरीकरण की दिशा में भी कोई कानून आ जाता है तो भारत को महाशक्ति बनने से कोई नहीं रोक सकता.
मित्रों, इस साल भी नरेन्द्र मोदी अपराजेय बने रहे. गोवा और मणिपुर में यद्यपि भाजपा को बहुमत नहीं मिला फिर भी अमित शाह ने अनहोनी को होनी में बदलते हुए भाजपा की सरकार बनवा दी तथापि देश के यशस्वी रक्षा मंत्री मनोहर पर्रीकर को फिर से गोवा भेजना पड़ा. उत्तर प्रदेश में एक बार फिर से मोदी लहर चली और राजग गठबंधन ने ४०३ में से ३२५ सीटें जीत लीं और रामजी जी की कृपा से योगी सरकार अच्छा काम भी कर रही है. पंजाब,उत्तराखंड और हिमाचल में हर बार सत्ता बदली की परम्परानुसार सत्ताविरोधी लहर चली. पंजाब में भाजपा को झटका लगा तो वहीँ उत्तराखंड में उसने सरकार बनाई.
मित्रों, सबसे आश्चर्यजनक राजनैतिक बदलाव देखने को मिला बिहार में. नीतीश कुमार ने लालू परिवार को झटका देते हुए एक बार फिर से भाजपा का हाथ थाम लिया. हालाँकि अभी तक बिहार में कुव्यवस्था और कुशासन का दौर ही जारी है और न जाने नीतीश कुमार जी किस बात और किस तरह की समीक्षा के लिए एक बार फिर से यात्रा पर निकले हुए हैं. इससे तो अच्छा होता कि वे एक बार पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल की औचक यात्रा कर लेते. चिराग तले ही अँधेरा है, बालू पर रोक के चलते लाखों ट्रक मालिक और करोड़ों मजदूर भुखमरी को मजबूर हैं और नीतीश सुशासन का बुझा हुआ दीपक लेकर घूम रहे हैं चंपारण और जमुई में.
मित्रों, साल का अंत हुआ गुजरात और हिमाचल के बहुचर्चित चुनावों से. हिमाचल की बात हम पहले ही कर चुके है. गुजरात में इस बार कांग्रेस ने बिहार वाला कुत्सित फार्मूला अपनाया जिससे भाजपा को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा. ईधर भाजपा का हिन्दू वोट बैंक बंट गया तो उधर सारी जातिवादी और सांप्रदायिक शक्तियां कांग्रेस के पक्ष में एकजुट हो गईं. कांग्रेस ने अपनी रणनीति में मौलिक परिवर्तन करते हुए यहाँ सॉफ्ट हिन्दू कार्ड खेला जिसका उसे लाभ भी मिला तथापि देखना है कि कांग्रेस कब तक अपने नए रूख पर कायम रहती है और कब तक फिर से भगवा आतंकवाद के अपने हिंदूविरोधी एजेंडे पर नहीं जाती है. राहुल की ताजपोशी को मैंने बहुत बड़ी घटना नहीं मानता. अंतर बस इतना आया है कि पहले बेटा छुट्टी पर जाता था अब माँ जा रही है. हालाँकि गुजरात में भाजपा जीत गई है लेकिन उसके कमजोर होने का असर अब भी दिख रहा है क्योंकि उपमुख्यमंत्री नितिन पटेल अभी से ही आँखें दिखाने लगे हैं. आगे क्या होगा रामजी ही जानें.
मित्रों, बीते साल में अदालतों की निरंकुशता जारी रही. जिसको जी चाहा छोड़ दिया जिसको जी चाहा जेल भेज दिया. उच्च न्यायालय के एक जज ने तो घनघोर क्रांतिकारिता दिखाते हुए सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ ही अवमानना का मुकदमा चलाने का आदेश दे दिया. श्रीमान ६ महीने की सजा काटकर बाहर आए हैं. देश की जनता २०१७ में भी न्यायिक सुधार की प्रतीक्षा करती रही लेकिन निराशा ही हाथ लगी. कोलेजियम सिस्टम को लेकर भी गतिरोध बना रहा अलबत्ता राममंदिर की रोजाना सुनवाई का रास्ता जरूर साफ़ हो गया है.
मित्रों, कूटनीति के परिपेक्ष्य में भारत ने चीनी सेना को डोकलाम में पीछे हटने के लिए बाध्य करके अभूतपूर्व सफलता पाई. ईरान के चाबहार बंदरगाह से अफगानिस्तान माल पहुंचाकर भारत ने एक मील का पत्थर स्थापित किया. साल के मध्य में प्रधानमंत्री ने इजराईल की यात्रा की जिससे भारत की सामरिक शक्ति में अकूत वृद्धि का मार्ग खुला. ऐसा करनेवाले वे भारत के पहले प्रधानमंत्री हैं. साल के अंत में येरुसलम के सवाल पर भारत ने यूएनओ में इजराईल के खिलाफ वोट दिया लेकिन उम्मीद करनी चाहिए कि इसका दोनों देशों के संबंधों पर बुरा असर नहीं पड़ेगा. तथापि फिलिस्तीन के राजदूत ने हाफिज सईद के साथ खड़े होकर भारत सरकार की फिलिस्तीन नीति पर सवालिया निशान जरूर लगा दिया है. श्रीलंका ने हम्बनतोता बंदरगाह चीन के हवाले करके भारत को करारा झटका दिया तो वहीँ मालदीव भी चीन के नजदीक जाता दिखा. रोहिंग्या शरणार्थियों की समस्या ने भी भारत के सामने नई चुनौतियाँ पेश की. देखना है कि भारत सरकार इससे कैसे निबटती है. कुलभूषण जाधव की रिहाई बीते साल भी नहीं हो पाई और पाकिस्तानी गोलीबारी में रोजाना जवान कालकवलित होते रहे. नए साल में देखना है कि भारत सरकार चीन और पाकिस्तान से कैसे निबटती है.
मित्रों, आंतरिक सुरक्षा के मोर्चे पर गत वर्ष सुधार हुआ और नक्सली हमले में प्रभावी कमी आई. कश्मीर में दो सौ से ज्यादा आतंकियों को जहन्नुम का रास्ता दिखाया गया और स्थिति ऐसी भी आई कि कोई जैस और लश्कर का कमांडर बनने को ही तैयार नहीं था.
मित्रों, कुल मिलाकर देश के लिए भी २०१७ अच्छा रहा यद्यपि अर्थव्यवस्था की हालत नाजुक बनी रही और बेरोजगारी घटने के बजाए बढ़ी. लगा जैसे जीएसटी लागू करने से पहले भी सरकार ने नोटबंदी की तरह ही पूरी तैयारी नहीं की थी. जहाँ तक साल २०१८ का सवाल है तो यह साल मोदी सरकार के लिए काफी महत्वपूर्ण रहनेवाला है क्योंकि २०१९ के लोकसभा चुनाव में जनता का जो भी निर्णय होगा वो केंद्र और १९ राज्यों में सत्तासीन भाजपा सरकारों के आगामी वर्ष में प्रदर्शन पर निर्भर करेगा. आशा करनी चाहिए कि नए साल में जो भी होगा देश और देशवासियों के लिए अच्छा ही होगा क्योंकि उम्मीद पर ही दुनिया कायम है.

