सोमवार, 19 फ़रवरी 2018

वित्तीय आपातकाल की ओर अग्रसर भारत

मित्रों,  भारतीय संविधान में तीन आपातकाल वर्णित हैं- 1. राष्ट्रीय आपात - अनुच्छेद 352) राष्ट्रीय आपात की घोषणा काफ़ी विकट स्थिति में होती है. इसकी घोषणा युद्ध, बाह्य आक्रमण और राष्ट्रीय सुरक्षा के आधार पर की जाती है.

2. राष्ट्रपति शासन अथवा राज्य में आपात स्थिति- अनुच्छेद 356) इस अनुच्छेद के अधीन राज्य में राजनीतिक संकट के मद्देनज़र, राष्ट्रपति महोदय संबंधित राज्य में आपात स्थिति की घोषणा कर सकते हैं. जब किसी राज्य की राजनैतिक और संवैधानिक व्यवस्था विफल हो जाती है अथवा राज्य, केंद्र की कार्यपालिका के किन्हीं निर्देशों का अनुपालन करने में असमर्थ हो जाता है, तो इस स्थिति में ही राष्ट्रपति शासन लागू होता है. इस स्थिति में राज्य के सिर्फ़ न्यायिक कार्यों को छोड़कर केंद्र सारे राज्य प्रशासन अधिकार अपने हाथों में ले लेती है.

3. वित्तीय आपात - अनुच्छेद 360) वित्तीय आपातकाल भारत में अब तक लागू नहीं हुआ है. लेकिन संविधान में इसको अच्छी तरह से परिभाषित किया गया है. अनुच्छेद 360 के तहत वित्तीय आपात की घोषणा राष्ट्रपति द्वारा तब की जाती है, जब राष्ट्रपति को पूर्ण रूप से विश्वास हो जाए कि देश में ऐसा आर्थिक संकट बना हुआ है, जिसके कारण भारत के वित्तीय स्थायित्व या साख को खतरा है. अगर देश में कभी आर्थिक संकट जैसे विषम हालात पैदा होते हैं, सरकार दिवालिया होने के कगार पर आ जाती है, भारत की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से ध्वस्त होने की कगार पर आ जाए, तब इस वित्तीय आपात के अनुच्छेद का प्रयोग किया जा सकता है. इस आपात में आम नागरिकों के पैसों एवं संपत्ति पर भी देश का अधिकार हो जाएगा. राष्ट्रपति किसी कर्मचारी के वेतन को भी कम कर सकता है. गौरतलब है कि संविधान में वर्णित तीनों आपात उपबंधों में से वित्तीय आपात को छोड़ कर भारत में बाकी दोनों को आजमाया जा चुका है. भारत में कभी वित्तीय आपात लागू न हो, इसकी हमें प्रार्थना करनी चाहिए.

मित्रों, क्या इस समय भारत सरकार की साख और वित्तीय स्थायित्व को खतरा नहीं है? चार दिन पहले तक तो सरकार दावा कर रही थी कि उसके समय एक पैसे का भी गलत लोन नहीं दिया गया है और आज देश के सारे-के-सारे बैंक गलत लोन के चलते दिवालिया होने की स्थिति में हैं. कल अगर बैंक नकदी के अभाव में बंद हो जाते हैं या लोगों की जमाराशि को लौटाने से मना कर देती है तो सरकार ने सोंचा है कि तब वो क्या करेगी? जनता ने बैंकों पर अपने जमा धन की निकासी के लिए अगर धावा बोल दिया और बैंकों को आग के हवाले करना शुरू कर दिया तो क्या होगा क्या सरकार सोंचा है?

मित्रों, सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि क्या सरकार पूरे मामले को गंभीरता से ले भी रही है? वो इन दिनों जिस तरह का व्यवहार कर रही है उससे तो ऐसा लगता नहीं। मोदी जी को तत्काल सर्वदलीय बैठक बुलानी चाहिए और विपक्ष से भी न केवल परामर्श करना चाहिए बल्कि उसको विश्वास में भी लेना चाहिए. यह संकट कोई सरकार मात्र का संकट नहीं है बल्कि राष्ट्रीय संकट है. लेकिन सरकार कर क्या रही है? वित्त मंत्री घोटाला सामने आने के बाद भी २ दिनों तक देश में थे लेकिन वे मीडिया के सामने नहीं आए और विदेश चले गए. प्रधानमंत्री कभी बच्चों से परीक्षा कैसे देनी चाहिए पर बात करते हैं तो कभी कृत्रिम बुद्धि पर व्याख्यान दे रहे हैं. अर्थात उनको जो करना चाहिए और प्राथमिकता के आधार पर करना चाहिए वे नहीं कर रहे हैं. इसी को बिहार में कहते हैं हंसिया के लगन में खुरपी का गीत. आप ही बताईए अगर कोई श्राद्ध में शामिल होने जाए और विवाह के गीत गाने लगे तो आपको ख़ुशी होगी या गम, गायक पर प्यार आएगा या क्रोध?

मित्रों, इसलिए मैं कहता हूँ कि स्थिति की गंभीरता को समझते हुए सरकार तुरंत सर्वदलीय बैठक बुलाए और उसके बाद प्रेस वार्ता करके देशवासियों के समक्ष स्थिति को स्पष्ट करना चाहिए और विश्वास दिलाना चाहिए कि स्थिति नियंत्रण में है इसलिए भयभीत होने की कोई आवश्यकता नहीं है. विदेशों में तो ऐसी स्थिति में सर्वदलीय राष्ट्रीय सरकारों का भी गठन हो चुका है फिर सरकार को यशवंत सिन्हा, सुब्रमण्यम स्वामी और अरुण शौरी जैसे अपने लोगों से सलाह लेने में कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए. कुछ लोग फिर से बैंकों के निजीकरण की मांग भी कर सकते हैं लेकिन मैं नहीं मानता कि यह कोई समाधान है क्योंकि दिवालिएपन के कगार पर तो निजी बैंक भी हैं.

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