शनिवार, 23 दिसंबर 2017

कानून के साथ एक साक्षात्कार

मित्रों, कल हमारी अचानक मुलाकात उस शक्सियत के साथ हो गई जिसके बारे में अक्सर कहा जाता है कि उसका भारत में राज है. दरअसल कल मैं सदर अस्पताल के दौरे पर था खबर की तलाश में तभी मैंने एक अपाहिज वृद्धा को अस्पताल के सामने लगे कूड़े के ढेर के पास कराहते हुए देखा. बेचारी के अंग-अंग से खून टपक रहा था. वो कराह भी रही थी लेकिन जैसे मारे कमजोरी के उसके मुंह से कोई आवाज ही नहीं निकल रही थी. लोग-बाग़ आ-जा रहे थे लेकिन कोई उनकी तरफ देख तक नहीं रहा था.
मित्रों, मेरे मन में दया का सागर उमड़ पड़ा और मैं जा पहुँचा उसके पास. लेकिन जब उसने अपना परिचय दिया तो जैसे मुझे ४४० वोल्ट का झटका लगा. उनसे बताया कि वो कानून है. फिर मैंने पूछा कि नेताओं का तो यह कहते मुंह नहीं दुखता कि देश में कानून का राज है फिर आपकी ऐसी हालत कैसे हो गई तो उसकी आँखों से जैसे गंगा-जमुना की धारा बह निकली. उसने रूंधे हुए गले से कहा कि झूठ बोलते हैं सारे. सच्चाई तो यह है कि कभी मेरा राज था ही नहीं. जब अंग्रेजी शासन था तब मैं अमीरों की रखैल थी. हालाँकि पत्नी का दर्जा तो मुझे नहीं मिला हुआ था लेकिन मेरा ख्याल जरूर रखा जा रहा था लेकिन जबसे देश में मेरे अपनों का शासन आया है लगातार मेरी उपेक्षा बढती गई है. अब तो मेरी स्थिति इतनी बुरी हो गई है कि मेरा प्रत्येक अंग सड़ने लगा है लेकिन घर में देखभाल तो दूर की बात है अस्पताल तक में मुझे जगह नहीं मिल रही है. कभी कोई जूठन फेंक गया तो खा लेती हूँ. कुत्ते अलग मुझे नोच लेने के चक्कर में रहते है. सहायता के लिए चिल्लाते-चिल्लाते मेरा गला भी बैठ गया है लेकिन कोई नहीं सुन रहा. मैं जब अपना धौंस दिखाकर धमकाती हूँ तो चोर-उच्चके तक ताना देते हैं कि हमने तेरे परिजनों, तेरे रक्षकों को ही खरीद लिया है तू हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकती.
मित्रों, हमसे रहा नहीं गया और हम इमरजेंसी वार्ड की तरफ लपके और अधिकारियों से कहा कि बेचारी बुढ़िया को भर्ती कर लो तो उन्होंने टका-सा जवाब दिया कि टका है क्या?  उसने यह भी पूछा कि वो तेरी क्या लगती है? उन्होंने मुझे फटकार लगाई कि जब उसको उसके अपनों ने ही मरने के लिए छोड़ दिया है तो तू क्यों उसकी चिंता में दुबले हो रहे हो? मैं भला कहाँ से पैसे लाता मैं खुद फटेहाल इसलिए वहां से चुपचाप टरक लेने में ही भलाई समझी. लेकिन दूर तक उस गरीब-लाचार बुढ़िया की आँखें मेरा पीछा कर रही थीं और ईधर मेरी आँखें भी जैसे छलकने को बेताब हो रही थीं.

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