मंगलवार, 26 दिसंबर 2017

पगड़ी संभालिए मोदी जी

मित्रों, हम भारतीयों के लिए पगड़ी का बड़ा महत्व है. सौभाग्यवश इस बात को हमारे प्रधान सेवक जी भी खूब समझते हैं. तभी तो लगभग हर भाषण में पगड़ी धारण किए रहते हैं. पगड़ी एक कपडा-मात्र नहीं होती वो एक जिम्मेदारी भी होती हैं.
मित्रों, जाहिर हैं कि हमारे प्रधान सेवक जी को जिम्मेदारियां देना नहीं लेना ज्यादा पसंद है. ऐसा जज्बा होना भी चाहिए लेकिन क्या वे इसमें सफल भी हो रहे हैं? क्या एक अकेली जान सबकुछ कर सकता है? अगर ऐसा संभव होता तो भगवत और देव मंडली में पोर्टफोलियो सिस्टम नहीं होता. फिर आदमी की तो औकात ही क्या!
मित्रों, जब मोदी सरकार ने शपथ ली थी तब और बाद में भी मैं बार-बार कहता आ रहा हूँ कि प्रधान सेवक जी आपका मंत्रिमंडल सही नहीं है. चाहे आप कपिलदेव को कप्तान बना दीजिए या इमरान खान को या फिर क्लाईब लायड को जब टीम अच्छी नहीं होगी कप्तान कुछ नहीं कर सकता. जब कई महीने पहले कई मंत्रियों से प्रधान सेवक जी ने इस्तीफा लिया तो लगा कि देर से ही सही उन्होंने हमारी बातों पर ध्यान दे दिया है लेकिन हुआ कुछ नहीं. एक रूडी भैया की बलि देकर सुधार की खानापूरी कर ली गई. जो मजबूत पड़े बच गए कमजोर पड़े नप गए.
मित्रों, फिर तो देश की जो स्थिति होनी थी हो रही है. देश इस समय एक साथ मंदी और महंगाई की विकट स्थिति को झेल रहा है. उधर किसान १० पैसे किलो आलू और ४ रूपये किलो मूंगफली बेचने को बाध्य हैं तो ईधर उपभोक्ताओं को वही आलू १२० गुना महंगा १२ रूपये किलो और मूंगफली २५ गुना महंगा १०० रूपये किलो मिल रहा है. दोनों छोर पर बैठे लोग मर रहे हैं और बीचवाला माल छाप रहा है. सरकार कहती है कि जीएसटी कम कर दिया लेकिन एक तरफ उपभोक्ताओं को सामान पुराने दरों पर ही मिल रहा है वहीँ दूसरी ओर सरकार को जीएसटी का भुगतान नए दर से किया जा रहा है. सेल टैक्स, इनकम टैक्स आदि सारे विभागों के बाबुओं का हफ्ता फिक्स है इसलिए सब आँखवाले अंधे बने हुए हैं. पाकिस्तान की गोलीबारी में आज भी रोजाना हमारे जवान बेमौत मारे जा रहे हैं. धंधा मंदा है और बेरोजगारी बढती ही जा रही है.
मित्रों, न्यायपालिका निरंकुश है, न्याय दुर्लभ है, कदम-२ पर घूसखोरी और कमीशनखोरी है, सार्वजानिक शिक्षा की मौत हो चुकी है और निजी विद्यालय लूट मचाए हुए हैं, परीक्षा दिखावा बनकर रह गई है, असली से ज्यादा नकली दावा बाजार में है, सरकारी अस्पतालों में कुत्ते टहल रहे हैं और निजी अस्पतालों से तो लुटेरे कहीं ज्यादा भले, पुलिस खुद ही अपराध कर और करवा रही है, सारे धंधे मंदे हैं लेकिन अवैध शराब और गरम गोश्त का व्यापार दिन दूनी रात चौगुनी उन्नति कर रहा है. पुलिस छापा मारती भी है तो सरगने को भगा देती है और बांकी लोग भी एक-दो महीने में ही न जाने कैसे बाहर आ जाते हैं. कुल मिलकर स्थिति इतनी बुरी है कि पीड़ित may I help you का बोर्ड लेकर घूमनेवाली पुलिस के पास जाने से भी डरते हैं. बैंकों की तो पूछिए ही नहीं पहले १० %  कमीशन काट लेते हैं बाद में लोन की रकम देते हैं. बिहार में तो यही रेट है इंदिरा आवास तक में और प्रधान सेवक समझते हैं कि १००% पैसा गरीबों तक पहुँच गया. इतना ही नहीं क्या अमीर और क्या गरीब बैंक न्यूनतम राशि खाते में न होने के बहाने बिना हथियार दिखाए सबको लूट रहे हैं.
मित्रों, बिहार की स्थिति तो और भी बुरी है. यहाँ छोटे भाई नीतीश और छोटे मोदी मिलकर बालू से तेल निकालने का अनथक प्रयास कर रहे है जिससे गृह-निर्माण से जुड़े सारे दिहाड़ी मजदूर फांकाकशी को मजबूर हैं. खजाना खाली होने से सरकारी कर्मियों तक को कई-२ महीने तक वेतन के दर्शन नहीं होते. कुल मिलाकर जो गति तोरा सो गति मोरा रामा हो रामा. आम आदमी मर रहा है वहीँ तंत्र शराब बेचकर और घूस खाकर अपनी तोंद फुला रहा है.
मित्रों, सवाल उठता है कि इसका ईलाज क्या है? ईलाज तो यही है कि मोदी जी को समझ लेना होगा कि उनकी सरकार का हनीमून पीरियड अब समाप्त हो चुका है. जनता की आँखों में कुछ समय के लिए धूल जरूर झोंका जा सकता है लेकिन उनको स्थाई रूप से अंधा नहीं किया जा सकता. नोटा का सोंटा अभी गुजरात में चला है कल पूरे हिंदुस्तान में चलेगा. आज गुजरात में मोदी जी की पगड़ी उछलने से बच गई है लेकिन क्या पूरे देश में बच पाएगी? न जाने मोदी जी किससे और क्यों भयभीत हैं जबकि उनके पीछे सवा सौ करोड़ भारतीयों का न सही नए सर्वे के अनुसार कम-से-कम ८० करोड़ भारतीयों का समर्थन है? कहीं ऐसा न हो कि नेहरु जैसी ताकत पाने के चक्कर में मोदी जी की हालत सब साधै सब जाए वाली हो जाए. जागिए मोदी जी और अपनी और हमारी पगड़ी संभालिए क्योंकि हमने अपनी पगड़ी आपके हवाले कर रखी है. कुछ ऐसी धरातल पर दिखनेवाली योजनाएं भी बनाईए जिनकी समय सीमा २०१९ हो २०२२ नहीं क्योंकि २०१९ २०२२ से पहले आता है बाद में नहीं. साथ ही सरकार GDP के आंकड़े दिखाना बंद करे क्योंकि मुकेश अम्बानी की आय में तो हजारों करोड़ की वृद्धि हो गई लेकिन आम आदमी की हालत आज २०१४ से कहीं ज्यादा ख़राब है.

रविवार, 24 दिसंबर 2017

कब तक बेवजह शहीद होते रहेंगे जवान?

मित्रों, वैसे तो देश पर शहीद होना गर्व की बात होती है. हम राजपूतों से ज्यादा इस बात को कौन जानता है? लेकिन हमें याद है कि जब हमारे छोटे चचेरे भाई वीरमणि ने १९९९ में अप्रतिम वीरता का प्रदर्शन करते हुए शहादत दी थी तब हमारे परिवार की क्या हालत हो गई थी. जी में आता था कि अभी हाथ में बन्दूक उठाऊँ और पाकिस्तान का नामोनिशान मिटा दूं. शहादत से १० दिन पहले ही तो हमसे मिलकर वो गया था और पांव छूकर हमसे आशीर्वाद लिया था.
मित्रों, खैर मेरे भाई ने तो तब शहादत दी थी जब पाकिस्तान के साथ घोषित युद्ध चल रहा था लेकिन आजकल तो कोई युद्ध नहीं चल रहा फिर रोजाना हमारे जवान क्यों शहीद हो रहे?  पिछले तीन वर्ष में देश के अन्दर और बाहर 425 भारतीय सशस्त्र बल के जवान शहीद हो चुके हैं। इस बात की जानकारी लोकसभा में रक्षा राज्यमंत्री डॉक्टर सुभाष भामरे ने दी। उन्होंने बताया कि 2014 से 2016 के बीच भारतीय सेना के 291, नौसेना के 105 और वायुसेना के 29 जवानों ने शहादत दी है।
मित्रों, हमारे प्रधान मंत्री कहते हैं कि हमें चलता है की आदत को बदलना पड़ेगा तो हम पलटकर उनसे से पूछना चाहते हैं कि सैनिकों की शहादत के मामले में कब चलता है बंद होगा और कब तक बिना घोषित युद्ध के ही हमारे बहुमूल्य जवान मरते रहेंगे? अपने निजी अनुभव के आधार पर हम जानते हैं कि जब कोई जवान शहीद होता है तो वो अकेला शहीद नहीं होता बल्कि उसके साथ उसका परिवार भी शहीद होता है. माँ-बाप आजीवन अपने बेटे, पत्नी अपने पति, भाई-बहन अपने भाई के लिए तरसते रहते हैं. बच्चों के भी अरमानों का खून हो जाता है.
मित्रों, नेताओं का क्या है वो तो पहले भी कहते रहे हैं कि जवान सेना में जाता ही है शहीद होने के लिए. आज भी वे उतनी ही आसानी से यह बात कह सकते हैं क्योंकि उनका कोई सगा तो सेना में जाता नहीं.
मित्रों, कल जिस तरह से दिन के १२ बजे एक मेजर सहित हमारे ४ जवानों को पाकिस्तानी गोलीबारी में जान देनी पड़ी वो यह बताने के लिए काफी है कि अब पानी सर से होकर गुजर रहा है. अब वो वक़्त आ गया है कि पाकिस्तान को यह बता दिया जाना चाहिए कि हम उसकी शरारतों को और बर्दाश्त कर सकने की स्थिति में नहीं हैं. हमारे जितने जवान कारगिल युद्ध में मारे गए थे लगभग उतने जवान पिछले ३ सालों में बेवजह मारे जा चुके हैं और हम हैं कि अभी भी ट्विट-ट्विट खेल रहे हैं. कब बंद होगी हमारे जवानों की शहादत? कब एक सर के बदले १०० नरमूंडों को लाया जाएगा? अगर एक और कारगिल जरूरी है और हो जाए लेकिन पाकिस्तानी बंदूकों का मुंह बंद होना ही चाहिए जल्द-से-जल्द. सेना और भारत सरकार अगर उम्र में छूट देती है तो माँ भवानी की कसम हम खुद भी इसमें हिस्सा लेंगे. जब ८० साल की आयु में बाबू कुंवर सिंह जंग लड़ सकते हैं तो हम तो अभी उनसे आधी उम्र के ही हैं.  

शनिवार, 23 दिसंबर 2017

कानून के साथ एक साक्षात्कार

मित्रों, कल हमारी अचानक मुलाकात उस शक्सियत के साथ हो गई जिसके बारे में अक्सर कहा जाता है कि उसका भारत में राज है. दरअसल कल मैं सदर अस्पताल के दौरे पर था खबर की तलाश में तभी मैंने एक अपाहिज वृद्धा को अस्पताल के सामने लगे कूड़े के ढेर के पास कराहते हुए देखा. बेचारी के अंग-अंग से खून टपक रहा था. वो कराह भी रही थी लेकिन जैसे मारे कमजोरी के उसके मुंह से कोई आवाज ही नहीं निकल रही थी. लोग-बाग़ आ-जा रहे थे लेकिन कोई उनकी तरफ देख तक नहीं रहा था.
मित्रों, मेरे मन में दया का सागर उमड़ पड़ा और मैं जा पहुँचा उसके पास. लेकिन जब उसने अपना परिचय दिया तो जैसे मुझे ४४० वोल्ट का झटका लगा. उनसे बताया कि वो कानून है. फिर मैंने पूछा कि नेताओं का तो यह कहते मुंह नहीं दुखता कि देश में कानून का राज है फिर आपकी ऐसी हालत कैसे हो गई तो उसकी आँखों से जैसे गंगा-जमुना की धारा बह निकली. उसने रूंधे हुए गले से कहा कि झूठ बोलते हैं सारे. सच्चाई तो यह है कि कभी मेरा राज था ही नहीं. जब अंग्रेजी शासन था तब मैं अमीरों की रखैल थी. हालाँकि पत्नी का दर्जा तो मुझे नहीं मिला हुआ था लेकिन मेरा ख्याल जरूर रखा जा रहा था लेकिन जबसे देश में मेरे अपनों का शासन आया है लगातार मेरी उपेक्षा बढती गई है. अब तो मेरी स्थिति इतनी बुरी हो गई है कि मेरा प्रत्येक अंग सड़ने लगा है लेकिन घर में देखभाल तो दूर की बात है अस्पताल तक में मुझे जगह नहीं मिल रही है. कभी कोई जूठन फेंक गया तो खा लेती हूँ. कुत्ते अलग मुझे नोच लेने के चक्कर में रहते है. सहायता के लिए चिल्लाते-चिल्लाते मेरा गला भी बैठ गया है लेकिन कोई नहीं सुन रहा. मैं जब अपना धौंस दिखाकर धमकाती हूँ तो चोर-उच्चके तक ताना देते हैं कि हमने तेरे परिजनों, तेरे रक्षकों को ही खरीद लिया है तू हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकती.
मित्रों, हमसे रहा नहीं गया और हम इमरजेंसी वार्ड की तरफ लपके और अधिकारियों से कहा कि बेचारी बुढ़िया को भर्ती कर लो तो उन्होंने टका-सा जवाब दिया कि टका है क्या?  उसने यह भी पूछा कि वो तेरी क्या लगती है? उन्होंने मुझे फटकार लगाई कि जब उसको उसके अपनों ने ही मरने के लिए छोड़ दिया है तो तू क्यों उसकी चिंता में दुबले हो रहे हो? मैं भला कहाँ से पैसे लाता मैं खुद फटेहाल इसलिए वहां से चुपचाप टरक लेने में ही भलाई समझी. लेकिन दूर तक उस गरीब-लाचार बुढ़िया की आँखें मेरा पीछा कर रही थीं और ईधर मेरी आँखें भी जैसे छलकने को बेताब हो रही थीं.

गुरुवार, 21 दिसंबर 2017

मोदी सरकार की साख पर बट्टा है २जी पर कोर्ट का फैसला

मित्रों, आज ही २जी स्पेक्ट्रम घोटाले पर कोर्ट का फैसला आया है और क्या फैसला आया है! आरुषि हत्याकांड, सलमान खान हिट एंड रन केस,जेसिका लाल केस, प्रियदर्शिनी मट्टू हत्याकांड, शशिनाथ झा मर्डर केस की तरह बिल्कुल अप्रत्याशित. जिस तरह जेसिका लाल के मामले में कोर्ट ने कहा था कि नो वन किल्ड जेसिका अर्थात किसी ने भी जेसिका की हत्या नहीं की बल्कि उसकी हत्या उसी तरह से हो गई जैसे मुहब्बत हो जाती है की नहीं जाती उसी तरह आज कोर्ट ने कहा है कि किसी ने घोटाला नहीं किया घोटाला हो गया. लेकिन सवाल उठता है कि कोर्ट ने आज जो पागलपंथी भरा फैसला सुनाया है क्या उसके लिए अकेले कोर्ट ही जिम्मेदार है?

मित्रों, देख रहे हैं और देखकर लगातार निराश हो रहे हैं कि सरकारी तोते सीबीआई के कामकाज करने का तरीका आज भी वही है जो सोनिया-मनमोहन के समय था. बिहार के सृजन घोटाले को सबसे पहले उजागर करनेवालों में मेरा नाम भी आता है लेकिन मुझे भारी दुःख के साथ कहना पड़ रहा है कि इस मामले में सीबीआई ने जानबूझकर समय पर चार्जशीट दाखिल नहीं किया जिससे लगभग सारे बाघडबिल्ले बाहर आ गए. इतना ही नहीं आगे भी लगता है कि सीबीआई मामले की सिर्फ लीपापोती ही करनेवाली है. सवाल उठता है कि क्या यही रिकॉर्ड लेकर प्रधानमंत्री २०१९ में जनता के समक्ष जानेवाले हैं? अगर यहीसब करना था तो फिर जनता को ठगा क्यों? क्यों भ्रष्टाचार मुक्त समाज और देश के सपने दिखाए?

मित्रों, माननीयों के लिए अलग से कोर्ट बना देने मात्र से क्या सरकार की जिम्मेदारियां समाप्त हो जाती हैं? उनके खिलाफ निष्पक्ष तरीके से मुकदमा कौन लडेगा कौन जाँच करेगा? क्या वहां भी सरकार उसी तरह केस लड़ेगी जैसे उसने २जी मामले में लड़ा है या सृजन घोटाले में लड़ रही है? मोदी जी २०१९ देखते-देखते सर पर आकर खड़ा हो जाएगा इसलिए न्यायपालिका और शिक्षा में सुधार, रोजगार-सृजन, कालाधन आदि की दिशा में जो भी करना जल्दी करिए। ऐसा न हो कि फिर देर हो जाए और जिस खूनी पंजे के हाथों से आपने देश को निकाला है फिर से देश उन्हीं देशद्रोही हाथों में चला जाए. मैं सीधे आपसे पूछना चाहता हूँ कि आप जिन लोगों पर सार्वजानिक मंचों से गंभीर आरोप लगाते रहते हैं वे आजाद हवा में साँस कैसे ले रहे हैं? क्या आपको सिर्फ और सिर्फ आरोप लगाना ही आता है?

मित्रों, जो लोग आज फिर से जीरो लॉस थ्योरी की बात कर रहे हैं उनको मैं बता देना चाहता हूँ कि घोटाला तो हुआ था और जरूर हुआ था क्योंकि अगर सही तरीके से स्पेक्ट्रम अलॉटमेंट होता तो सरकार को ज्यादा फायदा होता। नियम बदलकर पहले आओ, पहले पाओ पॉलिसी अपनाई गई। मोदी सरकार ने नीलामी की तो न केवल ज्यादा पैसा मिला बल्कि आज फोन और डाटा की दर उस समय की अपेक्षा काफी सस्ती भी है। सनद रहे कि बाद में मोदी सरकार ने स्पेक्ट्रम को नीलाम किया। नतीजा यह हुआ कि जिस स्पेक्ट्रम के पहले 1734 करोड़ मिल रहे थे 2015 में 1.10 लाख करोड़ रुपए मिले। कुल मिलकर पूरे घटनाक्रम को अगर देखा जाए तो बिना नीलामी के स्पेक्ट्रम कुछ लोगों को दे दिया गया। पहले आओ पहले पाओ की पॉलिसी को भी बदलकर पहले पेमेंट करो, पहले पाओ कर दिया गया। यह पूरी तरह से भ्रष्ट पॉलिसी थी। 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने भी यही कहा था और आगे भी मामला सुप्रीम कोर्ट तक जानेवाला है।

बुधवार, 6 दिसंबर 2017

क्या कांग्रेस आतंकी संगठन नहीं है?

मित्रों, हमारे पूर्वजों ने जो आजादी की लडाई के समय गर्व से सीना चौड़ा करके कहते थे कि मैं कांग्रेसी हूँ कभी सपने में भी नहीं सोंचा होगा कि एक दिन ऐसा भी आएगा जब कांग्रेस देशविरोधी आतंकवादियों की पार्टी बन जाएगी. क्या विडंबना है कि पाकिस्तान में जब भारत का सबसे बड़ा घोषित शत्रु आतंकी संगठन जमात उद दावा का संस्थापक हाफिज सईद चुनाव लडेगा तब लडेगा भारत में तो कांग्रेस पार्टी कई दशकों से न केवल चुनाव लडती आ रही है बल्कि देश पर अधिकांश समय राज भी किया है.

मित्रों, आतंकी सिर्फ वही नहीं होता जो फसाद करता है और निर्दोषों की हत्या करता है बल्कि वो भी आतंकी है जो उनको आर्थिक या नैतिक समर्थन देता है. हाफिज सईद अगर आतंकी है तो उससे सहानुभूति रखनेवाला हर व्यक्ति और हर संगठन आतंकी है. मौलाना मसूद अजहर अगर आतंकी है तो उसको लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ में वीटो करनेवाला चीन भी आतंकी है. चीन और पाकिस्तान तो फिर भी हमारे जानी दुश्मन है लेकिन यह समझ में नहीं आता कि स्वर्णिम इतिहास वाली कांग्रेस पार्टी कैसे भारतविरोधी आतंकियों से सहानुभूति रख सकती है. क्या उसको अब भारत में राजनीति नहीं करनी है? पाकिस्तान से चुनाव लड़ना है?

मित्रों, क्या कारण है जब भी किसी आतंकी का मुकदमा कोर्ट में जाता है तो कांग्रेसी वकीलों की फ़ौज उनके बचाव में खड़ी हो जाती है? कपिल सिब्बल का सोनिया और राहुल गाँधी के लिए वकालत करना तो समझ में आता है लेकिन सिमी, याकूब मेनन , कन्हैया, ख़ालिद उमर के लिए उनका व अन्य कांग्रसियों का कोर्ट में पैरवी करना समझ में नहीं आता. यहाँ तक कि तीन तलाक और राम मंदिर के मुद्दे पर भी सिब्बल कट्टरपंथी मुस्लिमों के पक्ष में खड़े होने से नहीं चूकते। यहाँ तक कि जब पाकिस्तान की अदालत हाफिज सईद को रिहा करती है तो कांग्रेस के होनेवाले महाराज राहुल गाँधी की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहता. वे इसके लिए पाकिस्तान की आलोचना करने और भारत सरकार के साथ मिलकर एकजुटता दिखाने के बदले उसका मजाक उड़ाने लगते हैं वो भी निहायत फूहड़ शब्दों में कि मोदी जी आपको ट्रम्प से और गले मिलना होगा हाफिज बाहर आ गया है. हद तो यह है कि कश्मीर में कांग्रेस का साझीदार फारूख अब्दुल्ला इन दिनों लगातार भारत के खिलाफ बोल रहा है फिर भी कांग्रेस चुप लगाए हुए है जैसे वो उसके ही मन की बात बोल रहा हो. सैयद अली शाह गिलानी के साथ कांग्रेसी नेताओं के कितने मधुर सम्बन्ध हैं यह हमलोग कई बार समाचार चैनलों पर देख चुके हैं.

मित्रों, कांग्रेस इतने पर ही रूक जाती तो फिर भी गनीमत थी जब चीन और भारत की सेना डोकलाम में आमने-सामने थी तब राहुल जा पहुंचे चीनी दूतावास में चीन के राजदूत से गले मिलने और कदाचित उनको यह बताने कि चढ़ बैठो भारत पर मैं तुम्हारे साथ हूँ. सिर्फ ऊपर के नेताओं तक बात थम जाती तो फिर भी गनीमत थी आज स्थिति इतनी बुरी हो गई है कि कांग्रेस के जिला और प्रखंड स्तर के कार्यकर्त्ता लश्कर के आतंकी निकल रहे हैं. जिस नोटबंदी के चलते कश्मीर में आतंकवाद में कमी आई है कांग्रेस अभी भी उसकी आलोचना किए जा रही है. समझ में नहीं आता कि अगर कश्मीर में आतंकवाद में कमी आती है तो इससे कांग्रेस को कैसी हानि हो रही है? क्या आपने कभी कांग्रेस को कश्मीर में होनेवाली किसी आतंकी घटना की निंदा करते हुए देखा है? आपको यह जानकर घोर आश्चर्य होगा कि हिज्बुल चीफ सैयद सलाऊद्दीन १९८७ में कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ चुका है. आपको यह जानकर भी आश्चर्य होगा कि जब केंद्र में मनमोहन और कश्मीर में छोटे अब्दुल्ला की सरकार थी तब सीआरपीएफ़ के जवानों को कश्मीर में बिना हथियार के ड्यूटी करने के लिए बाध्य किया गया था. इतना ही नहीं आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई करने पर सेना के अधिकारियों को जेल जाना पड़ता था और कई तो अभी भी जेल में हैं.

मंगलवार, 5 दिसंबर 2017

कांग्रेसी कसमें और वादे बातें हैं बातों का क्या

मित्रों, क्या आपने कभी सब्जियों के दरख्तों का बगीचा देखा है? नहीं, क्या बात करते हैं? लगता है कि आपने चुनाव-दर-चुनाव कभी कांग्रेस पार्टी का घोषणा-पत्र नहीं पढ़ा है या फिर आपकी याददाश्त कमजोर है भारत की उस जनता की तरह जो ३ साल में ही भूल जाती है कि कांग्रेस ने केंद्र में यूपीए सरकार के समय कैसे-२ और कौन-२ से घोटाले किए थे. क्या कहा आपने कि आप उस पार्टी को झूठी व ठग पार्टी मानते हैं इसलिए आप उसका घोषणापत्र पढ़ते ही नहीं. वाह फिर तो आप बहुत समझदार हैं लेकिन तभी जब आप उसको वोट भी नहीं दें.

मित्रों, अब देखिए और सोंचिए न कि कांग्रेस पार्टी अपने घोषणापत्र में जो वादे लेकर आई है उसमें दूरदर्शिता क्या है? क्या इसमें कहीं यह बताया गया है कि वो राज्य के विकास के लिए क्या करेगी,राज्य के लोगों का जीवन-स्तर सुधारने के लिए क्या करेगी? बल्कि वो तो कहती है कि गुजरात के लोगों को पता है कि खुद का विकास कैसे करना है। अच्छा फिर आपकी जरुरत ही क्या है? वो यह भी भरमाते हैं कि विकास की अंधी दौड़ नहीं होनी चाहिए, विकास का मतलब खुश रहना होता है।

मित्रों, केंद्र में जब यूपीए की सरकार थी तो इसने सबको क्या मस्त खुश किया था? ए राजा खुश मतलब जनता खुश, एयर चीफ मार्शल त्यागी खुश जनता खुश, माल्या खुश पूरा देश खुश हाथ में किंगफिशर की बोतल पकड़कर. मतलब कि इन मतलबी लोगों का तो नारा ही यही है कि स्वयं जेब फाड़कर खाऊँगा और सबको पेट फाड़कर खाने दूंगा. खुद खुश रहूंगा और सारे घोटालेबाजों को खुश रखूंगा. जनता को चाटने के लिए लोल्लीपॉप थमा दूंगा. वैसे भी राहुल बाबा के अनुसार सुख और कुछ तो है नहीं मन की एक अवस्था मात्र है.

मित्रों, स्वतंत्र भारत के चुनावी इतिहास पर जब हम नजर डालते हैं तो घनघोर आश्चर्य होता है कि कांग्रेस पार्टी बार-२ काठ की हांडी में चुनावी खिचड़ी कैसे पका ले रही है और जनता कैसे उनके हाथों ख़ुशी-२ ठगी जाती है. कैसे जनता हो पता ही नहीं होता कि उसको ठगा गया है.

मित्रों, हमारे प्रधान सेवक जी को भी इन दिनों जो कहना चाहिए नहीं कह रहे हैं हालाँकि कर तो वही रहे हैं जो उनको करना चाहिए. हम जानते हैं कि भारत के कुछेक लोगों के लिए अभी भी नेशन फर्स्ट नहीं है लेकिन प्रधान सेवक जी को इसके लिए आह्वान करने से किसने रोका है? जब उनके मन में कोई खोट या छल नहीं है तो फिर देश की जनता से खुलकर और साफ़-२ बात करनी चाहिए कि हम जो भी अलोकप्रिय कदम उठा रहे हैं आपके लिए उठा रहे हैं, हम जो कुछ भी कर रहे हैं वो आपके लिए और आपके देश के लिए कर रहे हैं इसलिए कष्ट के खेद है और उसके बाद उनको बोलना चाहिए कि कांग्रेस के कैरेक्टर सर्टिफिकेट में छेद ही छेद है. ठीक उसी तरह से निर्भय होकर जनता से बात करनी चाहिए जैसे वो २०१४ में करते थे.

शुक्रवार, 1 दिसंबर 2017

पढ़े फारसी बेचे तेल

मित्रों, जबसे १९९१ में भारत में आर्थिक उदारीकरण की शुरुआत हुई तभी से देश में रोजगाररहित विकास के आरोप लगते रहे हैं हालाँकि इस दौरान देश की जीडीपी में तीव्र और अभूतपूर्व वृद्धि देखने को मिली है. २०१४ में जब नरेन्द्र मोदी की सरकार सत्ता पर काबिज हुई तो इस वादे के साथ कि वो हर साल १ करोड़ लोगों को रोजगार देगी. लेकिन अब तक इस दिशा में जो काम हुआ है वो कहीं से भी सराहनीय या संतोषजनक नहीं कहा जा सकता. तथापि अगर प्रति वर्ष १ करोड़ रोजगारों का सृजन कर भी लिया जाता है तो भी बेरोजगारी बढ़ेगी ही क्योंकि खुद केंद्र सरकार के आकंडे बताते हैं कि तेज जनसंख्या-वृद्धि के चलते देश में हर साल १२ मिलियन यानि १ करोड़ २० लाख नए श्रमिक जुड़ रहे हैं.

मित्रों, सीआईआई के अनुसार, वित्त वर्ष 2012 से 2016 के बीच भारत में रोजगार के 1.46 करोड़ मौके बने थे. यानी हर साल 36.5 लाख अवसर. साल 2016 की श्रम मंत्रालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है, बावजूद इसके पिछले सात सालों में टेक्सटाइल्स और आॅटोमोबाइल सहित आठ सेक्टर में रोजगार सृजन सबसे धीमा रहा है। 

मित्रों, प्रौद्योगिकी में उभरती तकनीकी के चलते भी नौकरियों में गिरावट देखने को मिली है।  मैककिंसे एंड कंपनी की एक रिसर्च आर्म्स ने 46 देशों में 800 से अधिक व्यवसायों को रिकवर किया, जिसके अनुसार 2030 तक दुनियाभर के कुल 800 मिलियन श्रमिक रोबोट और आॅटोमेटेड तकनीक के चलते अपनी नौकरियां खो सकते हैं। यह संख्या पूरी दुनिया के मजदूरों का पांचवा हिस्सा है. देश की सबसे बड़ी भर्ती कंपनी टीमलीज सर्विसेज लिमिटेड के मुताबिक रोबोटिक्स के चलते पिछले साल की तुलना भारत के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर के जॉब्स में 30 से 40 फीसदी की कमी देखी जा सकती है। साथ ही नोटबंदी और जीएसटी के चलते भी बहुत-से लघु और माध्यम उद्योग बंद हो गए हैं. उदाहरण के लिए सूरत के साड़ी और हीरा उद्योग, कानपुर के चमड़ा उद्योग, भदोही के कालीन उद्योग, लुधियाना के रेडीमेड-वस्त्र उद्योग, मुरादाबाद के पीतल उद्योग, फिरोजाबाद के चूड़ी उद्योग और अलीगढ के ताला उद्योग से जुड़ी कई फैक्ट्रियों पर ताले लग चुके हैं. यहाँ मैं आपको बता दूं कि लघु और माध्यम उद्योग कृषि के बाद भारत में सबसे ज्यादा रोजगार देनेवाला क्षेत्र है और इसमें लगभग ४५ करोड़ लोगों को रोजगार मिला हुआ है. साथ ही भारत के सकल घरेलू उत्पाद में इसकी हिस्सेदारी भी ४५ प्रतिशत की है.

मित्रों, अगस्त महीने में, औद्योगिक नीति एवं संवर्धन विभाग द्वारा जारी एक परिपत्र में कहा गया है कि भारत को भविष्य के लिए एक नई औद्योगिक नीति बनाने की जरूरत है, ताकि देश में प्रतिवर्ष कम से कम 100 अरब डॉलर की एफडीआई आकर्षित की जा सके। इस परिपत्र में यह दर्शाया गया है कि भारत में रोजगार सृजन ग्रोथ बिल्कुल धीमी है। इस नई औद्योगिक नीति के लिए केंद्र सरकार ने एक टास्क फ़ोर्स गठित किया है।

मित्रों, आर्थिक वृद्धि के साथ रोजगार के मौके बनने की रफ्तार बढ़ाने के लिए नीति आयोग ने भी तीन साल का एक ऐक्शन प्लान पेश किया है, जिसमें विभिन्न सेक्टरों में रोजगार सृजित करने की बात की गई है.

मित्रों, देखना यह है कि सरकार २०१९ तक सिर्फ योजनाएं और टास्क फ़ोर्स ही बनाती रहती है या फिर इस दिशा में धरातल पर कुछ काम भी होता है? वास्तव में संघ सरकार की असली परीक्षा इसी मोर्चे पर होनेवाली है. कल की तिमाही रिपोर्ट में जीडीपी भले ही उड़ान भर रही हो लेकिन इस समय पूरे भारत में रोजगार के क्षेत्र में मंदी है क्योंकि जिन क्षेत्रों में वृद्धि के चलते जीडीपी ने गति पकड़ी है उनमें रोजगार-सृजन न के बराबर है.

मित्रों, पढ़े फारसी बेचे तेलवाली कहावत यक़ीनन आपने भी सुनी होगी. हम पर तो यह बखूबी चरितार्थ भी हो रही है. आज ही मैंने हाजीपुर में ५००० रूपये मासिक पर नौकरी पकड़ी है बैठे से बेगारी भला. वैसे अगर भाजपा यूपी निकाय चुनाव जीतने के बाद इस मुगालते में है कि नोटबंदी और जीएसटी के बावजूद जैसे उसने यह चुनाव जीत लिया वैसे ही लोकसभा चुनाव भी आसानी से और प्रचंड बहुमत-से जीत जाएगी भले ही बेरोजगारी कम होने के बदले पहले से भी ज्यादा हो जाए तो निश्चित रूप से वो गलत है और इस दिशा में उसे परिणामात्मक कार्य करके दिखाना ही होगा वो भी २०२२ नहीं बल्कि २०१९ तक.